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शिमला-कालका रेल ट्रैक के निजीकरण के लिए 45 दिन में होगा सर्वेक्षण, सालाना 100 करोड़ का हो रहा घाटा

Shimla Kalka Rail Track देश के चार पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरती नैरोगेज रेललाइन जल्द निजी हाथों में जा सकती हैं। 45 दिन में सर्वे रिपोर्ट बनकर तैयार होगी। हिमाचल का शिमला-कालका हेरिटेज रेल ट्रैक पश्चिम बंगाल का सिलीगुड़ी-दार्जिलिंग तमिलनाडु का नीलगिरी और महाराष्ट्र का नेरल-माथेरान ट्रैक इसमें शामिल है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Tue, 16 Feb 2021 10:44 AM (IST)Updated: Tue, 16 Feb 2021 10:44 AM (IST)
हिमाचल प्रदेश का शिमला-कालका हेरिटेज रेल ट्रैक।

सोलन, सुनील शर्मा। Shimla Kalka Rail Track, देश के चार पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरती नैरोगेज रेललाइन जल्द निजी हाथों में जा सकती हैं। इस बदलाव के लिए 45 दिन में सर्वे रिपोर्ट बनकर तैयार होगी। हिमाचल का शिमला-कालका हेरिटेज रेल ट्रैक, पश्चिम बंगाल का सिलीगुड़ी-दार्जिलिंग, तमिलनाडु का नीलगिरी और महाराष्ट्र का नेरल-माथेरान ट्रैक इसमें शामिल है। ये सालाना करीब 100 करोड़ रुपये घाटे पर चल रहे हैं। प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर ये रेलवे ट्रैक पूरी दुनिया में मशहूर हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में अब तक यहां पर्यटकों की खास दिलचस्पी नहीं बन पा रही है। घाटे और सुविधाओं के अंतर को पूरा करने के लिए निजी कंपनियों को इनके संचालन के लिए न्योता दिया जा सकता है। रेल भूमि विकास प्राधिकरण ने रेल मंत्रालय की तरफ से मिले संकेत के बाद चारों माउंटेन नैरोगेज ट्रैक पर सर्वेक्षण शुरू करवा दिया है। दिल्ली की ही एक कंसल्टेंसी कंपनी सर्वेक्षण करेगी, जिसे मार्च तक पूरा किया जा सकता है।

घाटे में देश के माउंटेन नैरोगेज रेलवे सेक्शन

माउंटेन रेलवे में शामिल ये चार सेक्शन डीजल के माध्यम से चलाए जाते हैं और किराये की कम दरों के चलते रेलवे बोर्ड को इन्हें चलाना मुश्किल हो रहा है। अब इन्हें निजी कंपनी को देने की तैयारी है।

आठ जुलाई 2008 को बना विश्व धरोहर

वर्ष 1903 में शुरू किए गए कालका-शिमला रेलवे ट्रैक को अब 118 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अंग्रेजों की ओर से बनाए इस रेलवे ट्रैक को आठ जुलाई 2008 को विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया था। इससे इस मार्ग को ख्याति तो मिली, लेकिन यहां लगातार सुविधाओं में कमी होती गई। इस ट्रैक पर कनोह के पास कई मंजिला पुल है। इसी तरह इस मार्ग की सुंदरता को चार चांद लगाने वाली 103 सुरंगें, 300 के करीब छोटे बड़े आकर्षक पुल, अंग्रेजों के समय के बनाए गए 22 रेलवे स्टेशन हैं।

क्यों पड़ रही निजीकरण की जरूरत

वैसे तो इसके निजीकरण का बड़ा कारण हर वर्ष होने वाला आर्थिक घाटा है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यहां लगातार सुविधाओं की कमी देखी जा रही है। यहां चलने वाले इंजन बीच जंगल में हांफ जाते हैं। रेलवे स्टेशनों पर कोई आकर्षण शेष नहीं है, पेयजल, ठहरने की व्यवस्था, शौचालयों व कैंटीन तक की व्यवस्थाएं यहां बेहतर नहीं है।

रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट होगा, कितना घाटा

रेल भूमि विकास प्राधिकरण दिल्ली सदस्य राजस्व मामले पीके अग्रवाल का कहना है रिपोर्ट में स्पष्ट हो पाएगा कि कितना घाटा रेलवे को चार सेक्शन पर हो रहा है। इसके साथ ही अगर यह ट्रैक निजी कंपनी को दिए जाएंगे तो क्या नियम व शर्तें लागू की जाएंगी। मंत्रालय की तरफ से आए निर्देशों के बाद ही निजीकरण की तरफ आगे बढ़ा जा रहा है। रिपोर्ट में अगर इन ट्रैक को प्राइवेट करने की गुंजाइश नजर आएगी तो मार्च 2022 तक यह प्रक्रिया पूरी करने के प्रयास होंगे।


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