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Himachal News: गजब की तकनीक! भूस्खलन की चार से पांच घंटे पहले जानकारी देगा यह ऐप, जमीन की हलचल से कराएगा अवगत

भूस्खलन एक ऐसी आपदा है जो चंद सेकंडों में विध्वंश का कारण बन जाती है। ऐसे में एक ऐसी तकनीक का इजाद किया गया है जो भूस्खलन की जानकारी चार से पांच घंटे पहले ही दे देगा। इस तकनीक के सहारे भूस्खलन के लिए उच्च जोखिम क्षेत्रों की पहचान कर उसे दूर किया जा सके। यह ऐप अर्ली वॉर्निंग सिस्टम से जुड़ी होगी

By Yadvinder Sharma Edited By: Prince Sharma Updated: Tue, 16 Jul 2024 08:04 PM (IST)
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Himachal News: लैंडस्लाइड ऐप- भूस्खलन की जानकारी देगी यह तकनीक (जागरण फोटो)
राज्य ब्यूरो, शिमला। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भूस्खलन को लेकर ऐप तैयार कर रहा है। लोगों के लिए बहुत मददगार साबित होने वाली यह ऐप जल्द जारी होगी। इसका नाम भूस्खलन ऐप होगा।

इस ऐप से लोगों को भूस्खलन से संबंधित जानकारी चार से पांच घंटे पूर्व मिल जाएगी। इस ऐप को देश के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के लिए तैयार किया जा रहा है।

यह जानकारी मंगलवार को शिमला के पीटरहाफ में भूस्खलन आपदा जोखिम न्यूनीकरण, समन्वय, सहयोग, कौशल वृद्धि और कार्यान्वयन को लेकर आयोजित कार्यशाला के दौरान उप महानिदेशक व राष्ट्रीय मिशन हेड सैबल घोष ने दी। वह इस कार्यशाला में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शामिल हुए।

अर्ली वॉर्निंग सिस्टम से जुड़ा है वैज्ञानिक अपडेट

उन्होंने कहा कि हिमाचल में भूस्खलन की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं जिससे भूस्खलन के लिए उच्च जोखिम क्षेत्रों की पहचान कर उसे दूर किया जा सके। यह ऐप अर्ली वॉर्निंग सिस्टम से जुड़ी होगी जिसमें वैज्ञानिक अपडेट करेंगे।

अर्ली वार्निंग सिस्टम एक उपकरण है जिसे भूस्खलन संभावित क्षेत्र में लगाया जाता है। जमीन में किसी भी तरह की हलचल होने की पूर्व जानकारी यह उपकरण देता है।

कार्यशाला में मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के निदेशक डीसी राणा ने कहा कि हिमाचल में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान की गई है।

ऐसे क्षेत्रों के लिए मानसून के दौरान विशेष प्रबंध किए गए हैं। उन्होंने भूस्खलन के दौरान जान, माल का नुकसान कम से कम हो, इसके लिए संयुक्त प्रयास करने और बेहतर तालमेल की आवश्यकता जताई। उन्होंने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से सहयोग करने की मांग की।

कार्यशाला में हुई चर्चा

कार्यशाला का उद्देश्य सभी हितधारकों को पहाड़ी राज्य हिमाचल में भूस्खलन और ढलान की अस्थिरता से संबंधित समस्याओं को समझना, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और अन्य संस्थानों व विभागों की ओर से अब तक किए गए कार्यों से अवगत करवाना था।

कार्यशाला की अध्यक्षता एडीजी व विभागाध्यक्ष भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तर रेंज लखनऊ ने की। इस दौरान बताया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भारत के एक प्रमुख भूवैज्ञानिक संगठन एवं भारत में भूस्खलन अध्ययन पर नोडल एजेंसी होने के नाते राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एनएलएसएम) से संबंधित पूरे राज्य का मैक्रो स्केल (1:50,000) भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एलएसएम) अध्ययन कर चुका है।

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