International Shivratri Festival Mandi: यहां दिखती है देव संस्कृति की झलक, जानिए क्या है मान्यता
International Shivratri Festival देवभूमि हिमाचल का मंडी शहर देवों के देव महादेव के उत्सव के कारण सुर्खियों में है।
By Rajesh SharmaEdited By: Updated: Sat, 22 Feb 2020 11:22 AM (IST)
मंडी, हंसराज सैनी। देवभूमि हिमाचल का मंडी शहर देवों के देव महादेव के उत्सव के कारण सुर्खियों में है। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में पुरातन संस्कृति और देवताओं के अद्भुत मिलन के कारण यहां हर जगह माहौल भक्तिमय है। महाशिवरात्रि पर शनिवार से शुरू होने वाले इस उत्सव में लोगों के साथ ही देवता भी शिरकत करते हैं, तभी मंडी को छोटी काशी भी कहा जाता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से प्रारंभ होने वाले इस उत्सव में 216 से अधिक देवी-देवता शिरकत कर रहे हैं।
महाशिवरात्रि का प्रमुख आकर्षण शोभायात्रा (जलेब) होती है। इसे राज देवता माधो राय की जलेब भी कहते हैं। शिवरात्रि के आखिरी दिन देव कमरूनाग मेले में आकर सभी देवताओं से मिलते हैं, वहीं पर उत्तरशाल के ही एक व प्रमुख देवता आदिब्राह्मण का गूर भी शहर की रक्षा व समृद्धि की कामना से कार बांधता है। 22 से 28 फरवरी तक चलने वाले इस उत्सव पर मंडी से दैनिक जागरण संवाददाता की खास रिपोर्ट....
मेले के संबंध अनेक मान्यताएंमंडी के शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार 1788 में मंडी रियासत की बागडोर राजा ईश्वरीय सेन के हाथ में थी। मंडी रियासत के तत्कालीन नरेश महाराजा ईश्वरीय सेन, कांगड़ा के महाराज संसार चंद की कैद में थे। शिवरात्रि के कुछ ही दिन पहले वे लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर की ओर चल पड़े। राजा व प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। महाशिवरात्रि का पर्व भी इन्हीं दिनों था व शिवरात्रि पर हर बार मेले की परंपरा शुरू हो गई।
एक अन्य मान्यता के अनुसार मंडी के पहले राजा बाणसेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिवोत्सव मनाया। बाद के राजाओं कल्याण सेन, हीरा सेन, धरित्री सेन, नरेंद्र सेन, हरजयसेन, दिलावर सेन आदि ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। अजबर सेन, स्वतंत्र मंडी रियासत के वह पहले नरेश थे, जिन्होंने वर्तमान मंडी नगर की स्थापना भूतनाथ के विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ की व शिवोत्सव रचा। छत्र सेन, साहिब सेन, नारायण सेन, केशव सेन, हरि सेन, प्रभृति सेन राजाओं के शिवभक्ति की अलख को निरंतर जगाए रखा। राजा अजबर सेन के समय यह उत्सव एक या दो दिनों के लिए ही मनाया जाता था। राजा सूरज सेन (1637) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला।
ऐसा माना जाता है राजा सूरज सेन के 18 पुत्र हुए। यह सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक चांदी की प्रतिमा बनवाई जिसे माधोराय नाम दिया। राजा ने अपना राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवरात्रि में आकर पहले माधोराय व फिर राजा के पास हाजिरी देने लगे।
प्रकृति के स्वागत का पर्वफाल्गुन में बर्फ के पिघलने के बाद वसंत ऋतु शुरू होती है। ब्यास नदी में बर्फानी पहाडियों के निर्मल जल की धारा मंडी के घाटों में बहने लगती है, फाल्गुन का स्वागत पेड़ पौधों की फूल-पत्तियां करने लगती हैं। देवलू अपने देवता के रथों को रंग-विरंगा सजाने लगते हैं तो नगर के भूतनाथ मंदिर में शिव-पार्वती के शुभ विवाह की रात्रि को नगरवासी मेले के रूप में मनाना शुरू करते हैं। लोग महीनों घरों में बर्फबारी व ठंड के कारण दुबके रहने के बाद वसंत ऋतु का इंतजार करते हैं तथा वसंत में जैसे ही शिवरात्रि का त्योहार आता है तो वे सजधज कर मंडी की तरफ कूच शुरू कर देते हैं।
छोटी काशी में 81 मंदिर मंडी में शिव व शक्तियों के 81 मंदिर हैं। इनमें बाबा भूतनाथ व अर्धनारीश्वर भी शामिल हैं। यहां भगवान शिव के सभी मंदिर शिखर शैली में मौजूद हैं वहीं पर शक्तियों के मंदिर मंडप शैली में हैं। मंडी में भगवान शिव के 11 रुद्र रूप जबकि नौ शक्तियां हैं।शैव, वैष्णव व लोक देवताओं का पर्व शिवरात्रि छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी की शिवरात्रि शैव, वैष्णव व लोक देवताओं का पर्व है। शैव मत का प्रतिनिधित्व मंडी नगर के अधिष्ठाता बाबा भूतनाथ करते हैं। वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय व लोक देवताओं की अगुवाई बड़ा देव कमरूनाग, हुरंग नारायण व देव पराशर आदि देवता करते हैं।
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