Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

शुकपा से हरे भरे होंगी स्पीति की घाटियां, दूर होगी आक्सीजन की कमी; शीत मरूस्थल में नजर आएगी हरियाली

हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति की स्पीति घाटी व लद्दाख के पहाड़ शीघ्र हरे भरे नजर आएंगे। इससे पर्यावरण को संबल मिलेगा। आक्सीजन की कमी दूर होगी। करीब 20 वर्षों के शोध के बाद जुनिपरस पोलिकार्पोस (शुकपा) के पौधे शीत मरुस्थल की पहाड़ियों पर जीवित रहने के योग्य विकसित हुए हैं। देश के वानिकी इतिहास में पहली बार स्पीति घाटी के ताबों व लेह में शुकपा का पौधरोपण किया गया।

By Jagran NewsEdited By: Preeti GuptaUpdated: Tue, 12 Sep 2023 09:56 AM (IST)
Hero Image
शुकपा से हरे भरे होंगी स्पीति की घाटियां, दूर होगी आक्सीजन की कमी

मंडी, हंसराज सैनी। हिमाचल प्रदेश के दुर्गम जिले लाहुल स्पीति (Lahaul Spiti) की स्पीति घाटी व केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख (Ladakh) के पहाड़ शीघ्र हरे भरे नजर आएंगे। इससे पर्यावरण को संबल मिलेगा। ऑक्सीजन (Lack of Oxygen) की कमी दूर होगी। शीत मरुस्थल को हरा भरा बनाने के हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान (एचएफआरआइ) के विज्ञानियों के प्रयास रंग लाए हैं। करीब 20 वर्षों के शोध के बाद जुनिपरस पोलिकार्पोस (शुकपा) (Shukpa plants) के पौधे शीत मरुस्थल की पहाड़ियों पर जीवित रहने के योग्य विकसित हुए हैं।

आंतरिक शुष्क एवं शीत मरुस्थल क्षेत्रों में पाया जाता है शुकपा

शुकपा हिमालयी क्षेत्र के आंतरिक शुष्क एवं शीत मरुस्थल क्षेत्रों में समुद्र तल से 3000 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर होता है। आमतौर पर यह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर, लाहुल स्पीति, जम्मू कश्मीर की गुरेज घाटी, लद्दाख, कारगिल व उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इसमें बड़ी मात्रा में हरे रंग का गोलाकार बेर लगते हैं। जो पकने पर नीले व काले रंग के हो जाते हैं।

2003 में लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल

हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान ने 2003 में जुनिपरस पोलिकार्पोस पर खतरे की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए इसे उत्तर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के लिए लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया था। इसके बीजों की सुप्तावस्था को तोड़ने की विधि और नर्सरी एवं पौधरोपण तकनीक विकसित करने के लिए शोध की सिफारिश की गई थी।

15 वर्ष के शोध के बाद पौधशाला में पौधे उगाने का रास्ता साफ

हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के विज्ञानी पीतांबर सिंह नेगी के 15 वर्षों के अथक प्रयास एवं शोध से बीज प्रौद्योगिकी,नर्सरी व पौधरोपण की तकनीक विकसित की गई । संस्थान ने 17,000 से ज्यादा जुनिपरस पोलिकार्पोस के पौधे विभिन्न पौधशाला में उगाए। तत्पश्चात इन पौधों को हिमाचल प्रदेश व केंद्रशासित लद्दाख के शुष्क शीतोषण एवं शीत मरुस्थल क्षेत्रों में पौधरोपण के लिए वन विभाग,स्थानीय लोगों व गैर सरकारी संस्थाओं को वितरित किए गए ताकि इस पौधे को संरक्षित की जा सके।

देश के वानिकी इतिहास में पहली बार पौधारोपण

देश के वानिकी इतिहास में पहली बार स्पीति घाटी के ताबों व लेह में शुकपा का पौधरोपण किया गया। ऐतिहासिक ताबों मठ के परिसर में भी इस वृक्ष को रोपण कर इसे संरक्षित किया जा रहा है। पौधे की जीवित रहने की दर 70 से 80 प्रतिशत दर्ज की गई है। इससे विज्ञानियों के प्रयासों को और बल मिला है।

सूखी टहनियों व पत्तों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा में

हिमाचल के किन्नौर, लाहुल स्पीति व केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में इसकी लकड़ी का उपयोग घरों में जलाने के लिए किया जाता है। सूखे टहनियों व पत्तों का उपयोग घरों, मंदिरों व मठों में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान व पूजा के दौरान किया जाता है। स्थानीय लोग शुकपा को पवित्र पौधा मानते हैं।

विभिन्न रोगों के उपचार में उपयोग

पाचन से जुड़ी समस्याओं,मूत्र पथ के संक्रमण, जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द के इलाज में इसका उपयोग होता है। इसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों के रूप में भी होता बेर का इस्तेमाल मसाले के रूप होता है। इसके अर्क, तेल का उपयोग भी खाद्य व पेय पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है।

यह भी पढ़ें- आज हिमाचल में आपदा पीड़ितों से मिलेंगी Priyanka Gandhi, CM के साथ भी मीटिंग; देखिए दो दिन का पूरा शेड्यूल

प्राकृतिक रूप से पुनर्जनन बहुत कम

शुकपा का पुनर्जनन प्राकृतिक रूप से बहुत कम है । स्थानीय लोग इस पेड़ की टहनियों और शाखाओं को धूप के रूप में इस्तेमाल करने के लिए जंगलों से एकत्रित करते हैं। इससे प्राकृतिक पुनरुत्पादन केवल उन्हीं क्षेत्रों में होता है जहां जैविक दबाव कम होता है। दूसरा कारण इसके बीजों में पाई जाने वाली सुप्ततता भी है। बीज अनुकूल परिस्थितियों में भी अंकुरित नहीं हो पाते थे। यही वजह थी कि वन विभाग इसके पौधे को बीजों से पौधशाला में उगा नहीं पा रहे थे।

शीत मरूस्थल में नजर आएगी हरियाली

एचएफआरआई शिमला के निदेशक डॉ.संदीप शर्मा ने कहा कि शुकपा की बीज प्रौद्योगिकी,नर्सरी व पौधरोपण तकनीक विकसित होने से शीत मरूस्थल में शीघ्र हरियाली का आवरण नजर आएगा। पीतांबर सिंह नेगी, विज्ञानी एचएफआरआइ शुकपा की जीवित दर 70 से 80 प्रतिशत तक होने से स्पीति घाटी व लद्दाख के पहाड़ हरे भरे होने का रास्ता साफ हो गया है। इस शोध को धरातल पर उतारने वाले संस्थान के विज्ञानी बधाई के पात्र हैं।

यह भी पढ़ें-  Himachal Rains: मौत का आंकड़ा 426 पार, 128 सड़कें अभी भी बंद; अभी कितने दिनों तक जारी रहेगा बारिश का कहर