Kullu History: रामायण और महाभारत से जुड़ा है कुल्लू का इतिहास, पर्यटकों को लुभाते हैं शहर के ये Tourist Places
क्या आप कुल्लू (Kullu) के इतिहास के बारे में जानते हैं? रामायण और महाभारत में इसका जिक्र किया गया है। ग्रंथों में कुल्लू घाटी का अपना महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कुल्लू घाटी को मानव जाति का गढ़ माना जाता है। कहा जाता है कि मानवता के पूर्वज मनु ऋषि ने मनाली की स्थापना की थी जिसे “मनु आल्य” भी कहा जाता है।
डिजिटल डेस्क, कुल्लू। History Of Kullu: कुल्लू... इस जगह का नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर बनकर सामने आती है। उस तस्वीर में ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, चीड़ के पेड़ और नीले रंग की साफ नदियां बहती नजर आती हैं। इनके बारे में सोच कर ही मन खुश हो जाता है। अंतर्मन में ठंडक महसूस होने लगती है। यहां आने के बारे में तो आप हर दिन सोचते ही होंगे। कुछ लोगों को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की इस सुंदर जगह पर आने का मौका मिल भी गया होगा और कुछ अभी ठंड के मौसम में कुल्लू आने का प्लान बना रहे होंगे।
वेद और पुराणों से जुड़ा हुआ है इतिहास
हिमाचल प्रदेश को पहाड़ों की रानी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस जगह का नाता वेदों और पुराणों से जुड़ा हुआ है। क्या आप कुल्लू के इतिहास के बारे में जानते हैं? रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में हिमाचल प्रदेश का जिक्र किया गया है। ग्रंथों में कुल्लू घाटी का अपना महत्व है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कुल्लू घाटी को मानव जाति का गढ़ माना जाता है। कहा जाता है कि जब जमीनी इलाकों में बाढ़ आई थी तब मानवता के पूर्वज मनु ऋषि ने मनाली की स्थापना की थी, जिसे “मनु आल्य” भी कहा जाता है। वहीं विष्णु भगवान के अवतार भगवान परशुराम कुल्लू घाटी में बसे थे। कुल्लू के निरमंड में पौराणिक परशुराम मंदिर को इसका साक्ष्य माना जाता है।
क्या हुआ था ऋषि वशिष्ठ के साथ
वहीं बंजार के पास ब्यास नदी का नाम ऋषि वशिष्ठ ने दिया था, जिसका संदर्भ रामायण में भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उनके पुत्रों की मृत्यु के बाद वह जीवन से उदास हो गए थे। उचट होने के कारण वह अपने हाथ पैर बांध कर नदी में कूद गए, लेकिन पवित्र नदी ने उनके बंधनो को तोड़कर तट पर ला दिया। इसके बाद से ब्यास नदी ‘विपाशा’ व् ‘बंधन की मुक्तिदाता’ के रूप से जानी गई।
अब बारी थी सतलुज की
इतना ही नहीं ऋषि वशिष्ठ ने इसके बाद खुद को सतलुज नहीं में फेंक दिया। पवित्र नदी ने खुद को 100 नालों में विभाजित कर दिया और फिर ऋषि को सूखी भूमि पर ले आई। इसके बाद से सतलुज नदी को ‘सतादरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
महाभारत से जुड़ा इतिहास
जैसा कि बताया गया है कि रामायण के साथ-साथ कुल्लू का इतिहास महाभारत से भी जुड़ा है। महाभारत के अनुसार पांडवों ने भी अपने 13 साल के वनवास का एक हिस्सा कुल्लू में बिताया था। मनाली में हिडिंबा मंदिर, सैंज में शंचूल महादेव मंदिर और निरमंड के देव धनक मंदिर पांडवों के साथ जुड़े हुए हैं।
कुल्लू के पर्यटन स्थल
ये तो रहा कुल्लू का इतिहास, अब बात करते हैं कुल्लू शहर में कुछ ऐसे स्थानों की, जहां देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। ठंड के मौसम में बर्फ देखने के लिए तो जैसे पर्यटकों का तांता लग जाता है।
