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मैं आपका हिमाचल प्रदेश, उबर तो रहा हूं पर… क्या-क्या नुकसान हुआ कैसे गिनाऊं

सबसे पहले तो आपको यह बताना है कि जितने भी पर्यटक मेरे यहां फंसे हुए बताए जा रहे हैं वे इस दृष्टि से तो फंसे हुए हैं कि अभी लौट नहीं सकते... पर वे सकुशल हैं। धीरे-धीरे सब लौट आएंगे। केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिल कर मुझे इस आपदा से बाहर निकालने का प्रयास कर रही हैं। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री से बात की है।

By Jagran NewsEdited By: Nidhi VinodiyaUpdated: Sat, 15 Jul 2023 01:03 PM (IST)
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मैं आपका हिमाचल प्रदेश, उबर तो रहा हूं पर… क्या-क्या नुकसान हुआ कैसे गिनाऊं

प्रिय देशवासियों, सादर नमस्कार।

कैसा लगता है जब आपके घर में अचानक आपदा आए और घर के लोग ही नहीं, अतिथि भी पीड़ित और प्रभावित हो जाएं? मुझे भी बुरा लगा जब मेरी नदियां अचानक गुस्से में आ गईं, खड्डें गला खखारने लगीं, नाले नाराज हो गए और पीड़ा झेलते पहाड़ टूट कर गिरने लगे। सरकारी विभाग आंकड़े दे रहे हैं...इस बरसात से बागवानी को 100 करोड़ और कृषि को 80 करोड़ रुपये की हानि हुई है। और क्या-क्या हानि उठाई है, उस पर क्या बात करूं?

सबसे पहले तो आपको यह बताना है कि जितने भी पर्यटक मेरे यहां फंसे हुए बताए जा रहे हैं, वे इस दृष्टि से तो फंसे हुए हैं कि अभी लौट नहीं सकते... पर वे सकुशल हैं। धीरे-धीरे सब लौट आएंगे। केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिल कर मुझे इस आपदा से बाहर निकालने का प्रयास कर रही हैं। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री से बात की है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने भी मुख्यमंत्री से संवाद किया है। इसलिए बता रहा हूं कि इस आपदा से लड़ने के लिए मेरे सब हाथ एकजुट हैं।

वायुसेना का हेलीकॉप्टर लोगों को निकाल रहा है। यहां प्रयास यही है कि कोई भूखा न सोए। आप जब मेरा यह पत्र पढ़ रहे होंगे, संभव है कि तब तक चंद्रताल झील से भी अतिथियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जा चुका होगा। हां, आप अवगत हैं कि जब इस स्तर का जल थल होता है तो दूरसंचार प्रभावित होता है... आपके अपनों से आपकी बात नहीं हो पाती।

बिजली गुल हो जाती है, पानी की आपूर्ति प्रभावित होती है। थोड़ा संयम रखें। दृढ़ता रखें...मंडी के पंचवक्त्र मंदिर की तरह। लहरें उतर ही जाएंगी...जनजीवन सामान्य हो ही जाएगा। इधर, डीजीपी न सही, उनका काम देख रही अतिरिक्त डीजीपी सतवंत अटवाल और उनकी टीम ने काम संभाला हुआ है। मुख्य सचिव जॉर्डन दौरा पूरा होने से तीन दिन पहले ही लौट रहे हैं।

यहां का हाल क्या बताऊं? सड़कें नदियों में समा गई हैं, आना जाना कठिन हो गया है। कल मेरी पालमपुर मंडी में टमाटर का 22 किलोग्राम का क्रेट 4500 रुपये में पहुंचा है। स्वयं ही गणित कीजिए कि थोक में यह कीमत है तो परचून में टमाटर कितना लाल होगा? पर इससे मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। दही है न। बरसात में छोंक लगा दही पेट का मित्र ही होता है। मंगलवार की सुबह मैं मंडी शहर के पुरानी मंडी क्षेत्र तक गया तो पाया कि लोग अपने बह चुके घरों के निशान ढूंढने का प्रयास कर रहे थे।

