हिमाचल प्रदेश की पर्यटन माला का अनूठा मोती है जलोड़ी जोत, ट्रेकिंग संग देखिए प्राकृतिक सौंदर्य
यूं तो कुल्लू में घूमने वाली बहुत सी जगहें हैं। लेकिन यहां एक ऐसी जगह भी है जिसे पर्यटक बहुत पंसद करते हैं। घूमने और सुकून के हिसाब से जलोड़ी जोत एक बेहतर स्थान है। खास बात है कि यह जगह सर्दियों में तीन महीने बर्फ से ढकी रहती है। यहां शिमला से वाया आनी के रास्ते भी आ सकते हैं। जलोड़ी जोत शिमला से 148 किलोमीटर दूर है।
दविंद्र ठाकुर, कुल्लू। कुल्लू जिले में बारह महीने पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। कुल्लू आने वाले अधिकतर पर्यटक मनाली का रुख करते हैं। कई पर्यटक मणिकर्ण भी जाते हैं।
इसके अतिरिक्त कुल्लू में घूमने लायक एक और स्थान है, वो है जलोड़ी जोत। इस जोत के आसपास देखने लायक कई स्थल हैं। जलोड़ी जोत में गर्मियों व बरसात में जा सकते हैं। यहां पर सर्दियों में लगभग तीन महीने बर्फ रहती है। तब इस क्षेत्र में जाना संभव नहीं होता।
पर्यटकों का लगा रहता है जमावड़ा
जलोड़ी जोत के साथ रघुपुरगढ़ और लांबालांबरी में गर्मियों में भी सर्दी का एहसास होता है। ठंडी हवा के साथ पेड़-पौधों की छांव का आनंद लेने पर्यटक खिंचे चले आते हैं।
यह क्षेत्र औट-लुहरी-सैंज राष्ट्रीय राजमार्ग में आता है। यहां ट्रेकिंग स्थल भी हैं। लगभग पांच घंटे पैदल चलकर रघुपुरगढ़ व लांबालांबरी मनमोहक जगह आती है।
इस ट्रेक पर जलोड़ी जोत से पैदल पहुंचा जा सकता है। खरशू, देवदार, रेई और तोश के घने जंगलों के बीच घूमने का अपना ही मजा है। जलोड़ी जोत में काली माता का मंदिर भी है।
यहां घास के खूबसूरत मैदान हैं। यहां कुछ पल बैठकर सुकून ले सकते हैं। यहां से सभी दिशाओं में दूर-दूर तक देख सकते हैं। बर्फ से ढके पहाड़ करीब दिखते हैं। इस स्थान पर आकर ज्यादातर पर्यटक तस्वीरें खींचते हैं और इस खूबसूरत स्थल के वीडियो बनाते हैं।
सरयोलसर झील: जलोड़ी जोत से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर सरयोलसर झील है। सरयोलसर झील पहाड़ियों और ऊंचे देवदार के पेड़ों से घिरी है।
झील के पास बूढ़ी नागिन माता जी का मंदिर है। बूढ़ी नागिन को नाग देवताओं की मां माना जाता है। लोग माता को मन्नत के रूप में देसी घी की धार चढ़ाते हैं। यह धार लगभग एक किलोमीटर में फैली झील के चारों ओर देते हैं।
लोग माता से अपने पशुओं की रक्षा व परिवार की सुख व समृद्धि के लिए देसी घी की मन्नत रखते हैं। मुराद पूरी होने पर यहां खासकर महिलाएं देसी घी चढ़ाती हैं।
इस झील के पास आभी चिड़िया रहती है। यह चिड़िया सरयोलसर झील में पत्ता व तिनका नहीं गिरने देती। कोई पत्ता व तिनका गिरता है तो चिड़िया उसे उठाकर ले जाती है।
तीर्थन घाटी : तीर्थन घाटी खूबसूरत जगह है। तीर्थन घाटी का नाम तीर्थन नदी पर पड़ा है, जो इसके साथ बहती है। यहां पर ट्रेकिंग, मछली पकड़ने व ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भी जा सकते हैं।
इसमें पश्चिमी ट्रैगोपैन पक्षी पाया जाता है। यह पक्षी चमकीले पंखों वाला तीतर है। इसकी छोटी पूंछ होती है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में हिम तेंदुए भी देखने को मिलते हैं। यहां पर ट्री हाउस भी देख सकते हैं।
लकड़ी की बावड़ियां: बताते हैं कि रघुपुरगढ़ में पांडवों ने भी कुछ समय बिताया था। यह स्थान पांडव खेत के नाम से भी जाना जाता है। यहां अंग्रेज भी भ्रमण करने आते थे।
यहां पर लगभग छह सौ वर्ष पुरानी तीन बावड़ियां है। ये बावड़ियां लकड़ी की बनी हुई हैं। इन बावड़ी का पानी पीकर लोग यात्रा शुरू करते थे। देवता की पूजा के लिए भी इन्हीं बावड़ियों से पानी लाया जाता है। प्रशासन इन बावड़ियों पर डाक्यूमेंट्री तैयार कर रहा है।
जहाज, बस व टैक्सी उपलब्ध
जलोड़ी जोत पहुंचने के लिए विमान से कुल्लू के भुंतर एयरपोर्ट पर आना होगा। यहां से टैक्सी या बस के जरिए जलोड़ी जोत पहुंचा जा सकता है।
दिल्ली, अमृतसर, देहरादून से भुंतर के लिए उड़ानें आती हैं। दिल्ली से भुंतर का किराया लगभग 7,113 रुपये है। भुंतर से आगे बस या टैक्सी से जलोड़ी जोत जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़ और पंजाब के अन्य स्थानों से बस से भी कुल्लू पहुंच सकते हैं।
लग्जरी और सामान्य दोनों तरह की बसें भुंतर तक आती हैं। भुंतर से औट व बंजार होते जलोड़ी जोत पहुंचेंगे। भुंतर से जलोड़ी जोत लगभग 80 किलोमीटर है। शिमला से वाया आनी आते हुए भी आ सकते हैं। शिमला से जलोड़ी जोत लगभग 148 किलोमीटर है।
रहने व खाने की व्यवस्था
जलोड़ी जोत के सोझा और घियागी में गेस्ट हाउस और होम स्टे आसानी से मिल जाते हैं। आनी की तरफ खनाग में रहने व खाने की व्यवस्था है। यहां चावल, दाल, चपाती मिल जाती है।
स्थानीय व्यंजनों में सिड्डू, चिलडू व देसी घी मिलेगा। इसके अतिरिक्त यहां पंजाबी व चाइनीज खाना भी मिल जाता है।
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