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कुल्लूः लकड़ी पर नक्काशी से भवन निर्माण की परंपरा में खोजा रोजगार का नया मार्ग, एनआईटी से आर्किटेक्ट का नवाचार

हिमाचल प्रदेश में काष्ठकुणी (लकड़ी) शैली से बने मकान विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। इनमें सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह मकान सर्दी के दिनों में अंदर से गर्म और गर्मी के दिनों में अंदर से ठंडे होते हैं। इनमें लगने वाली लकड़ी पर की गई खूबसूरत नक्काशी मन मोह लेती है। इसी परंपरागत शैली को सहजने का काम कर रहे हैं राहुल भूषण।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Wed, 09 Aug 2023 06:08 PM (IST)
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कुल्लूः लकड़ी पर नक्काशी से भवन निर्माण की परंपरा में खोजा रोजगार का नया मार्ग, एनआईटी से आर्किटेक्ट का नवाचार

दविंद्र ठाकुर, कुल्लू। काष्ठकुणी (लकड़ी) शैली से बने मकान विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। हालांकि, अब सीमेंट से अधिक मकान बन रहे हैं, लेकिन कुल्लू जिला के नग्गर में राहुल भूषण काष्ठकुणी शैली के मकानों को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं।

वह लकड़ी पर नक्काशी कर पुरातन संस्कृति सहेजने के साथ काष्ठकुणी शैली को आगे बढ़ा रहे हैं। मूलत: शिमला के निवासी 32 वर्षीय राहुल ने वर्ष 2017 में काष्ठकुणी शैली की बारीकियां हिमाचल के किन्नौर के अलावा उत्तराखंड में सीखी थीं।

इसके बाद उन्होंने नग्गर में एक केंद्र खोला, जहां वह 80 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। ये सब लोग मिलकर लकड़ी पर नक्काशी करने के साथ काष्ठकुणी शैली के मकान बनाते हैं।

राहुल भूषण ने बताया कि डिजाइन खुद तैयार करने के बाद वह मकान बनाते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में जब काम शुरू किया तो मेरे पास तीन कारीगर थे। धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और अब 80 कारीगर कार्य कर रहे हैं।

राहुल अब तक हिमाचल प्रदेश में काष्ठकुणी शैली से 50 से अधिक मकान तैयार कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि कुल्लू व मनाली में घूमने आने वाले पर्यटक भी काष्ठकुणी शैली से बने मकानों को पसंद करते हैं।

कुल्लू जिले में काष्ठकुणी शैली से बने वर्षों पुराने मकान आज भी सुरक्षित हैं। इनमें नग्गर कैसल और चैहणी कौठी भी हैं जिन पर भूकंप से भी नुकसान नहीं पहुंचा है। ये मकान भूकंपरोधी होते हैं।

राहुल बताते हैं कि नग्गर में उनके पास देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 2500 से अधिक छात्र-छात्राएं काष्ठकुणी शैली से भवन निर्माण के गुर सीख चुके हैं।

राहुल ने वर्ष 2009-14 तक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हमीरपुर से बीआर्क की डिग्री व 2014-16 में अहमदाबाद से मास्टर डिग्री प्राप्त की।

जर्मनी में छह महीने कार्य किया। इसके बाद कुल्लू आने पर उद्योग विभाग से प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत अनुदान पर ऋण लिया और नग्गर में कार्य शुरू किया।

सीमेंट का नहीं होता इस्तेमाल

काष्ठकुणी शैली के मकानों में अधिकतर लकड़ी का इस्तेमाल होता है। दीवारों पर मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बने पदार्थ का पलस्तर किया जाता है। साथ में लकड़ी इस्तेमाल की जाती है।

इस लकड़ी में नक्काशी कर कलाकृतियां तैयार की जाती हैं, जो यहां की कला की विशेष पहचान हैं। कलाकृतियों को हाथ से उकेरा जाता है और इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है। भवन निर्माण में पत्थर का भी प्रयोग होता है। सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

गर्मियों में ठंडे व सर्दियों में गर्म होते हैं मकान

काष्ठकुणी शैली से बने मकान गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं। गर्मी के मौसम में ऐसे घरों में पंखों की जरूरत नहीं होती है। ये मकान भूकंपरोधी होते हैं।

इस शैली के घर व मंदिर बनाने वाले कारीगर कई बार लोहे की कील का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। लकड़ी को आपस में जोड़ने के लिए लकड़ी की ही कील तैयार की जाती है।

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