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150 वर्षों बाद कूंथल पशोग के डोमेश्वर मंदिर में स्थापित होगा कुरूड़

कुंथल पशोग में लगभग 150 वर्षों के बाद डोमेश्वर देवता के मंदिर में 30 दिसंबर को कुरुड़ स्थापना और शांद महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। महायज्ञ 30 दिसंबर की शाम को ददौण और 31 दिसंबर को डोमेश्वर महाराज के भव्य मंदिर पर कुरुड़ की स्थापना की जाएगी।

By Richa RanaEdited By: Updated: Wed, 29 Dec 2021 03:38 PM (IST)
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डोमेश्वर देवता के मंदिर में 30 दिसंबर को कुरुड़ स्थापना और शांद महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। जागरण

राजगढ़, संवाद सूत्र। राजगढ़ ब्लाक के दूरदराज परघैल क्षेत्र के अंतर्गत गांव कुंथल पशोग में लगभग 150 वर्षों के बाद डोमेश्वर देवता के मंदिर में 30 दिसंबर को कुरुड़ स्थापना और शांद महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इस महायज्ञ में 30 दिसंबर की शाम को ददौण और 31 दिसंबर को डोमेश्वर महाराज के भव्य मंदिर पर कुरुड़ की स्थापना की जाएगी। इस शांद महायज्ञ में जिला सिरमौर और शिमला के लगभग 15 देवी देवता व उनके कारदार पहुंच कर इस महायज्ञ की शोभा बढ़ाएंगे और आम जनमानस को अपना आशीर्वाद देंगे।

राष्ट्रपति पुरस्कार से विभूषित प्रदेश के जानेमाने साहित्यकार विद्यानंद सरैक ने बताया कि कुरुड को मंदिर का मुकुट माना जाता है। यह देवदार के समूचे विशाल वृक्ष से निर्मित किया जाता है । इसे ढलवां छत की भीतरी नोक जोकि मंदिर की छत का मध्य भाग होता है, अर्थात गर्भगृह के ठीक ऊपर का हिस्सा, वहां पर स्थापित किया जाता है। जिस दिन कुरुड का निर्माण होता है, उस दिन इसके निर्माण में जुटे सभी देवलु व्रत करते हैं । मुहूर्त देखकर पेड़ का पूजन किया जाता है। तत्पश्चात इसका निर्माण आरम्भ किया जाता है। निर्माण पूरा होने के पश्चात इसकी दिन रात जगाई करनी पड़ती है। जनश्रुति के अनुसार जब कुरुड़ को उठा लिया जाता है, तो इसे भूमि पर नहीं रख जा सकता है । जहां इसे स्थापित करना है वहीं रखा जाता है।

कुरुड़ स्थापना एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन जहां इतनी देव आस्था और देवता का आशीर्वाद हो,तो वहां असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाता है। विद्यानंद सरैक ने बताया कि इससे पहले शान्द महायज्ञ इस मंदिर में बीते वर्ष 1992 में आयोजित किया गया था। इस दिन नैरी रात पैशी की जाती है। अर्थात प्रकाश के दिव्य तेज से अंधेरे को दूर भगाया जाता है। इस दिन को ददौण का नाम भी दिया गया है और देवता जी का प्रसाद बांटा जाता है। इस मंदिर के जीर्णोंद्धार में क्षेत्र के लोगों के अतिरिक्त हिप्र भाषा एवं संस्कृति विभाग से भी धनराशि का प्रावधान किया गया था। डोमेश्वर महाराज कमेटी के सदस्य नम्बरदार करम सिंह , अत्तर सिंह , दिलीप सिंह , चेत राम, जीत सिंह एवं देवता जी के प्रतिनिधि देवा केवल राम, देव ठौड़ तपेन्द्र चैहान ने शताब्दी के इस महायज्ञ में लोगों से अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आह्वाहन किया है। पूर्व देवा रूपसिंह चैहान ने बताया कि इससे पहले देवता को स्नान के लिए कांगड़ा के नगरकोट ले जाया जाता है।

वजीर संत राम मनसैक ने कहा है कि डोम देवता दिल्ली तक अपना आधिपत्य रखते हैं। डोमेश्वर देवता की कल्याणे 18 रियासतों एवं 22 ठकुराईंयों में फैली हैं। गांव के वरिष्ठ बुजुर्ग लगनू राम जी एवं गुलाब सिंह जी ने इस यज्ञ में करीब 6000 से 8000 लोगों के शामिल होने का अनुमान लगाया है। हिमाचल में लोगों की देवताओ पर आस्था देखते ही बनती है। आस्था एवं श्रद्धा को इंगित करने वाली हिमाचल की इस पावन धरा को इसलिए ही देवभूमि की संज्ञा दी गई है।

रमेश सरैक ने बताया कि कांगड़ा स्थित मंदिर में अपना स्नान करने के पश्चात देवता महाराज बीते काफी दिनों से बाहर तंबू रखा गया है। जहां पर गांव के सभी लोग डेरा लगाए हुए हैं और पूरी जोरों से इस महायज्ञ की तैयारियां गांव के सभी नौजवान बुजुर्ग महिलाएं इस कार्य में जुटे हैं। कुरूड़ और शांद महायज्ञ पूर्ण होने पर ही देवता मंदिर में प्रवेश करेंगे।