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सुबाथू छावनी में गुग्गा जाहरवीर का मंदिर बनाने के पीछे यह है कहानी

गुग्गा वीर का गुणगान सुबाथू की पहचान दो सौ वर्षो से भी पुराना इतिहास है गुग्गा माड़ी का श्री कृष्ण जन्मोत्सव के 15 दिन के बाद सुबाथू में गुग्गा जाहरवीर के गुणगान को लेकर चार दिवसीय जिलास्तरीय आयोजन होता है।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Fri, 02 Sep 2022 05:01 PM (IST)
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सुबाथू छावनी में गुग्गा जाहरवीर का मंदिर बनाने की पीछे यह है कहानी
सुबाथू, शारदा नंद गौतम। गुग्गा वीर का गुणगान सुबाथू की पहचान दो सौ वर्षो से भी पुराना इतिहास है गुग्गा माड़ी का श्री कृष्ण जन्मोत्सव के 15 दिन के बाद सुबाथू में गुग्गा जाहरवीर के गुणगान को लेकर चार दिवसीय जिलास्तरीय आयोजन होता है। इस मर्तबा यह आयोजन दो सिंतबर से पांच सितंबर तक हो रहा है। प्रदेश ही नहीं अपितु देश की प्राचीन ऐतिहासिक सुबाथू छावनी में श्री गुग्गा जाहरवीर के चार दिवसीय गुणगान का करीबन दो सौ वर्षो पुराना इतिहास है। सुबाथू में गुग्गा ाहरवीर के जन्म स्थान राजस्थान के हनुमानगढ़ में स्थापित गुग्गा माड़ी से मिट्टी व ईंट को लाकर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया है।

बुजुर्ग बताते हैैं कि छावनी के दो व्यक्तियों को सपने में यह आदेश हुए कि यहां पर गुग्गा जाहरवीर की स्थापना की जाए। जिसके बाद उन दोनों व्यक्तियों ने राजस्थान के हनुमान गढ़ में स्थापित गुग्गा माड़ी से मिट्टी व ईंट तो लेकर आ गए। मगर अब दुविधा यह पैदा हो गई कि माड़ी को कहां पर बनाया जाए। लिहाजा इसका हल निकाला गया और एक काले बकरे के गले में घंटी बांध दी गई और उसे खुला छोड़ दिया। बकरा सारा दिन छावनी में घूमता रहा और जिस स्थान पर बैठा वहां पर माड़ी की स्थापना की गई। कालांतर में यह माड़ी अब भव्य मंदिर का रूप ले चुका है। प्रतिवर्ष यहां पर चार दिवसीय मेले का आयोजन होता है।

सुबाथू छावनी में रहने वाले निवासी इस चार दिवसीय आयोजन में विशेष तौर पर आते है। इतना ही नहीं देश-विदेश में बस चुके सुबाथू वासी भी यहां पर आने के लिए इसी आयोजन को चुनते हैैं क्योंकि मान्यता है कि गुग्गा जाहरवीर की पूजा और आर्शीवाद लेने से उनकी वर्षभर रक्षा होती है। गुग्गा जाहरवीर का जन्मस्थान राजस्थान में है। गोरखनाथ जी के आर्शीवाद से मां बाछल की कोख से गुग्गा जाहरवीर का जन्म हुआ था। गुग्गा जाहरवीर की छड़ी का विशेष महत्व है। साधक पूरी भक्ति भावना से इसकी पूजा करता है और इसे विशेष तौर पर तैयार किया जाता है।

मान्यता है कि जाहरवीर छड़ी में निवास करते हैैं। सिद्ध छड़ी के संबंध में यह भी बताते हैैं कि नाहर सिंह वीर और सावल सिंह वीर समेत कई वीरों का पहरा इसमें रहता है। छड़ी लोहे की सांकले (सौंगल) होती हैैं जिस पर एक मुठा लगा होता है। सावन और भादो माह में छड़ी को निकाल कर पूरे नगर में घुमाई जाती है। इसे दाहिने कंधे पर रखा जाता है। मान्यता है कि नगर में इसे घूमाने से रोग बाधाएं नहीं होती और अगर हो तो वह दूर होती है। छड़ी को लाल या भगवे रंग के कपड़े पर रखा जाता है।

हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन की सुबाथू छावनी में चार दिवसीय मेले में जहां पारंपरिक भव्य दंगल आकर्षण का कारण रहता है वहीं खेलों और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करवाए जाते हैैं। इस मर्तबा यह आयोजन जिलास्तरीय होगा। क्योंकि विगत वर्ष इसे जिलास्तरीय घोषित किया गया है।

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