Move to Jagran APP

टौर की पत्तलों के व्यवसाय से स्वयं सहायता समूह की हो रही आर्थिक स्थिती मजबूत, वन विभाग ने दी पत्तल मेकिंग मशीन

प्रदेश सरकार विभिन्न विभागों के माध्यम से लोगों की आजीविका सुधारने और आर्थिक स्थिती को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रही है। इसके साथ ही वन विभाग की जायका परियोजना के तहत मंडी जिला के सुंदरनगर उपमंडल के बाडू वाड़ा देव स्वयं सहायता समूह रोपा की 16 महिलाओं को 75 प्रतिशत अनुदान पर पत्तल मेकिंग मशीन प्रदान की हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिती को भी बढ़ावा मिल रहा है।

By Shoyeb AhmedEdited By: Shoyeb AhmedUpdated: Fri, 06 Oct 2023 06:47 PM (IST)
Hero Image
टौर की पत्तलों के व्यवसाय से स्वयं सहायता समूह की हो रही आर्थिक स्थिती मजबूत
जागरण संवाददाता, मंडी। Taur Leafs Business News प्रदेश सरकार (Himachal Govt) विभिन्न विभागों के माध्यम से लोगों की आजीविका सुधारने में भी अहम भूमिका निभा रही है। वन विभाग की जायका परियोजना के तहत मंडी जिले के सुंदरनगर उपमंडल के बाडू वाड़ा देव स्वयं सहायता समूह रोपा (Badu Wada Dev Self Help Group Ropa) टौर के पत्तों से पत्तल बनाकर आर्थिकी सुदृढ़ कर रहा है।

वनविभाग (Forest Department) की ओर से बाडू वाड़ा स्वयं सहायता समूह की 16 महिलाओं को 75 प्रतिशत अनुदान पर पत्तल मेकिंग मशीन (Pattal Making Machine) प्रदान की गई है। महिलाएं मशीन से पत्तलें बनाकर आर्थिकी सुदृढ़ कर रही हैं।

मंडी जिला सहित प्रदेश के अन्य जिलों में शादी समारोह या फिर बड़े आयोजनों में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर खाना परोसा जाता है। वन उपमंडल सुकेत के तहत बहुत सी महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी टौर के पत्तों की पत्तलें बनाने का पारंपरिक कार्य करती आ रही हैं, लेकिन जायका परियोजना ने अब पारंपरिक रूप से बनाई जाने वाली इन पत्तलों को आधुनिकता का रंग दे दिया है। जिससे अब ये ग्रामीण महिलाएं मशीनों के जरिए पत्तलें बना रही हैं।

मशीन से पत्तलें बनाकर दोगुना कमा रही ग्रामीण महिलाएं

जायका परियोजना के तहत वन उपमंडल सुकेत के ग्राम पंचायत ध्वाल के बाडू वाड़ा स्वयं सहायता समूह रोपा को पत्तलें बनाने की मशीन उपलब्ध करवाई गई है। अब महिलाएं इस मशीन के माध्यम से पत्तलें बनाती हैं। जो पत्तल पहले डेड रुपये की बिकती थी, वहीं पत्तल अब चार रुपये की बिक रही है। खास बात यह है कि मशीन में बनी पत्तल की उम्र भी अधिक है और लंबे समय तक खराब भी नहीं होती।

महिलाओं ने बताया कि पहले वह हाथ से ही इन पत्तलों को बनाती थी, लेकिन मशीन से पत्तलें बनाने से उनकी कमाई भी ज्यादा हो रही है और मशीन से आधुनिक रूप से बनी इन पत्तलों की मांग भी काफी ज्यादा है।

प्रदेश और पड़ोसी राज्यों में इनकी भारी डिमांड

महिलाओं ने बताया कि मशीन द्वारा बनाई जा रही पत्तलों की प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों में काफी डिमांड बढ़ रही है जिससे आर्थिकी भी मजबूत हो रही है और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं। टौर के पत्तों से बनी पत्तलें पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।

भोजन परोसने के लिए होता है टौर की पत्तलों का उपयोग

बता दें कि कुछ सालों पहले हिमाचल में टौर के पत्तों से बनी हुई पत्तलों का ही इस्तेमाल किया जाता था। चाहे कोई शादी हो या कोई भी समारोह, ऐसे में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों की भारी डिमांड हुआ करती थी। लेकिन बीतते समय के साथ थर्माकोल और प्लास्टिक से बनी हुई प्लेट्स प्रचलन में आने लगी। इन प्लेट्स का खराब होने का डर भी नहीं होता है और सस्ती भी होती हैं। मगर दूसरी ओर पर्यावरण के लिए ये प्लेट्स बेहद हानीकारक हैं और स्वास्थ्य के लिहाज से भी इनका इस्तेमाल नुकसानदायक है।

ऐसे में एक बार फिर से टौर के पेड़ से बनी पत्तलें इस्तेमाल में आनी शुरू हो गई हैं। लोगों ने पर्यावरण और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए पारंपरिक पत्तों की पत्तलों की ओर रुख कर लिया है। परंपरागत रूप से टौर की पत्तलों का उपयोग समारोहों में भोजन परोसने के लिए किया जाता है। टौर से बनने वाले डूने देवताओं की पूजा और प्रसाद रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।

महिलाओं को पत्तों से बनी पत्तल से हुआ लाभ

बाड़ू वाड़ादेव सहायता समूह रोपा की प्रधान बिंद्रा देवी का कहना है कि समूह की सभी महिलाएं इकट्ठे मिलकर पहले पत्तों की पत्तलें तैयार करती है तत्पश्चात उस पर कागज लगाकर मशीन में आधुनिक रूप से पत्तल तैयार की जाती है। वह मशीन द्वारा तैयार पत्तलें ऑर्डर मिलने पर ही बनाती हैं। पत्तलों का ऑर्डर उन्हें सीधे लोगों के माध्यम से या वन विभाग के अधिकारियों के माध्यम से दिया जाता है।

ये भी पढ़ें- कुल्लू में मनोरंजन का होगा हाईडोज, देशभर के 200 पहलवान सिराज उत्सव के दंगल में लेंगे भाग; इस दिन होगा आयोजन

महिलाओं ने प्रदेश सरकार को किया धन्यावाद

उन्होंने बताया कि पहले इन पतलों की उतनी मांग नहीं थी परंतु वर्तमान समय में इनकी मांग बहुत बढ़ चुकी है। साथ ही केवल पत्तों से बनी पत्तल डेड रुपए में तथा मशीन द्वारा तैयार पत्तल 4 रूपए की बिकती है। इससे सभी महिलाओं की कमाई में मुनाफा और रोजगार भी उपलब्ध हुआ है। जिसके लिए उन्होंने प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया।

बाडू वाड़ा देव स्वयं सहायता समूह की सचिव सरोज कुमारी ने प्रदेश सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा कि समूह की सभी महिलाएं इकट्ठे मिलकर आसपास के जंगलों से टौर के पत्ते इकट्ठे करती है फिर हाथ से पत्तों से पत्तल तैयार की जाती है। उसके बाद कागज लगाकर मशीन में पत्तल तैयार की जाती है। मशीनों द्वारा पत्तल बनाने के व्यवसाय से महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हुआ है तथा आर्थिकी भी मजबूत हुई है।

ये भी पढ़ें- भ्रूण हत्या रोकने के लिए CM सुक्खू का बड़ा ऐलान, एक बेटी वाले परिवार को मिलेंगे 2 लाख रुपये

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।