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वीरभद्र सिंह बोले, चेहरा तो बदला पर फौज पुरानी, बदलने की जरूरत

हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र्र सिंह से दैनिक जागरण के लिए राज्य संपादक नवनीत शर्मा की बातचीत के कुछ अंश....

By BabitaEdited By: Updated: Thu, 02 May 2019 10:28 AM (IST)
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वीरभद्र सिंह बोले, चेहरा तो बदला पर फौज पुरानी, बदलने की जरूरत
शिमला, नवनीत शर्मा। छाेटी उम्र में लोकसभा जाकर सीधे केंद्र की राजनीति से सफर शुरू करने वाले वीरभद्र सिंह प्रचार में डटे हुए हैं। उम्रदराज हो गए हैं लेकिन आंखों में अब भी चमक है। अपने आप को पार्टी की फौज में पहली पंक्ति पर खड़ा बताने वाले वीरभद्र्र सिंह ने राजनीति में कई उतार चढ़ाव भी देखे। उन्हें संतोष इस बात का है कि पार्टी के प्रति वफादारी और सिद्धांत नहीं छोड़े। पार्टी में अपनों ने ही मनमानी भी की लेकिन जो कहा, उस पर अडिग रहे। इंदिरा गांधी के साथ संसद में काम किया तो एनडी तिवारी को प्रशिक्षक भी मानते हैं। सुखराम हों या फिर सुक्खू, जब-जब दुख मिला, उसे खुल कर कहा। प्रचार की गहमागहमी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र्र सिंह से दैनिक जागरण के लिए राज्य संपादक नवनीत शर्मा की बातचीत के कुछ अंश....

अब तो आपको लगता होगा कि प्रदेश कांग्रेस सुरक्षित हाथों में है?

-(हंसते हुए) ऐसा है...गाड़ी चाहे नई क्यों न हो, चालक अनाड़ी होगा तो हादसे की आशंका बनी रहती है। हमारे कई बहुत अच्छे प्रदेशाध्यक्ष रहे। लेकिन कुछ ने पार्टी में ऐसी खलबली मचाई कि पूछिए मत। सुक्खू...! मेरा उनसे कोई द्वेष नहीं है, लेकिन उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दुरुपयोग किया। घर बैठे पदाधिकारियों को पद सौंप दिए, जिनका पार्टी में कोई योगदान नहीं था।  अपनी दोस्ती निभाने के लिए उन्होंने पद बांट दिए। वह पार्टी विरोधी तो नहीं हैं, लेकिन उनका नजरिया सही नहीं है। हां अब मुखिया नए हैं, लेकिन फौज अभी भी पुरानी है, जिसे बदलने की जरूरत है। अब भी मुझे चेहरा बेशक कुलदीप राठौर का दिखता है लेकिन बाकी पुराना हिसाब दिखता है। ...लेकिन कुलदीप कामयाब होंगे, ऐसा विश्वास है। 

इस चुनाव को किस नजरिये से देखते हैं आप?

-अभी तो चुनावी शुरुआत हुई है। धीरे-धीरे प्रचार के रंग और निखरेंगे। प्रदेश के सभी संसदीय क्षेत्रों का दौरा किया गया है। अभी कुछ क्षेत्र बचे हैं, जहां का दौरा किया जाएगा। पार्टी एकजुटता के साथ प्रदेश में आगे बढ़े इसलिए मैं अपनी पार्टी की फौज के सिपाही के रूप में हमेशा पहली पंक्ति में खड़ा हूं।

आप दशकों से राजनीति में हैं, अब और तब की राजनीति में क्या अंतर आया है ?

-पहले पार्टी के पदाधिकारियों में जोश होता था। जीत के लिए जुनून होता था। उस जोश में कमी आई है। किसी भी पार्टी की कामयाबी के लिए उसके नेतृत्व का काबिल होना बड़ी बात है। जब आपके पास दिल से काम करने वाले कार्यकर्ता नहीं होगे, केवल कुर्सी को चाहने वाले होंगे सफल नहीं हो सकते हैं। किसी पर कीचड़ उछालना सही नहीं है। मैंने कभी भी किसी के खिलाफ असभ्य भाषा का प्रयोग नहीं किया है। आदमी को हमेशा अपने असूलों पर टिके रहना चाहिए और इसी राह पर मैं हूं। पहले चुनाव में भी शालीनता होती थी, सद्भाव भी होता था, अब भाषा ही नहीं, नेताओं के आचरण भी बदले हैं।

आपने कहा था कि जो प्रत्याशी मुझे पसंद हो, उसी का प्रचार करूंगा..। अपनी पसंद बताएंगे?

