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नैतिकता, अच्छे विचार और शिष्टाचार अपनाएं युवा

व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अंदर व्यक्ति कई बंधनों से बंधा है, इसलिए उसे हमेशा गतिशील रहना

By Edited By: Updated: Mon, 26 Sep 2016 01:00 AM (IST)
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व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अंदर व्यक्ति कई बंधनों से बंधा है, इसलिए उसे हमेशा गतिशील रहना चाहिए। आज का युग डिजिटल का युग है। इसके कारण व्यक्ति का व्यवहार, रहन-सहन, खानपान, विचार भी बदल गए हैं। इसके कई फायदे भी हैं और नुकसान भी। व्यक्ति को हमेशा अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर उसको प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। उनको पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाना चाहिए। आज इस भागदौड़ की ¨जदगी में व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाले महत्वपूर्ण गुण संस्कार, अच्छी बातें, अच्छी आदतों की कमी लग रही है। इन अच्छी बातों व आदतों का गुण व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। इसके साथ समाज में रह रहे अन्य प्राणियों को भी समय के साथ प्रेरित करना चाहिए। यह हमारा उत्तरदायित्व भी है। अगर हम समाज के अंदर इस तरह के गुण उत्पन्न करने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करते हैं, तो हम कह सकते हैं कि ये देशभक्ति का गुण है। इसके साथ मानव के कल्याण के लिए हमारी भूमिका समाज के अंदर भी उजागर होगी। समाज के अंदर हर व्यक्ति की अपनी भूमिका रहती है। जैसे प्रशासन, शासन को चलाने के लिए एक सिस्टम होता है। उस सिस्टम के अंदर एक छोटे से-छोटे अधिकारी से लेकर उच्च अधिकारी होता है और उसकी भूमिका भी निश्चित की होती है। लेकिन एक शिक्षक की भूमिका काफी अहम होती है। वैसे भी कहते ही हैं कि शिक्षक वह दीपक होता है जो स्वयं को जलाकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है। इसके उदाहरण हमें कई धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों में गुरु और शिष्य की परंपरा के बारे में मिलते हैं। व्यक्ति में नैतिकता, शिष्टाचार, कृतयज्ञता, दयालुता, परोपकार, सहनशीलता, विनम्रता का गुण विद्यमान होना चाहिए। विनम्र व्यक्ति माफी दे सकता है। आज समाज के अंदर देखने को मिलता है कि व्यक्ति के अंदर जो सद्गुण आने चाहिए वे नहीं आ रहे और अवगुण सरलता से अपनाए जा रहे हैं। आज हमारे देश की शिक्षा पद्धति में भी मुझे लगता है कि नैतिक शिक्षा, शिष्टाचार व संस्कार इत्यादि के पाठ्यक्रम को शामिल तो किया गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप उसमें देखने को नहीं मिल रहा है। इसलिए हमारे देश की शिक्षा पद्धति में इस तरह के पाठ्यक्रम को विशेष महत्व, विशेष आग्रह के माध्यम से जोड़ने की आवश्यकता है। आज जहां देश के अंदर शिक्षकों का स्तर, नैतिक मूल्यों का स्तर गिर रहा है उसे सुधारने की आवश्यकता है। यह सख्ती या कानून के डंडे का विषय नहीं है। यह हमें अपने अंदर की सद्भावना को जगाकर करना चाहिए।

विद्यालय का प्रधानाचार्य होने के कारण मेरी भूमिका, उत्तरदायित्व और बढ़ जाता है कि जो समाज के अंदर या विद्यार्थियों के अंदर अवगुण आ रहे हैं उनको उनके अंदर से निकाल कर गुणों का विकास किया जाए। विद्यार्थियों में नैतिकता, अच्छे विचारों, शिष्टाचार, आदर, विनम्रता, सहनशीलता का गुण उत्पन्न होने चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रेरणादायी पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना जरूरी है। देश के महान पुरुषों की जीवनियां, अपने देश के पवित्र ग्रंथों, वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने और अपने अच्छे आचरण व स्नेह के कारण उनके अंदर नैतिकता पैदा की जा सकती है। आदमी के अंदर तीन गुण विद्यमान होते हैं सत, रज, तम। हमें सतोगुण को बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। सतोगुण का विकास अष्टांग योग के यम, नियम की पालना करने से होता है। सतोगुण वेदों, महान लोगों की जीवनी, सत्संग, भागवत इत्यादि का श्रवण करने से आते हैं। आज की युवा पीढ़ी को इस तरह की पुस्तकों का स्वध्याय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। विद्यालय में जब बच्चा प्रवेश लेता है तो उस समय वह शून्य होता है। यह उत्तरदायित्व शिक्षक का बन जाता है कि उसे एक अच्छा इंसान बनाया जाए। उसके अंदर गुणों का विकास किया जाए, उसे अच्छे-बुरे की समझ हो।

अंत में मैं यही कहना चाहता हूं कि हम ऐसी धरा के लोग हैं जहां पर साक्षात भगवान राम, भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया है अर्थात हम उस पावन धरा के रहने वाले व्यक्ति हैं जो पवित्र और संस्कारों से परिपूर्ण है। बस आज के समय उन संस्कारों को उजागर करने की अपनी भूमिका सुनिश्चित करें जो हमें धरोहर के रूप में हमारे पूर्वजों ने हमें दी है।

- संजीव ठाकुर, प्रधानाचार्य सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर, सुंदरनगर।

