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हिमाचल में यहां बसते हैं बिजली महादेव, मान्‍यता- भगवान बिजली के रूप में अपने ऊपर लेते हैं संकट, खंडित हो जाती है शिवलिंग

Himachal Pradesh Famous Temple Bijli Mahadev कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर समुंद्र तल से 7874 फीट की ऊंचाई पर मथान स्थित बिजली महादेव मंदिर के अंदर पिंडी पर हर साल बिजली गिरती है जिसके बाद पिंडी पर लगाया मक्खन का लेप खंडित हो जाता है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Sun, 17 Jul 2022 07:53 AM (IST)
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कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर समुंद्र तल से 7874 फीट की ऊंचाई पर मथान स्थित बिजली महादेव मंदिर

कुल्लू, कमलेश वर्मा। Himachal Kullu Famous Temple Bijli Mahadev, जिला कुल्लू में यूं तो अनेक धार्मिक स्थल हैं, लेकिन बिजली महादेव एक ऐसा धार्मिक व रमणीय स्थल है, जो अपनी सुंदरता व विहंगम दृश्य से लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। यहां पर आज भी भगवान शिव मंदिर के पुजारी को हर साल स्वप्न देकर आदेश देते हैं। कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर समुंद्र तल से 7874 फीट की ऊंचाई पर मथान स्थित बिजली महादेव मंदिर के अंदर पिंडी पर हर साल बिजली गिरती है, जिसके बाद पिंडी पर लगाया मक्खन का लेप खंडित हो जाता है। हैरानी की बात यह है कि हर वर्ष गिरने वाली बिजली का कोई समय निर्धारित नहीं होता है। यह कभी भी किसी भी समय पिंडी पर गिरती है, जिसके बाद स्वयं भोलेनाथ मंदिर के पुजारी को स्वप्न देकर पिंडी के ऊपर लगे मक्खन के लेप के खंडित होने की बात बताते हैं।

इसके बाद उसी रात या दिन को मंदिर के पुजारी व सहयोगी फिर से पिंडी को मक्खन का लेप करते हैं। आज तक आसमानी बिजली ने कभी किसी प्रकार की जनहानि नहीं की है। मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव युगों-युगों से तप योग समाधि द्वारा विराजमान हैं। सृष्टि की वृष्टि में इस स्थान को बिजली महादेव मंदिर को जालंधर असुर के वध से जोड़ा गया है व दूसरे नाम से इसे कुलांत पीठ भी कहा जाता है। जब भी पृथ्वी पर भारी संकट आन पड़ता है तो भगवान शिव जीवों के उद्धार के लिए संकट को बिजली के प्रारूप में पिंडी रूप में अपने ऊपर धारण करते हैं।

मंदिर के पुजारी मदन के अनुसार यहां पर तीन माह जनवरी से लेकर मार्च तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और शिवरात्रि के दिन मंदिर को खोला जाता है। मंदिर के बाहर लगभग 50 फीट की ऊंचाई पर पेड़ पर लगाए गए त्रिशूल से होकर बिजली पिंडी पर गिरती है, जिसके बाद पिंडी पर लगा मक्खन का लेप स्वयं ही खंडित हो जाता है। मंदिर में सावन मास के मेलों के दिन प्रदेशभर से श्रद्धालु बिजली महादेव में भगवान शिव की पावन पिंडी के दर्शन करते हैं।

बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिराते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी की दूरी करीब सात किलोमीटर है।

बिजली महादेव की कहानी

भारत में भगवान शिव के अनेक अद्भुत मंदिर हैं, उन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित बिजली महादेव है। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

यहां रहता था कुलांत राक्षस

कुल्लू घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहुल स्पीति से मथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीवजंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे। भगवान शिव कुलान्त के इस विचार से से चिंतित हो गए। बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलान्त पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलान्त के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलान्त मारा गया। कुलान्त के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया। उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा की पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलान्त से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है। कुलांत दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग खंडित हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।

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