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अंनत यात्रा पर निकले बलिदानी राकेश कुमार, पत्नी ने 'भारत माता की जय' का नारा लगा पति को दी अंतिम विदाई

किश्तवाड़ में बलिदान पैरा कमांडो राकेश कुमार को आज राजकीय व सैन्य सम्मान के साथ धर्मद्वारा स्थित मोक्ष धाम में पंचतत्व में विलीन किया गया। बलिदान होने के तीसरे दिन राकेश कुमार की पार्थिव देह उनके घर पहुंची। अंतिम दर्शन के लिए सुबह से ही लोग जुटे रहे। राकेश कुमार के बलिदान होने से उनके पूरे गांव में शोक का माहौल है।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Tue, 12 Nov 2024 12:21 PM (IST)
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बलिदानी कमांडो राकेश कुमार का सैन्य सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार
जागरण संवाददाता, मंडी। जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में आतंकियों से लोहा लेते हुए बलिदान हुए पैरा कमांडो राकेश कुमार का आज राजकीय व सैन्य सम्मान के साथ धर्मद्वारा स्थित मोक्ष धाम में पंचतत्व में विलीन हो गए। सुबह उनकी पार्थिव देह नेरचौक मेडिकल कालेज से उनके घर बरनोग के लिए रवाना हुई। पति की पार्थिव देह को देख राकेश कुमार की पत्नी बेसुध हो गईं।

कल तीन बजे मंडी पहुंची थी पार्थिव शरीर

घर पहुंचने पर उनकी पार्थिव देह थोड़ी देर के लिए अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। उसके बाद अंतिम संस्कार की रस्म पूरी हुई। बलिदान होने की सूचना मिलने के तीसरे दिन राकेश कुमार की पार्थिव देह उनके घर पहुंची।

सोमवार को जम्मू में देरी होने से पार्थिव देह मंडी दोपहर बाद तीन बजे पहुंची थी। इसके बाद मंगलवार को अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया था। बलिदानी राकेश कुमार की पत्नी भानु प्रिया ने भारत माता की जय व राकेश कुमार अमर रहे का नारा लगा पति को अंतिम विदाई दी।

अंतिम दर्शन करने सुबह से ही जुट रहे लोग

मंडी जिले के नाचन हलके के बरनोग गांव में सोमवार को उदासी और प्रतीक्षा का माहौल था। बलिदानी कमांडो नायब सूबेदार राकेश कुमार की अंतिम विदाई में शामिल होने और उनके अंतिम दर्शन करने के लिए सुबह से ही गांव के लोग उनके घर पर जुटना शुरु हो गए थे।

हर चेहरा उदास था, आंखों में एक दर्द था। सभी का दिल गर्व से भरा था, लेकिन एक इंतजार और बेचैनी भी थी जो समय के साथ और गहरी होती जा रही थी।

परिवार पर टूट पड़ा दुखों का पहाड़

राकेश की पार्थिव देह के आने की खबर ने गांव में एक अजीब सी शांति और गंभीरता ला दी थी। राकेश के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उनकी पत्नी, जिन्होंने हमेशा अपने पति को बहादुरी के साथ कर्तव्य निभाते देखा था बेसुध सी थीं।

बच्चों के मासूम चेहरों पर उदासी और अनकहा दर्द था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके पिता की पार्थिव देह को देखने का इंतजार कब खत्म होगा। उनकी बूढ़ी मां बार-बार दरवाजे की ओर देख रही थीं, मानो हर पल उन्हें उम्मीद हो कि अब उनका बेटा घर पहुंचेगा।

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मुश्किल वक्त में परिवार के साथ खड़ा है पूरा गांव

गांव के लोग जो हर सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। राकेश के परिवार के इस मुश्किल वक्त में भी साथ देने आए थे। गांव के बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे सब घर के बाहर इकट्ठा थे। लोग दिन भर धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते रहे, किसी ने भी घर लौटने का नाम नहीं लिया।

राकेश की बहादुरी की गाथाएं एक-दूसरे को सुनाकर लोग उनका सम्मान कर रहे थे। समय बीतता गया और हर गुजरते घंटे के साथ लोगों का मन बैचैन होता गया। सभी की आंखें बार-बार उस दिशा में देख रही थीं, जहां से राकेश की पार्थिव देह आने की उम्मीद थी।

जम्मू से हुई देरी के कारण राकेश की देह घर नहीं पहुंची तो इसकी सूचना मिलते ही वहां की उदासी और बढ़ गई। लोग दिन ढलने तक वहीं डटे रहे। कुछ लोग मूक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे, तो कुछ ने परिवार को सहारा देने का जिम्मा संभाल लिया था।

राकेश कुमार की वीरता और देशभक्ति को सभी सलाम कर रहे थे। उनके बलिदान को हमेशा के लिए अपनी यादों में संजोने का प्रण कर रहे थे।

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