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शिक्षक

ठीक से निभाएं अपना उत्तरदायित्व

जीवन ईश्वर का वरदान है। हम प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें शक्ति प्रदान करें, हम अच्छे कर्म करें। हमारा जीवन तभी सार्थक होता है, जब हम अपने उत्तरदायित्व ठीक ढंग से निभाते हैं। समाज में झूठ, अविश्वास, संदेह, धोखेबाजी आदि दोष होते हैं, जो समाज में अशांति, असुविधा पैदा करते हैं। हमें जीवन में संपन्न विचारशील आदि होना चाहिए। हमें अपने ढंग से जीवन व्यतीत करना चाहिए। हमारे जीवन का दायित्व हमारे अंदर है। एक अपराधी जैसी सोच, अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को जिम्मेदार मानना, परिवर्तन की ताकत का अविश्वास आदि ऐसे रास्ते हैं जो जीवन की तरक्की में रोक लगाते हैं। दूसरों की सफलताओं को उनकी मेहनत, क्रियाओं से देखना चाहिए न कि किस्मत। किस्मत को अपने जीवन की जिम्मेदारी मत लेने दो। दायित्व उठाओ। मेरे पास सब कुछ है, मैं परिवर्तन कर सकता हूं, हममें यह विश्वास होना चाहिए। हम अपने जीवन के मालिक हैं न कि एक अपराधी। इससे जीवन बहुत अच्छा हो जाएगा।

- सुषमा ठाकुर, टीजीटी मेडिकल सरस्वती विद्यामंदिर हरिपुर, सुंदरनगर।

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चुनौतियों से न घबराए युवा पीढ़ी

एक शिक्षक के नाते मेरा दायित्व और भी बढ़ जाता है। मेरा दायित्व एक ऐसी युवा पीढ़ी का चरित्र निर्माण एवं विकास करना है जो पूर्ण रूप से शिक्षित हो। युवा पीढ़ी ऐसी हो जो हर चुनौतियों का सामना करने वाली, देश प्रेमी, निस्वार्थी, राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत तथा समाजसेवी हो। आज का नागरिक कल का भविष्य है। इसलिए उसको संवारना ही मेरे जीवन दायित्व का है।

- याद¨वद्र कुमार, टीजीटी आ‌र्ट्स सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर, सुंदरनगर।

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कल्पना को साकार करने की करें शक्ति पैदा

मनुष्य अनेक कल्पनाएं करता है। वह अपने को ऊपर उठाने के लिए योजनाएं बनाता है। कल्पना सबके पास होती है, लेकिन उस कल्पना को साकार करने की शक्ति किसी-किसी के पास होती है। अध्यापक होने के नाते मैं व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र को अधिक महत्व देती हूं। विद्यार्थी देश की नींव हैं। मैं उस नींव को मजबूत बनाना चाहती हूं। छात्रों को शिक्षा के महत्व से परिचित कराकर उनमें शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करना अपना कर्तव्य समझती हूं। अध्यापन कार्य को एक व्यवसाय न समझकर इसमें बलिदान और त्याग की भावना को अपना दायित्व समझती हूं। मैं विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार पैदा कर उनकी बुराइयों को समाप्त करना अपना कर्तव्य समझती हूं। आज देश को अच्छे नागरिकों की जरूरत है। आदर्श शिक्षा द्वारा ही उच्चकोटि के व्यक्ति पैदा किए जा सकते हैं।

- सरोज जम्वाल, टीजीटी आ‌र्ट्स सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर सुंदरनगर।

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हर विद्यार्थी रखे जीवन का लक्ष्य

मैं एक छात्र हूं। विद्यार्थी जीवन में मेरे बहुत से कर्तव्य हैं। एक विद्यार्थी को हमेशा अपने गुरुजनों द्वारा दिए दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए। मेरा यह कर्तव्य है कि मैं विद्यालय में अनुशासित रहकर अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए ध्यान लगाकर शिक्षा प्राप्त करूं। इन कर्तव्यों का पालन करके मैं अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता हूं। मैं अपनी शिक्षा प्राप्त करके सेना में जाना चाहता हूं। यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। हर विद्यार्थी को जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।

- यश महाजन, छात्र सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर, सुंदरनगर।

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माता-पिता और गुरुओं की आज्ञा का करें पालन

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक दायित्व होते हैं जिनकी उन्हें पालना करनी चाहिए। मेरे भी बहुत से दायित्व हैं। मेरा सबसे बड़ा दायित्व है कि मैं अपने माता-पिता की सेवा करूं और उनकी आज्ञा का पालन करूं। अध्यापक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, इसलिए विद्यार्थी होने के नाते मेरा दायित्व है कि मैं अपने गुरुजनों का आदर करूं और उन्हें कभी भी निराश न करूं। मुझे शैक्षणिक सफलता के लिए उपस्थिति बनाई रखनी चाहिए जो सफल होने के लिए अनिवार्य है। मेरे जीवन में जीवन और भी कई दायित्व हैं जिन्हें मैं जिम्मेदारी से निभाउंगी।

- सिमरन जम्वाल, छात्रा सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर, सुंदरनगर।

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प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक दायित्व होते हैं। मेरे जीवन में भी बहुत से दायित्व हैं। जैसे मेरे जीवन में सबसे बड़ा और पहला दायित्व है माता-पिता व गुरुजनों की सेवा करना। साथ में एक विद्यार्थी के नाते मेरा कर्तव्य है गुरुजनों की आज्ञा का पालन करना और पढ़ना। देश के प्रति मेरा दायित्व है कि जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा करना। जिस प्रकार एक छोटा सा दीपक विशाल अंधेरे में भी प्रकाश प्रदान करता है ठीक उसी प्रकार मैं भी किसी व्यक्ति के अंधकार से भरे जीवन को प्रकाश प्रदान करना चाहती हूं। देश के प्रति मेरा दायित्व यह भी है कि मैं अपने देश का नाम पूरे विश्व में रोशन करूं।

- नैंसी, छात्रा सरस्वती विद्या मंदिर हरिपुर सुंदरनगर।

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