एक को अपना बड़ा कुक्कर मिला। रेत से सना हुआ था। नदी की रौद्रता के चिह्र लिए हुए। चार दुकानें घूम कर...दो रिश्तेदारों से पूछ कर खरीदा होगा कभी। और क्या दृश्य दिखाऊं? चंबा और थुनाग में कीचड़ या मलबा तो आया, लकड़ी के बड़े-बड़े स्लीपर भी आए। रावी ने तो कई स्लीपर ढोए हैं। एक शादी का मुहूर्त न निकल जाए, इसलिए सिग्नल मिलने पर विवाह ही ऑनलाइन हुआ है। जिन्हें ऑनलाइन शादी पर भरोसा नहीं, उन्होंने एक्सकेवेटर से दूल्हा-दुल्हन को घर पहुंचाया। मौसम विभाग का कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की हवाओं के मिलन से इतनी वर्षा हुई है।

सच कहूं तो मुझे क्षोभ होता है कि मैं आज तक जैसे पश्चिमी विक्षोभ को नहीं समझ सका, मेरे लोग यह नहीं समझ सके कि विकास या निर्माण का सलीका क्या है। नदियों के किनारे घर बने हों और बाढ़ की संभावनाएं सामने हो तो दोष किसका है। बरोट में नदी के किनारे कपड़े के टेंट लगे हैं...क्या वे सौ वर्ष पुराने लोहे के पुलों से अधिक सशक्त और सक्षम हैं? ये पहाड़ जो जरा सी वर्षा पर नमक की तरह पिघल रहे हैं, इनके कष्ट पर किसी का ध्यान है? बिजली परियोजनाओं के नाम पर खोखले होते मेरे पहाड़ इतने दुर्बल तो नहीं ही थे। अचानक क्या हुआ? सच यह है कि अचानक कुछ नहीं हुआ है।

पहाड़ ने वही लौटाया है जो इतने वर्षों में उसे मिला है। फोरलेन यदि आवश्यक भी है तो उसका मलबे को निपटाना भी तो एक बड़ा काम है। उस अतिक्रमण पर किसी का ध्यान है जो आए दिन होता है? ये मलबे में बह कर आते स्लीपर पेड़ नहीं हैं। पेड़ के पैर कभी नहीं हिलते। इन्हें काटा गया था! ये शव हैं पेड़ों के! मैं दुखी होता हूं कि आज तक शिमला की तारा देवी बीट और चंबा की एहलमी बीट में हुए पेड़ कटान का क्या हुआ? कोई तार्किक परिणति नहीं...कोई फालोअप नहीं...इसलिए ये आपदा है।

मेरे सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन का योगदान सात से नौ प्रतिशत है। यानी शोर अधिक, काम की बात कम। इसके बावजूद लोग आएं, मैं स्वागत करता हूं पर यदि यह कहा जाए कि वे पहाड़ पर कचरा न फैलाएं तो इंटरनेट पर मुझे डराया जाता है कि पर्यटक भी नहीं आएंगे तो पहाड़ भूखा मरेगा। सच यह है कि पहाड़ कभी भूखा नहीं मरा। कहीं कोई हिमाचली भिखारी दिखे तो मुझे बताइएगा।

पर्यटक आए पर हिमाचल पुलिस के साथ झगड़ा करने, तलवारें लहराने नहीं.... इस धरा की हरियाली को आत्मसात करने आए। मेरे नीति नियंताओं को भी सोचना होगा कि अवैध कब्जे नियमित करने से वोट तो मिलता है, प्रकृति से दया नहीं मिलती। मैं कुछ दिनों में फिर पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा। ये आपदा सबक नहीं बनी तो फिर ऐसी ही किसी आपदा के लिए।

पर मैं आपका स्वागत करूंगा... अपना ध्यान रखें।

आपका ही

हिमाचल!

नवनीत शर्मा, राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश

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