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Mandi News: स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा नहीं बनेंगे सेनेटरी नैपकिन, IIT हैदराबाद ने सेल्यूलोज नैनोफाइबर से किया विकसित

अब नैपकिन (पैड्स) महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। आईआईटी हैदराबाद ने एक ऐसा बायोडिग्रेडेबल सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन विकसित किया है। जो सामान्य नैपकीन के मुकाबले 30 से 60 फीसदी अधिक अवशोषक है। इसके साथ ही इससे महिलाओं को त्वचा में जल बांझपन और टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम से राहत मिलेगी। इसके साथ ही ये बायोडिग्रेडेबल है जिससे ये खुद ही समाप्त हो जाएगा।

By Jagran News Edited By: Deepak Saxena Updated: Mon, 11 Mar 2024 06:25 PM (IST)
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स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा नहीं बनेंगे सेनेटरी नैपकिन।
हंसराज सैनी, मंडी। सेनेटरी नैपकिन अब महिलाओं के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा नहीं बनेंगे। नैपकिन (पैड्स) के प्रयोग से होने वाली त्वचा जलन, बांझपन और टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम जैसी समस्याओं से राहत मिलेगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद के शोधार्थियों ने सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन विकसित किया है। सामान्य नैपकिन के मुकाबले इसकी अवशोषकता क्षमता 30 से 60 प्रतिशत अधिक है। इसकी लागत मार्केट में पहले से उपलब्ध नैपकिन के मुकाबले कम है।

बायोडिग्रेडेबल होने से निस्तारण में कोई समस्या नहीं आएगी। आईआईटी को सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन का पेटेंट भी मिल चुका है। भारत, चीन व ब्रिटेन उत्पाद को मान्यता दे चुके हैं। आईआईटी प्रबंधन ने व्यावसायिक उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी अब ई स्पिन नैनोटेक कंपनी को हस्तांतरित की है। यह शोध आईआईटी हैदराबाद के स्कूल ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर शर्मा के नेतृत्व में पीएचडी स्कॉलर अमान फातिमा रिजवी ने किया है।

सुपरएब्जार्बेंट पॉलीमर नैपकिन से मिलेगा छुटकारा

मार्केट में अभी सुपरएब्जार्बेंट पालिमर (एसएपी) से बने सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध हैं। यह सोडियम पॉलीएक्रिलेट से बने होते हैं। इन नैपकिन का प्रयोग महिलाएं महावारी के दौरान करती हैं। केमिकल प्रयुक्त नैपकिन से महिलाओं की त्वचा में जलन, बांझपन व टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम जैसी समस्याएं पैदा होती है। नानबायोडिग्रेडेबल होने से यह नैपकिन पर्यावरण के लिए भी चुनौती बन चुके हैं। जागरुकता की कमी के चलते सामान्य तौर पर सेनेटरी नैपकिन को पालीथिन में डालकर या अन्य कचरे के साथ कूड़े में डाल दिया जाता है।

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भारत में हर माह करीब एक अरब से अधिक सेनेटरी नैपकिन गैर निष्पादित हुए सीवरेज, कचरे के गड्ढों, मैदानों और जल स्रोतों में जमा हो जाते हैं। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। प्रयोग हुए सेनेटरी नैपकिन्स में लगे खून से सूक्ष्म जीवाणु फैलने लगते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन रहे हैं।

कुछ दिनों में नष्ट होगा सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन

सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन रसायनमुक्त व बायोबायोडिग्रेडेबल है। खुद कुछ दिनों में नष्ट हो जाएगा। जबकि एसएपी से बना नैपकिन नष्ट होने में कई साल का समय लेता है। अवशोषक क्षमता अधिक होने से बार बार नैपकिन नहीं बदलना पड़ेगा। सेल्यूलोज रसायनमुक्त होने की वजह से नैपकिन से महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।

आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर डॉ. चंद्र शेखर शर्मा ने कहा कि सेल्यूलोज नैनोफाइबर सेनेटरी नैपकिन रसायनमुक्त और बायोडिग्रेडेबल है। यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा नहीं बनेगा। पेटेंट व भारत सहित तीन देशों से मान्यता मिलने के बाद व्यावसायिक उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी इ स्पिन नैनोटेक कंपनी को हस्तांतरित की गई है।

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