Himachal Politics: राज्यसभा चुनाव के 38 दिन बाद कांग्रेस प्रत्याशी सिंघवी ने HC में दी चुनौती, पर्ची सिस्टम पर उठाए सवाल
Himachal Politics हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election) के बाद सियासी हलचल मच गई। वहीं इस चुनाव में बीजेपी के हर्ष महाजन को पर्ची सिस्टम के आधार विजयी बनाया गया। लेकिन राज्यसभा चुनाव के 38 दिन बाद अब कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने पर्ची सिस्टम पर भी सवाल खड़े किए हैं।
विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव को कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। इस चुनाव में अभिषेक मनु सिंघवी और भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन को 34-34 वोट प्राप्त हुए थे।
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में शनिवार को दायर याचिका में अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि मत समान होने के बाद पर्ची से नाम निकाले गए, लेकिन इस पर्ची सिस्टम में जिस तरह से भाजपा प्रत्याशी को विजेता घोषित किया गया वह गलत है। सिंघवी का कहना है कि पर्ची जिस प्रत्याशी के नाम की निकली, जीत उसकी होनी चाहिए थी। मगर इसके उलट, दूसरे उम्मीदवार को विजेता घोषित किया गया जो कानूनी रूप से गलत है।
38 दिन बाद दायर की हाईकोर्ट में याचिका
इन आरोपों को आधार बनाते हुए प्रार्थी ने चुनाव परिणाम के 38 दिन बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। प्रार्थी अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि यह धारणा या परंपरा गलत है, इसलिए चुनाव परिणाम भी गलत है। अदालत इस चुनाव को रद कर दोबारा चुनाव का आदेश दे। 27 फरवरी को हुए चुनाव में तीन निर्दलीय विधायकों समेत कांग्रेस के छह विद्रोही विधायकों ने कांग्रेस के प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ वोट दिया था।68 सदस्यों वाली हिमाचल विधानसभा में दोनों को 34-34 वोट मिले। पर्ची अभिषेक मनु सिंघवी के नाम की निकली और परंपरा के अनुसार, जिसकी पर्ची निकलती है तो दूसरे प्रत्याशी को विजयी घोषित किया जाता है। लाटरी सिस्टम की इसी कड़ी को अभिषेक मनु सिंघवी ने न्यायालय में चुनौती दी है।
पहली बार हिमाचल में चर्चा में रहा राज्यसभा चुनाव
40 विधायकों वाली कांग्रेस आश्वस्त थी कि तीन निर्दलीय भी साथ हैं। भाजपा के 25 विधायक थे। भाजपा को 34 वोट मिले क्योंकि कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की जबकि तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान किया। पीपल्स रिप्रेसेंटेशन एक्ट में इस बात का उल्लेख है कि समान मत मिलने पर चुनाव अधिकारी लाटरी या पर्ची सिस्टम का सहारा ले सकता है, लेकिन यह उल्लेख कहीं नहीं है कि जिसके नाम की पर्ची निकले, उसके बजाय दूसरे प्रत्याशी को विजेता किया जाए। हालांकि यह परंपरा या धारणा अवश्य है।इसलिए अलग है राज्यसभा चुनाव
हर मतदान में गोपनीयता की शर्त के विपरीत राज्यसभा चुनाव में ऐसा नहीं होता। 1998 में ऐसा अनुभव किया गया कि धनबल और बाहुबल का प्रयोग हो रहा है। 2001 में तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली विधेयक लाए कि राज्यसभा के लिए चुनाव गोपनीय न हो। बाद में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने इसका विरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दी थी कि मत की गोपनीयता अपनी जगह, किंतु बड़ी प्राथमिकता चुनाव का निष्पक्ष और साफ होना है। तब से विधायकों को अपना मत पार्टी के एजेंट को दिखाना होता है।
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