Himachal: संसाधन नहीं जुटे तो वेतन और पेंशन का बोझ विकास पर लगा देगा ब्रेक, 83 हजार करोड़ रुपये पहुंचा सरकार का कर्ज
हिमाचल में सुक्खू सरकार अगर संसाधन नहीं जुटा पाती है तो पेंशन का बोझ सरकार के विकास में रोड़ा बन सकता है। तब दें चार साल में वेतन पर 4000 करोड़ से अधिक और पेंशन पर 3000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ने वाला है। हलाांकि वित्त विभाग के अध्ययन के मुताबिक साल 2032 के बाद पेंशनर्स की संख्या में गिरावट आएगी।
राज्य ब्यूरो, शिमला। संसाधन नहीं जुटाए गए तो हिमाचल सरकार के लिए कर्मचारियों का वेतन और पेंशन का बोझ उठाना असहनीय ( himachal pradesh debt rises) होगा। हिमाचल सरकार ने संसाधन जुटाने की दिशा में कदम तो उठाया है, लेकिन इस तरह के प्रयासों के परिणाम उत्साहवर्धक नहीं आए हैं। सरकारी क्षेत्र में नई भर्तियां करने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
निजी क्षेत्र में स्थायी रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार का एकमात्र रास्ता सरकारी नौकरी ही बचता है, लेकिन कर्मचारियों का वेतन लंबी छलांग मारते हुए बढ़ता जा रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष में कर्मचारियों के वेतन पर साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है। यदि चार साल बाद कर्मचारियों के वेतन का आकलन किया जाए तो चार हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाना होगा।
हिमाचल सरकार से इस समय डेढ़ लाख से अधिक पेंशनर्स मासिक पेंशन लेते हैं। वित्त विभाग का अध्ययन था कि वर्ष 2032 के बाद पेंशनर्स की संख्या घटती चली जाएगी। परिणामस्वरूप सरकार के लिए पेंशन का बोझ कम होगा। लेकिन, राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) से पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) में आए सवा लाख कर्मचारी वर्ष 2035 में तेजी से सेवानिवृत्त होने लगेंगे।
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पेंशन के लिए वेतन से अधिक राशि की दरकार रहेगी। प्रदेश की अर्थव्यवस्था के कछुआ चाल से चलने के पीछे बड़ा कारण यह कि सरकार को वेतन और पेंशन पर सर्वाधिक खर्च करना पड़ता है। प्रदेश सरकार ने अगले वित्त वर्ष के बजट में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन-2005 के नियमों में विस्तार से वेतन, पेंशन, ब्याज अदायगियों, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, उपदान व वेतन के लिए ग्रांट-इन-एड में स्थिति को स्पष्ट किया है।
ऋण का ब्याज चुकाना भी परेशान करेगा
प्रदेश सरकार पर कुल ऋण 83 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है। एक हाथ सरकार ऋण ले रही है तो दूसरे हाथ ब्याज चुकाने के लिए भी पर्याप्त राशि कोष में चाहिए। इस समय ब्याज चुकाने के लिए साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये वार्षिक खर्च होते हैं। चार वर्ष बाद ब्याज की अदायगियां पूरी करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि चाहिए।
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