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Himachal News: पहाड़ की गोद से उतरा विकास सड़क पर दौड़ने को तैयार, चुनौती भरा था सुरंगो का निर्माण

Himachal Pradesh News हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में कीरतपुर-मनाली फोरलेन (Kiratpur-Manali Highway) परियोजना के निर्माण में सुरंगों का निर्माण एक बड़ी चुनौती थी। पहाड़ों को काटकर आधुनिक और सुरक्षित सुरंगें बनाना तकनीकी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहद जटिल कार्य था। पढ़िए इन सुरंगों के निर्माण में आने वाली चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए कौन सी तकनीकी अपनाई गई।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 20 Oct 2024 03:24 PM (IST)
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15 सुरंगों में शुरु हो चुकी है वाहनों की आवाजाही

हंसराज सैनी, मंडी। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी भू-भाग में कीरतपुर मनाली फोरलेन परियोजना का निर्माण किसी तकनीकी चमत्कार से कम नहीं है। इस परियोजना से सड़क यातायात सुलभ और सुरक्षित हुआ है,पर्यटन को भी नए पंख लगे हैं।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के निर्माण के दौरान सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी,पहाड़ों में सुरंगों का निर्माण। पहाड़ों को काटकर आधुनिक और सुरक्षित सुरंगें बनाना तकनीकी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहद जटिल कार्य था।

पहाड़ों में हुआ नई आस्ट्रियन सुरंग निर्माण विधि का प्रयोग

हिमालय क्षेत्र के युवा पहाड़ों में नई आस्ट्रियन सुरंग निर्माण विधि (एनएटीएम) का प्रयोग कर सुरंगों का निर्माण किया गया। बिलासपुर के कैंचीमोड़ से मंडी के औट तक 20किलोमीटर लंबी दोलेन की 21 सुरंगों का निर्माण हुआ है। कैंचीमोड़ से भवाणा तक चार और सुरंगें प्रस्तावित है। इससे फोरलेन सुरंगों की कुल लंबाई 40 किलोमीटर से अधिक हो जाएगी। 15 सुरंगें में वाहनों की आवाजाही शुरु हो चुकी है। छह सुरंगों का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है।

सुरंगों के निर्माण में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई

हिमाचल के पहाड़ न केवल ऊंचाई में विशाल हैं, बल्कि भूस्खलन और भूगर्भीय अस्थिरता के लिए भी जाने जाते हैं। यहां की भौगोलिक स्थिति अत्यधिक विविधतापूर्ण है। इससे सुरंगों के निर्माण में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई। पहाड़ों की चट्टानों की संरचना भी इस काम को और मुश्किल बनाती गई।

सभी स्थानों पर कमजोर चट्टानें, भूस्खलन और जलभराव जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ा। निर्माण के दौरान ये समस्याएं न केवल प्रगति को धीमा करती थीं बल्कि मजदूरों और इंजीनियरों की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करती थीं।

अत्याधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता का उपयोग

चुनौतियों से निपटने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लिया गया। एनएटीएम तकनीक से जाली की अंदरूनी लाइनिंग बनाई जाती है। मिट्टी को स्थिर बनाने के लिए राक बोल्ट लगाए जाते हैं। मशीन या नियंत्रित विस्फोट के जरिए खोदाई होती है। खोदाई के दौरान सतह की प्रत्येक गतिविधि को जानने के लिए इन क्लाइनोमीटर, एक्सटेंसोमीटर जैसे उपकरणों का प्रयोग किया गया।

पर्यावरणीय और स्थानीय चुनौतियां

सुरंगों का निर्माण केवल तकनीकी ही नहीं,बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी चुनौतीपूर्ण था। हिमाचल के पर्वतीय इलाके में जैव विविधता की एक विस्तृत श्रृंखला है, और निर्माण कार्य से इसे नुकसान पहुंचने की संभावना थी। परियोजना में पर्यावरणीय संरक्षण को ध्यान में रखते हुए विशेष कदम उठाए गए।

जल संसाधनों को संरक्षित रखने और वनों की कटाई को न्यूनतम रखने के प्रयास किए गए। निर्माण के दौरान निकाली गई मिट्टी और चट्टानों के प्रबंधन के लिए विशेष योजनाएं बनाई गई ताकि स्थानीय पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

कीरतपुर मनाली फोरलेन पर 21 से 15 सुरंगें आवाजाही के लिए खुल चुकी हैं। अन्यों में काम चल रहा है। टिहरा हादसे को छोड़ निर्माण कार्य सफलतापूर्वक हुआ है।

-वरुण चारी,परियोजना निदेशक एनएचएआई मंडी

कठिन मौसम और समय सीमा का दबाव

हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में मौसम भी निर्माण कार्य की गति पर बड़ा प्रभाव डालता है। सर्दी में ठंड के कारण काम बंद करना पड़ता था, जबकि मानसून के दौरान भूस्खलन और अत्यधिक जलभराव से निर्माण कार्य में बाधा आई। चुनौतीपूर्ण मौसम के बावजूद इंजीनियरों और मजदूरों की कड़ी मेहनत से सुरंग निर्माण में निरंतरता बनी रही।

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टिहरा हादसा बना था सुर्खियां

टिहरा सुरंग 12 सितंबर 2015 को निर्माण के दौरान धंस गई थी। इससे सुरंग के अंदर तीन मजदूर फंस गए थे। नौ दिन की कड़ी मेहनत से दो मजदूरों की जान बचा ली गई थी। एक की मौत हो गई थी।

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