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Himachal News: 179 साल बाद चांसल में मिली तियूर की विलुप्त प्रजाति, 25 साल की उम्र में आशुतोष शर्मा ने कर दिखाया कारनामा

वनस्पति विशेषज्ञ आशुतोष शर्मा ने एक विलुप्त प्रजाति की खोज कर दी है। 179 साल पहले इस फूल के बारे में पता लगाया गया था। वहीं इस फूल को आखिरी बार 1844 में देखा गया था। वहीं वनस्पति एक्सपर्ट आशुतोष शर्मा ने इसे शिमला के चांसल जंगलों से ढूंढ निकाला है। ये एक तियूर प्रजाति का पौधा है। उनकी शोध को न्यूजीलैंड के जरनल में प्रकाशित किया गया।

By Jagran News Edited By: Deepak Saxena Updated: Mon, 15 Apr 2024 08:47 PM (IST)
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179 साल बाद चांसल में मिली तियूर की विलुप्त प्रजाति।
जागरण संवाददाता, मंडी। छोटी काशी के झिड़ी के रहने वाले वनस्पति विशेषज्ञ आशुतोष शर्मा ने साल 1844 विलुप्त माने गए इस फूल की प्रजाति को शिमला के चांसल के जंगलों में ढूंढ निकाला है। यह एक तियूर प्रजाति का पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम इंपैशियनस वियोलाइडिस है। ये चांसल के जंगलों में मिला है। 179 साल पहले डॉ. एमपी एजवोर्थ ने इस फूल का पता लगाया था, लेकिन उसके बाद इसकी कोई भी जानकारी कहीं नहीं मिली।

न्यूजीलैंड के फाइटो टैक्सा जनरल में प्रकाशित हुआ शोध

गुल मेहंदी यानी इंपैशियन जीनस के अन्य 35 और प्रजातियां पश्चिमी हिमालय में मिल जाती हैं, लेकिन यह अनोखी है। आशुतोष का इस फूल पर शोध न्यूजीलैंड के फाइटो टैक्सा जनरल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में उनका सहयोग पौलेंड वारफा यूनिवर्सिटी के डॉ. वोशिश एडामोबसकी और एफआरआई देहरादून के एचबी नथानी और डा.नोरु निशा बेगम ने किया।

25 साल की उम्र में आशुतोष शर्मा ने यह उपलब्धि हासिल की है। वह यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रांस डिसिपलेनरी हेल्थ साइंसेस एंड टेक्नोलोजी (टीडीयू-एफआरएलएचटी) बेंगलुरु से पीएचडी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि डॉ. एमपी एजवोर्थ ने 1844 में जब तियूर की इस प्रजाति का पता लगाया और इसका रिकॉर्ड में दर्ज किया, लेकिन उसके बाद यह प्रजाति कभी नहीं दिखी।

साल 2017 से कर रहे थे इस प्रजाति की तलाश

आशुतोष ने बताया कि वह 2017 से इस प्रजाति की तलाश कर रहे थे। यह प्रजाति चांसल के अलावा कहीं नहीं मिलती है, क्योंकि यह 27 स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्रफल में होती है। इस जीनस के ओर फूल भी मौजूद होते हैं, लेकिन इसकी खास बात यह है कि अन्य फूलों की तरह इसका स्पर यानी पूंछ नहीं होती है। वह चार साल से इस प्रजाति की तलाश कर रहे थे और सितंबर 2023 में उनको यह चांसल के जांगलिख में देवदार व काला तोश के जंगल में मिला। यह दो से चार फीट का पौधा होता है।

अब इसका डीएनए सिक्वेसिंग की जा रही है जिससे इसके विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। जिससे इसके विकास (एवोलियुशन) और किस तरह से यह तैयार हुआ पता लगेगा। इस दुर्लभ प्रजाति के पौधों को टिशू कल्चर तकनीक के जरिए तैयार किया जा सके, जिससे इसका इस्तेमाल सजावट के लिए हो सकता है। यूरोपीय देशों में इस जीनस के प्रजातियो की काफी मांग है।

केवल चांसल में मिलने का कारण

आशुतोष ने बताया कि चांसल पूर्व, पश्चिम और उत्तर यानी तीनों ओर से पहाड़ियों से घिरा है। ऐसे में जब कभी इस फूल के पराग और बीज घाटी से बाहर नहीं निकल पाते, क्योंकि यह पहाड़ियां 4000 मीटर से अधिक ऊंची है। यह पौधा 2500 से 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर होता है तथा तीनों दिशाओं में अधिक ऊंची पहाड़ियां होने के कारण। वहीं चौथी दिशा में मैदानी इलाका है जहां अगर पराग व बीज वहां जाए भी तो पौधे को तैयार होने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है।

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