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Shardiya Navratri: भक्‍तों के दुख हरती है मां चिंतपूर्णी, ध्‍यान करने मात्र से दूर हो जाती है चिंता, बेहद रोचक है इतिहास व मान्‍यता

Chintpurni Mata Temple दूवभूमि हिमाचल प्रदेश में कई मंदिर हैं। धर्मशाला मुबारिकपुर मार्ग पर भरवाईं से करीब दो किलोमीटर दूर मां चिंतपूर्णी का मंदिर है। मां चिंतपूर्णी भक्तों के दुख हरने वाली हैं। चिंता को दूर करने पर ही मां का नाम चिंतपूर्णी पड़ा।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Updated: Thu, 29 Sep 2022 07:49 AM (IST)
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श्री चिंतपूर्णी माता का का सुंदर भवन।
चिंतपूर्णी, जागरण टीम। Chintpurni Mata Temple, धर्मशाला-मुबारिकपुर मार्ग पर भरवाईं से करीब दो किलोमीटर दूर मां चिंतपूर्णी का मंदिर है। मां चिंतपूर्णी भक्तों के दुख हरने वाली हैं। चिंता को दूर करने पर ही मां का नाम चिंतपूर्णी पड़ा। हर साल हर कोई बड़े ही धूमधाम से शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजा करता है और सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना करता है। मां अत्यंत दयालु है। शुंभ व निशुंभ दैत्यों से हजारों वर्ष युद्ध करके थकी-हारी योगनियों की भूख शांत करने के लिए उन्होंने अपना मस्तिक छिन्न कर दिया था।

मां का ध्‍यान करने मात्र से ही दूर हो जाती है चिंता

यह शक्ति स्थल भारतवर्ष के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मां छिन्नमस्तिका इस क्षेत्र में जलधर दैत्य की आराधना से स्थापित हुई थीं। जलधर दैत्य ने कठोर तपस्या करके त्रेता युग में छिन्नमस्तिका को चिंतपूर्णी में स्थापित किया था। उसके पश्चात मुगलों के अत्याचार व उनके द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को नष्ट कर देने से लोग इस शक्तिस्थल की महता को भूल गए। 1400वीं ई. में दुर्गा भक्त संत माईदास इस स्थान से गुजर रहे थे। तभी मां ने बाबा माईदास को साक्षात दर्शन देकर वहीं पर उनका मंदिर बनाकर आराधना करने के लिए कहा। बाबा माईदास ने निर्जन जंगल में मां के कहे अनुसार जब एक पत्थर को उखाड़ा था तो उसके नीचे से पानी की धारा बह निकली। बाबा माईदास ने वहीं रहकर मां की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। करीब 700 साल बाद भी बाबा माईदास के वंशज ही चिंतपूर्णी में पूर्व प्रचालित पूजा-अर्चना कर रहे हैं। कलियुग में तो मां का ध्यान करने मात्र से ही भक्तों की सारी चिंता दूर हो जाती है।

शीघ्र फल देने वाली मानी जाती हैं छिन्‍नमस्तिका

विश्वभर में प्रचलित कुल व कुल परंपराओं की दस महाविद्याओं में से एक श्री छिन्नमस्तिका भक्तों को शीघ्र फल देने वाली मानी जाती हैं। भगवान शिव व पार्वती के तेज से उत्पन्न मां छिन्नमस्तिका के समक्ष सच्चे मन से की गई मनोकामना पूरी होती है। भगवान शिव के वरदान से यहां की गई साधना शीघ्र फलित होती है। लुप्तप्राय: हो चुकी तंत्र साधना को पुन: प्रचारित करने का श्रेय जालंधर पीठ में उपासना करने वाले साधकों को ही जाता है। कांगड़ा के आचार्य शंभूनाथ व उनकी शिष्य मंडली के अभिनव दासगुप्त का नाम आज भी प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलता है।

माता करती है हर मनोकामना पूरी

चिंतपूर्णी माता मंदिर के पुजारी राजेश कालिया का कहना है मां चिंतपूर्णी सभी भक्तों की चिंता हरती हैं। मां के चरणों में जिस भक्त ने भी सच्चे मन से शीश नवाया, मां उसकी हर मनोकामना पूरी कर देती है। मां चिंतपूर्णी के मंदिर में लाखों श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा है।

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