Kullu Dussehra: न रामलीला...न रावण दहन, देवलोक से पहुंचते हैं 300 से अधिक देवी-देवता, जानिए क्या है मान्यता और इतिहास
कुल्लू दशहरा एक अनोखा उत्सव है जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में मनाया जाता है। यह उत्सव सात दिनों तक चलता है और भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस उत्सव में 300 से अधिक देवी-देवता भाग लेते हैं और अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है और इसका एक अनोखा महत्व है।
डिजिटल डेस्क, कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में दशहरा उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव नवरात्रि के अंतिम दिन राणव वध दशहरा के अगले दिन से शुरू होता है। सात दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है।
भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जिले भर के 332 देवी-देवताओं को प्रशासन की ओर से निमंत्रण दिए जाते हैं। सभी देवी-देवता भगवान रघुनाथ से मिलने आते हैं।देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का रविवार को आगाज हो गया है। सात दिनों तक इसकी धूम रहेगी। पूरे इलाके में भक्तिमय माहौल बना रहेगा। देव समागम के प्रति अटूट आस्था के चलते रथ खींचने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। देश-विदेश से भी लोग पहुंचते हैं।
कुल्लू दशहरा की विशेषता
खास बात है कि इस दशहरे उतस्व के दौरान कोई रामलीला नहीं होती है और ना ही रावण का दहन होता है। कुल्लू दशहरा का बहुत मान्यता है। यह हर साल मनाया जाता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होता है। इस बार 13 अक्टूबर से कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हुआ है। 19 अक्टूबर को इसका समापन होगा।