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Himachal: मंत्रिमंडल विस्तार से सुक्खू ने साधे एक तीर से कई निशाने, अब 'खाली कुर्सी' किसकी होगी? विधायकों में जगी आस...

सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक तरफ मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चल रहे दबाव को कम किया गया है तो वहीं कांगड़ा को और महत्व दिया है। इसके अतिरिक्त एक पद खाली रखकर सभी के लिए संभावनाएं भी खुली रखी हैं। कुल मिलाकर राजनीति की चौसर में मुख्यमंत्री सुक्खू ने ये दिखाया है कि वह भी पुराने राजनीतिज्ञ हैं और इस चौसर के मंझे हुए खिलाड़ी।

By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerUpdated: Wed, 13 Dec 2023 05:00 AM (IST)
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मंत्रिमंडल विस्तार से सुक्खू ने साधे एक तीर से कई निशाने (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, शिमला। सरकार के मंत्रिमंडल में अब एक कुर्सी खाली रह गई है। ये कुर्सी किसकी होगी ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यही नहीं अगला मंत्रिमंडल विस्तार कब होगा ये भी अहम सवाल है। क्योंकि पहला विस्तार एक साल के बाद हुआ है। मंत्रिमंडल में पद चाहने वाले कई चेहरे हैं लेकिन क्या उनकी हसरतें पूरी होंगी यह कहा नहीं जा सकता।

राजेश धर्माणी को पहले से ही मंत्री बनाये जाने के कयास थे। लगातार एक साल से इसकी चर्चा रही है मगर दूसरा नाम यादवेंद्र गोमा का होगा यह अचरज भरा है क्योंकि कई बड़े दिग्गज कतार में थे और अभी भी हैं। जिन नेताओं की हसरत पूरी नहीं हुई उनमें से किसी एक को ही मौका मिलेगा। ऐसे में राजेंद्र राणा, सुधीर शर्मा, विनय कुमार, इंद्र दत्त लखनपाल, संजय रतन सरीखे नेताओं का क्या होगा। कांगड़ा से अनदेखी के आरोप सरकार पर लगते रहे हैं और अब कांगड़ा को एक और पद देकर सरकार ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं, हालांकि लोकसभा चुनाव में इसका कितना असर होगा यह समय बताएगा।

सुक्खू ने एक तीर से कई निशाने साध दिए

फिलहाल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं। एक तरफ मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चल रहे दबाव को कम किया गया है तो वहीं, कांगड़ा को और महत्व दिया है। इसके अतिरिक्त एक पद खाली रखकर सभी के लिए संभावनाएं भी खुली रखी हैं। कुल मिलाकर राजनीति की चौसर में मुख्यमंत्री सुक्खू ने ये दिखाया है कि वह भी पुराने राजनीतिज्ञ हैं और इस चौसर के मंझे हुए खिलाड़ी।

मगर उन नेताओं की अब नींद हराम है जो एक साल से सपना संजोए बैठे थे। उनका आगे क्या होगा यह समय बताएगा। वह नेता आगे क्या करेंगे यह भी देखने वाली बात होगी। सुधीर शर्मा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं और पार्टी में उनका बड़ा कद भी है मगर पार्टी ने उनको ओहदा नहीं दिया जिससे उनके समर्थकों में नाराजगी है। वहीं राजेन्द्र राणा भी कद्दावर नेता हैं और ये दोनों नेता वीरभद्र कैम्प के खास रहे हैं। इनको बड़ा झटका इस विस्तार से जरूर लगा है। फिलहाल कैबिनेट की खाली कुर्सी की सियासत अब किस किस को नाच नचाती है यह देखना बाकी है।

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