Himachal News: पांच देवता ब्यास नदी के दूसरी छोर पर मनाते हैं दशहरा, नहीं करते नदी पार; आज भी कायम है पुरातन परंपरा
दशहरा उत्सव में आज भी नदी पार नहीं करते देवी-देवता
संवाद सहयोगी, कुल्लू। देवी देवता के देव महाकुंभ में आज भी सदियों पुरानी देव परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। अब तक न ही यह परंपरा टूटी न ही इससे निभाने के लिए देव कारकूनों की हिम्मत कम हुई। ऐसी परंपराएं है जिससे देख सुन आप भी हैरान हो जाएंगे। इसमें से एक पुरातन परंपरा आज भी कायम है। घाटी के पांच देवता आज भी दशहरा उत्सव में नदी पार नहीं करते है। बल्कि ब्यास नदी के दूसरी छोर पर आंगु डोभी नामक स्थान पर सात दिन दशहरा उत्सव मनाते हैं।
ये देवता नहीं लेते भाग
इसमें देवता आजीमल नारायण सोयल, सरवल नाग सौर, शुकली नाग तांदला, जीव नारायण जाणा, जमदग्नि ऋषि मलाणा के देवता आज भी दशहरा उत्सव देव महाकुंभ में भाग नहीं लेते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए इस बार भी इन देवताओं ने ब्यास के उस पार खराहल घाटी के आंगु डोभी में डेरा डाला है। देव आदेश की वजह से मेले में शामिल नहीं होते। देवता के पास राजा हाजिरी भरता है और आशीर्वाद लेता है।
देवता के पास भरते हैं राजा हाजरी
कारदार टिकम राम नेबताया कि दशहरा उत्सव में नदी पार रात नहीं गुजारनी है। देवता नाराज हो जाते हैं जबकि दिन को लोग दशहरा उत्सव को देखने जाते थे और शाम को वापिस आ जाते थे। पांच देवता पुरातन समय से यहीं पर विराजमान होत हैं। जब से दशहरा उत्सव शुरू हुआ है तब से देवता यहीं पर रहते हैं।
यह देवता दरिया पार नहीं करते हैं। हम जब सोचने समझने वाले हुए हैं तब से इसी परंपरा को निभाते आए हैं। हमारे पूर्वज भी इसी परंपरा को निभाते थे। बताया जाता है कि जब से दशहरा उत्सव शुरू हुआ है तब से देवता यही पर दशहरा मनाते हैं। देवता का पंजीकरण करने कुल्लू जाते हैं और वापिस आ जाते हैं।
देवता ब्यास नदी नहीं करते पार
दोत राम अध्यक्ष देवी देवता कारदार संघ जिला कुल्लू ने बताया कि दशहरा उत्सव आज भी पुरानी परंपरा को संजोए हुए हैं। दशहरा उत्सव में आज भी घाटी के पांच देवता ब्यास नदी (दरिया) पार दशहरा मनाते हैं। यह देवता ब्यास नदी पार नहीं करते हैं।
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