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पिघले ग्लेशियर या फिर आए बाढ़... आपदा से बचाएगी खतरे की घंटी, हिमाचल में प्रशासन ने तैयार किया ये खास प्लान

Himachal Pradesh News हिमाचल प्रदेश में ग्लेश्यिरों व बाढ़ से तबाही के बचाव के लिए तीन जिलों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगेंगे। ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बनने वाली झीलों का पूरा सेटेलाइट डाटा तो मौजूद रहता है। समस्या ये होती है जब बाढ़ की स्थिति पैदा होती है देर हो जाती है और बहुत अधिक तबाही हो जाती है।

By Yadvinder Sharma Edited By: Himani Sharma Updated: Sat, 08 Jun 2024 12:51 PM (IST)
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हिमाचल के तीन जिलों में लगेंगे अर्ली वार्निंग सिस्टम (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, शिमला। हिमाचल प्रदेश में ग्लेशियरों व बाढ़ से होने वाली तबाही से बचाव के लिए प्रदेश के तीन जिलों में अर्ली वार्निंग सिस्टम यानी आपदा आने पूर्व जानकारी देने वाले सिस्टम को लगाया जाएगा।

ये अर्ली वार्निंग सिस्टम प्रदेश के किन्नौर, कुल्लू और लाहुल स्पीति में लगाए जाने की योजना है। इस संबंध में तीनों जिलों के जिला उपायुक्तों को सारी स्थितियों का आकलन करने को कहा गया है जिससे ऐसे स्थान चिन्हित हो सकें जहां पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जाने हैं।

सेटेलाइट डाटा रहेगा मौजूद

ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बनने वाली झीलों का पूरा सेटेलाइट डाटा तो मौजूद रहता है। समस्या ये होती है जब बाढ़ की स्थिति पैदा होती है देर हो जाती है और बहुत अधिक तबाही हो जाती है। ऐसे में तीनों जिलों के जिला उपायुक्त विभिन्न विभागों, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अन्यों के साथ वहां का निरीक्ष्रण करेंगे जिससे सभी स्थानों का आकलन हो सके और सही स्थान पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जा सकें।

नदियों व झीलों के जलस्तर को बढ़ा ले सकती हैं खतरनाक रुप

बीते एक दशक के दौरान ग्लेशियर पिघलने के कारण 1200 से अधिक झीलों के बनने का अनुमान है। हिमस्खलन व ग्लेशियरों के टूटने के कारण झीलें और नदियां खतराक रुप ले सकती हैं और बड़ी आपदा के कारण नुकसान कर सकती हैं।

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वैज्ञानिकों द्वारा हिमालयी क्षेत्र में बनी हुई झीलों पर बीते पांच वर्ष से अध्ययन किया जा रहा है। अध्यय ने दौरान ये बात सामने आई है कि प्रदेश की नदियों में पानी की मात्रा में ग्लशियरों के पिघलने से पानी की मात्रा में तीन से चार फीसद तक वृद्धि हुई है और आने वाले वर्षों में और अधिक इजाफा होने की संभावना जताई गई है।

घाटी दस हेक्टेयर से अधिक पांच से दस हेक्टेयर के बीच पांच हेक्टेयर तक कुल झीलें
सतलुज 51 57 663 771
चिनाब 08 20 480 508
ब्यास 06 08 116 130
रावी 03 02 61 66
कुल 68 87 1320 1475

2005 में पारछू में भूस्खलन मचा चुका है भारी तबाही

वर्ष 2005 में पारछू झील में भूस्खलन के कारण सतलुज नदी में बढ़े जलस्तर ने समधो से लेकर बिलासपुर तक तबाही मचाई थी जिसमें जान-माल का बहुत नुकसान हुआ था। पारछू पर तब से लेकर लगातार निगरानी रखी जा रही है जिससे किसी भी तरह कर आपदा को आने से रोका जा सके।

प्रदेश के तीन जिलों किन्नौर, लाहुल स्पीति और कुल्लू में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की योजना है। इस संबंध में जिला उपायुक्तों को ट्रेक जांचने और स्थान चिन्हित करने को कहा गया है। -डीसी राणा, विशेष सचिव व निदेशक आपदा प्रबंधन

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