कुल्लू
प्रकृति की गोद में अपना सौंदर्य बिखेरे कुल्लू शहर में आप आ गए तो ये आपको कभी निराश नहीं करेगा। यहां पहाड़ और बर्फ के अलावा उरुषवती हिमालय लोक कला संग्रहालय, शांबला बौद्ध थंगका कला संग्रहालय, रोरिख कला दीर्घा देखने लायक है। वहीं मंदिरों की बात की जाए तो काली बाड़ी मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर, बिजली महादेरु मंदिर और रघुनाथ मंदिर जरूर जाएं।
मनाली
वन विहार से लेकर कोठी, रोहतांग दर्रा, सोलांग घाटी, हिडिंबा देवी मंदिर, तिब्बती बाजार देखने योग्य है।
वशिष्ठ कुण्ड
मनाली से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर वशिष्ठ कुंड है। यहां पर प्राचीन पत्थरों दो मंदिर बने हुए हैं। ये दो मंदिर एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत दिशा में हैं। एक मंदिर में राम बसे हैं तो दूसरा मंदिर ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है।
मणिकरण
वैसे तो कुल्लू और मनाली समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर है, लेकिन मणिकरण में गर्म पानी का झरना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां भगवान शिव और माता पार्वती के कर्णफूल खो गए थे। तब से इस झरने का पानी गर्म हो गया। हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहां डुबकी लगाने के लिए आते हैं। ये पानी इतना गर्म होता है कि इससे चावल, दाल और सब्जियां तक उबाला जा सकता है।
बौद्ध मठ
मनाली मे मौजूद बौद्ध मठ बेहद सुंदर और लोकप्रिय है। कुल्लू के ज्यादातर बौद्ध शरणार्थी यहां इस मठ में बसे हुए हैं। यहां का गोधन थेकचोकलिंग मठ काफी प्रसिद्ध है। इस मठ को तिब्बती शरणार्थियों ने सन 1969 में बनवाया था।
रोहतांग दर्रा
मनाली से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रोहतांग दर्रा। एडवेंचर करने का शौक रखने वाले पर्यटकों को रोहतांग पसंद आता है। ये समुद्र तल से 4111 मीटर की ऊंचाई पर है। इसके पश्चिम में एक खूबसूरत झील है, जिसका नाम दसोहर है। गर्मी के मौसम में भी यह जगह बेहद ठंडी रहती है। जून से नवंबर के बीच लाहौल घाटी से यहां पहुंचा जा सकता है। यहां से कुछ दूरी पर सोनपानी ग्लेशियर है।
ब्यास कुंड
ब्यास नदी का जल स्त्रोत है पवित्र ब्यास कुंड। ठीक जैसे ब्यास नदी का झरना है बिल्कुल वैसे ही यहां से पानी बहता है। आपने इतना साफ और ठंडा पानी कहीं भी नहीं देखा होगा। पानी इतना ठंडा होता है कि हाथों की उंगलियां सुन्न हो जाए। ब्यास कुंड के चारों ओर सिर्फ पत्थर ही पत्थर है।
सोलंग नाला
मनाली से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है 300 मीटर की स्कीं लिफ्ट। बेहद लोकप्रिय जगह, जहां लोग बर्फ में स्कीं करने के लिए आते है। यहां से आप ग्लेशियर और बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियों के नजारे बड़े ही आराम से बर्फ के बीच में बैठ कर देख सकते हैं।
मनु मंदिर
ओल्ड मनाली में मनु मंदिर भी है, जो महर्षि मनु को समर्पित किया गया है। यहां महर्षि मनु ने आकर ध्यान लगाया था।
अर्जुन गुफा
कथाओं के अनुसार यहां महाभारत के अर्जुन ने तपस्या की थी और यहीं पर इंद्रदेव ने उन्हें पशुपति अस्त्र प्रदान किया था।
Note: इस लेख में दी गई जानकारी पूरी तरह से हिमाचल प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है।