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Jagran Sanskarshala 2022: इंटरनेट का लाभ उठाएं, अनावश्यक बातों से बचें

Jagran Sanskarshala 2022 आज की नौजवान पीढ़ी वास्तविक दुनिया की तुलना में आभासी दुनिया में अधिक रहती है। वे आभासी दुनिया के लोगों से बातचीत करने में इतने अभ्यस्त हैं कि यह नहीं जानते कि वास्तविक लोगों के साथ कैसे बातचीत करें।

By Jagran NewsEdited By: Virender KumarUpdated: Thu, 20 Oct 2022 08:08 PM (IST)
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Jagran Sanskarshala 2022: इंटरनेट का लाभ उठाएं, अनावश्यक बातों से बचें।
Jagran Sanskarshala 2022, एक आभासी दुनिया, जिसे वर्चुअल स्पेस भी कहा जाता है, कंप्यूटर सिम्युलेटेड वातावरण है। आभास का दूसरा नाम मृग मरीचिका है। कंप्यूटर आभासी वास्तविकता ने हमें आभासी दुनिया से परिचित करवाया है। आभासी दुनिया में कोई भी किसी भी पहचान को ग्रहण कर सकता है और ऐसी पहचान को अवतार कहा जाता है। यह इसके आकर्षण का हिस्सा है, लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। आज की नौजवान पीढ़ी वास्तविक दुनिया की तुलना में आभासी दुनिया में अधिक रहती है। वे आभासी दुनिया के लोगों से बातचीत करने में इतने अभ्यस्त हैं कि यह नहीं जानते कि वास्तविक लोगों के साथ कैसे बातचीत करें। आभासी दुनिया एक ऐसी जगह है जहां अज्ञात खतरे छिपे हैं। शिक्षा की दुनिया सामने आने वाली है जो इनवेक्ट मेटावर्सिटी है। इनवेक्ट मेटावर्सिटी दुनिया का अपनी तरह की पहली थ्रीडी लर्निंग वाला वर्चुअल प्लेटफार्म होगा। इसमें दुनिया भर के छात्र धरती के किसी भी कोने में मौजूद रहकर दूसरे विद्यार्थियों और अध्यापकों के साथ कम्युनिकेशन कर सकेंगे। इतना ही नहीं जैसे कि छात्र कोचिंग या स्कूल से एक साथ घूमते हुए बाहर आते हैं, वह इस वर्चुअल दुनिया में एक दूसरे के साथ घूम फिर सकेंगे। इससे उन्हें अलग-अलग चीजों को एक समय पर सीखने का मौका मिलेगा।

आनलाइन रहने की आदत ठीक नहीं

आभासी दुनिया से जुड़े कई व्यावहारिक पहलू और जोखिम लोगों को यहां समय बिताने से रोक रहे हैं। यह समझ और इस हकीकत की स्वीकार्यता दोनों ही जरूरी भी है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक संगठन के मुताबिक इंटरनेट मीडिया प्रयोग करते हुए अब आमजन यह जानने और मानने लगे हैं कि आवश्यकता हो या अवकाश, हरदम आनलाइन रहने की आदत कई व्याधियां भी पैदा करने लगी हैं। बीते दिनों आई लाइफलाक की नाटन साइबर सेफ्टी-2021 इन साइट रिपोर्ट के मुताबिक कोविड महामारी के कारण लगभग हर तीन में से दो यानी 66 प्रतिशत लोगों को आनलाइन रहने की आदत लग गई है। रिपोर्ट बताती है कि भारत व्यस्क काम या शैक्षणिक गतिविधियों के बजाय औसतन प्रतिदिन 4.40 घंटे स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं।

कोरोनाकाल में भारत में बढ़ा स्क्रीन टाइम

यूके के फीलगुड कांट्रेक्ट के आंकड़ों के अनुसार कोरोनाकाल में भारत में स्क्रीन टाइम की बढ़ोतरी और नजर की कमजोरी में गहरा संबंध देखा गया है। जमीनी हकीकत से दूर आज हम ऐसे कालखंड में प्रवेश कर चुके हैं जहां हमारे चारों तरफ सब कुछ है भी और नहीं भी। फेसबुक और वाट्सएप जैसे कई प्लेटफार्म पर आपके सैकड़ों मित्रों की लंबी सूची होगी, लेकिन बमुश्किल गिने-चुने ही ऐसे मित्र होंगे जो हकीकत में आपकी मित्र मंडली से संबंध रखते होंगे।

-पूजा महाजन, प्रधानाचार्य, धौलाधार पब्लिक स्कूल, शामनगर, धर्मशाला

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