हिमाचल: मां काली और शिव का स्वरूप है कालेश्वर महादेव, पांडवों ने बनाया था मंदिर, शिवलिंग को लेकर है रोचक मान्यता
Himachal Pradesh Kangra Kaleshwar Mahadev Temple देवभूमि हिमाचल में कई शिवालय हैं। हर शिव मंदिर की अपनी मान्यता व एक अलग इतिहास है। जिला कांगड़ा के रक्कड़ उपमंडल में कालीनाथ कालेश्वर महादेव का मंदिर है इसे मिनी हरिद्वार भी कहा जाता है।
देहरा, सुनील राणा। Himachal Pradesh Kangra Kaleshwar Mahadev Temple, देवभूमि हिमाचल में कई शिवालय हैं। हर शिव मंदिर की अपनी मान्यता व एक अलग इतिहास है। जिला कांगड़ा के रक्कड़ उपमंडल में कालीनाथ कालेश्वर महादेव का मंदिर है, इसे मिनी हरिद्वार भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का ऐतिहासिक पांडवकालीन मंदिर है। मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने यहां लंबे समय तक प्रवास किया। इसी दौरान उन्होंने इसका निर्माण किया था। देहरा में कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग के बारे में एक जनश्रुति के अनुसार यह शिवलिंग प्रतिवर्ष एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता चला जा रहा है। जब यह शिवलिंग पूरी तरह से धरती में समा जाएगा तो कलियुग का अंत हो जाएगा।
यह भी मान्यता है कि यहां अंतिम संस्कार से मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। यहां बैसाखी पर लगने वाला मेला भी अपने आप में खास है। उस दिन भी यहां स्नान करने लाखों लोग पहुंचते हैं। सावन माह में भी यहां पर श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है। कोरोना की पहली लहर के दौरान लोगों ने हरिद्वार न पहुंच पाने के कारण यहां साथ बहती ब्यास नदी में मृतकों का अस्थि विसर्जन भी किया। सावन माह शुरू हो चुका है और आज पहला सोमवार है। रविवार को भी मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। इस स्थल में पांच तीर्थों का पानी होने के कारण इस स्थल का नाम पंचतीर्थी भी है, जहां पर श्रद्धालु स्नान करते हैं।
ऐसे हुई ज्योतिर्लिंग की स्थापना
मान्यता यह भी है कि सतयुग में शिवालिक पहाड़ियों में जालंधर दैत्य का आतंक था। उससे परेशान देवता, ऋषि-मुनियों ने अपनी शक्तियों से महाकाली काे जन्म दिया। उन्होंने कुछ ही क्षणों में जालंधर और अन्य दैत्यों का नाश कर दिया। दुष्टों के संहार के बाद भी जब काली का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव खुद युद्ध भूमि पर लेट गए और क्रोधित माता का पैर उनके ऊपर पड़ गया। मां काली को जैसे ही अहसास हुआ तो वह एकदम शांत हो गईं। लेकिन उन्हें बार-बार इस गलती का अफसोस होता रहा। प्रायश्चित के लिए वर्षों तक हिमालय पर विचरती रहीं। एक दिन वह कालेश्वर में ब्यास नदी के किनारे बैठकर भगवान शिव का ध्यान करने लगीं। भोलेनाथ ने उस समय उन्हें दर्शन दिए और उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। तब से इस स्थान को काली और शिव यानी कि कालीनाथ कमलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।
ऐसे पड़ा नाम पंचतीर्थी
कालेश्वर महादेव मंदिर पांडव काल में निर्मित हुआ है। अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे तथा भगवान शिव की अद्भुत पिंडी से मंदिर का निर्माण करवाया था। मान्यता है कि जब पांडव कुंभ मेले के लिए यहां से नहीं जा पाए तो पांच तीर मारकर उन्होंने पहाड़ से जलधारा निकाली थी। यहां पांच तीर्थों का पानी निकला था और इस कारण इस स्थल को पंचतीर्थी भी कहते हैं।
घोषित है राष्ट्रीय महत्व का स्थल
केंद्र सरकार ने करीब दो साल पहले कालेश्वर महादेव को राष्ट्रीय महत्व के स्थलों और स्मारकों में शामिल किया है। इस सूची में शामिल स्थल का केंद्र सरकार खुद संरक्षण करती है। इसमें 20 अन्य स्थलों को भी शामिल किया गया था।
इस तरह पहुंचे मंदिर
यह मंदिर ज्वालाजी से करीब 12 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़-नादौन राजमार्ग पर कूहना से संपर्क मार्ग पर जाना होगा, जहां से इसकी दूरी तीन किलोमीटर है। चिंतपूर्णी की ओर से आने वाले लोगों को नैहरनपुखर से मुड़ना पड़ता है। वहां मंदिर की दूरी करीब 12 किलोमीटर है। देहरा से सुनेहत होते हुए यह स्थल छह किलोमीटर दूर है। यहां के लिए बस सहित टैक्सी सुविधा भी उपलब्ध है।