जिंदगी से असफलता के कांटे निकाल रही ट्राउट मछली, बदल दी हिमाचल की तस्वीर; किसान हुए मालामाल
हिमाचल प्रदेश में ट्राउट मछली पालन ने किसानों के जीवन में एक नई क्रांति ला दी है। पारंपरिक खेती से हटकर अब किसान ट्राउट मछली पालन से अधिक लाभ कमा रहे हैं। यह न केवल उनकी आय में वृद्धि कर रहा है बल्कि ग्रामीण इलाकों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रहा है। ट्राउट मछली पालन में हिमाचल प्रदेश को देश का पहला राज्य बना गया है।
हंसराज सैनी, मंडी। अपनी पहाड़ी सुंदरता और बर्फ से ढके परिदृश्यों के लिए प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश अब ट्राउट मत्स्य पालन में एक नई पहचान बना रहा है। कभी यहां के किसान केवल पारंपरिक खेती पर निर्भर थे, अब ट्राउट मत्स्य पालन ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी है।
यह बदलाव न केवल उनकी आय में बढ़ोतरी लेकर आया है, बल्कि हिमाचल के ग्रामीण इलाकों की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ किया है। शिमला,कुल्लू,चंबा,सिरमौर,मंडी,कांगड़ा और किन्नौर के युवाओं के लिए रोजगार का सार्थक साधन बनता जा रहा है। ट्राउट मत्स्य पालन में हिमाचल आज देश का पहला राज्य बन गया है।
कैसे शुरू हुआ ट्राउट मत्स्य पालन?
ट्राउट मत्स्य पालन का हिमाचल प्रदेश में 1986 में भारत व नार्वे सरकार के साथ हुए समझौते के बाद आरंभ हुआ था। इसे पहली बार कोल्ड वाटर फिशिंग के तहत राज्य में लाया गया। यह मछली ठंडे, साफ और आक्सीजन युक्त पानी में पनपती है। हिमाचल की नदियां और झरने इसके लिए उपयुक्त पाए गए।
व्यावसायिक स्तर पर ट्राउट मत्स्य पालन के लिए कुल्लू जिले के पतलीकूहल को चुना गया। 1992 में नार्वे से ट्राउट का एक लाख बीज आयात कर यहां ब्रूड स्टाक तैयार किया गया। 1997 में इसे निजी क्षेत्र में व्यापक रूप से अपनाया गया।
राज्य सरकार और मत्स्य पालन विभाग ने भी इस दिशा में पहल की और किसानों को प्रशिक्षण और अनुदान के माध्यम से प्रोत्साहित किया। राज्य सरकार ने ट्राउट मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए तालाब बनाने,मछली का बीज उपलब्ध कराने और तकनीकी सहयोग प्रदान करने जैसी कई योजनाएं शुरू की। इससे किसानों को इसमें आकर्षण दिखने लगा।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।