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हिमाचल हाईकोर्ट ने खंड विकास अधिकारी BDO के पद पर की गई पदोन्नति को किया रद्द, जानें क्या है मामला

राज्य के हाईकोर्ट ने खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) के पद पर की गई पदोन्नति को लेकर आज फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने पद के लिए की गई पदोन्नति को गलत बताते हुए रद्द कर दिया है। इस फैसले में मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगाई।

By Subhash ChanderEdited By: Shoyeb AhmedUpdated: Thu, 26 Oct 2023 03:31 PM (IST)
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हिमाचल हाईकोर्ट ने खंड विकास अधिकारी BDO के पद पर की गई पदोन्नति को किया रद्द

जागरण संवाददाता, शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने खंड विकास अधिकारी (BDO) के पद पर की गई पदोन्नति को गलत पाते हुए रद्द कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगाते हुए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर रिव्यू डीपीसी आयोजित करने के आदेश भी दिए। कोर्ट ने कहा कि इस पद के लिए पात्रता रखने वाले उम्मीदवार को पदोन्नति प्रदान की जाए।

ये है मामला

इस मामले के अनुसार प्रार्थी रूपलाल 15 जनवरी 1988 को तथा प्रतिवादी सतिंदर सिंह ठाकुर 21 जनवरी 1988 को एग्रीकल्चर इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए थे। 12 दिसंबर 1994 को दोनों को इसी पद पर नियमित कर दिया गया। प्रतिवादी से वरिष्ठ होते हुए भी 23 अगस्त 2006 को तैयार की गई वरीयता सूची में प्रतिवादी को 199 वें व प्रार्थी को 200 वें स्थान पर दर्शाया गया।

वर्ष 2007 में खंड विकास अधिकारी के पद के लिए लोक सेवा आयोग के माध्यम से डीपीसी (विभागिय पदोन्नत समिति) आयोजित की गई और 9 अक्टूबर 2007 को सतिंदर सिंह ठाकुर को खंड विकास अधिकारी के पद पर पदोन्नति कर लिया गया। प्रार्थी ने तत्कालीन प्रशासनिक प्राधिकरण के समक्ष सतिंदर सिंह ठाकुर की पदोन्नति को यह कहकर चुनौती दी कि नियमों के मुताबिक खंड विकास अधिकारी का पद सिलेक्शन पोस्ट की श्रेणी में आता है।

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पहले मेरिट फिर सीनियोरिटी का सिद्धांत है जरूरी

इसके लिए पहले मेरिट और फिर सीनियोरिटी के सिद्धांत को अपनाया जाना अति आवश्यक था। प्रार्थी की यह दलील थी कि पिछले 5 वर्षों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक वह प्रतिवादी से अच्छी मेरिट रखता था। प्रार्थी के अनुसार उसकी पांच वर्ष की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक उसे चार वर्ष के लिए बहुत अच्छा व केवल एक वर्ष की एंट्री में अच्छा दर्शाया गया था।

जबकि प्रतिवादी को 3 वर्ष के लिए बहुत अच्छा व दो वर्ष के लिए केवल अच्छा दर्शाया गया था। एकल पीठ ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए प्रतिवादी की पदोन्नति को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी मेरिट कम सीनियोरिटी के सिद्धांत के अनुसार प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए एकल पीठ के फैसले पर अपनी मोहर लगा दी और उपरोक्त निर्णय पारित कर दिया।

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