 -जो प्रत्याशी हमारी पार्टी ने चुने हैं, समझ लें कि वे मेरे ही प्रत्याशी हैं। सबके लिए प्रचार करूंगा, कर रहा हूं। यह मेरा फर्ज है। 

 लोकसभा चुनाव का मुद्दा क्या है?

-मुस्कराते हुए... सीधी सी बात है, यह चुनाव मोदी बनाम अन्य है। मोदी जी को अच्छे से जानता हूं। जब मैं केंद्रीय मंत्री था, गुजरात जाना होता था। पूरा मान सम्मान देते रहे हैं मुझे। चिंताजनक यह है कि इस दौर में नई किस्म की राजनीति शुरू हो चुकी है। बांटने की राजनीति, चरित्र हनन की राजनीति। भाजपा जाति धर्म के नाम पर लोगों को बांट रही है। 

आप बेहद सख्त भी हैं लेकिन बहुत ही विनम्र भी... भावुक भी हैं...क्या पंडित सुखराम को माफ कर दिया?

-(भृकुटि तान कर सामान्य होते हुए...) मैं माफ कर देता हूं सबको...। हो गई बात। पार्टी के लिए काम करना है बस। वैसे पहली बार लोकसभा का सदस्य बना था। प्रदेश में आने का मन नहीं था। ठाकुर कर्म सिंह व सुखराम ने मेरा समर्थन किया और मैं प्रदेश की राजनीति में आया। सुखराम मेरे खिलाफ चलते रहे। फिर कांग्रेस को छोड़ अपनी पार्टी बनाई, डूबोई भी। भाजपा में गए तो अब कांग्रेस में आए। ऐसा करना उन्हें शोभा नहीं देता है। (ठहाका लगाते हुए) लेकिन यह अच्छा है कि वह घाट-घाट की सैर करके वापस आ गए। पहले तो बहुत भटके हैं इधर-उधर। 

शांता कुमार ने आपकी बहुत तारीफ की है। कहा कि वह और सिद्धांत की पार्टी से हैं..।

-हंसते हुए... शांता कुमार ने ठीक कहा है। वह कहीं नहीं गए न मैं। जिस वफादारी से पार्टी में आया था, उसी वफादारी से आज भी काम कर रहा हूं। शांता कुमार की तरह पार्टी के लिए पूरी वफादारी से काम किया और पार्टी को नैतिकता के आधार पर आगे बढ़ाया है। दलों में विचारों की लड़ाई होती है, लेकिन यह लड़ाई आदर की भावना से होनी चाहिए।

वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बारे में क्या कहेंगे आप?

-जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री नए हैं भले ही काफी पुराने और लगातार जीतने वाले विधायक हैं। शरीफ हैं। धीरे-धीरे सीख रहे हैं, सीख भी जाएंगे। नेताओं का कुछ कहना जरूरी है लेकिन उसे अमलीजामा भी पहनाया जाना जरूरी है। यह तो हुई सीएम की बात। सरकार ने ऐसा कोई काम सवा साल में नहीं किया है कि हम कहें कि महान काम हो गया। (हंसते हुए) सरकार को काम करके दिखाने होंगे, ऐसे तो बिना मुख्यमंत्री के भी सरकार चल सकती है।

प्रदेश में आज दिन तक रहे किन मुख्यमंत्रियों से ज्यादा प्रभावित हैं?

-प्रदेश की परिकल्पना डॉ. वाईएस परमार ने की थी। और वह ही हिमाचल के सच्चे निर्माता हैं। वह पक्के कांग्रेसी थे। मैं डॉ. वाईएस परमार से ज्यादा प्रभावित हूं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हमेशा मुझे घेरा है। उनका एक ही लक्ष्य रहा कि कैसे वीरभद्र्र सिंह को उलझाया और फंसाया जाए। जब भी मिले दुर्भावना से मिले, सद्भाव से नहीं। राजनीति में विरोधी दल के नेताओं को विदेशी हाथ नहीं समझना चाहिए। शालीनता रहनी चाहिए। जयराम ठाकुर बुरे नहीं। मेहनती हैं लेकिन उनके आसपास सलाहें देने वाले लोग ठीक नहीं। 

राष्ट्र स्तर पर मोदी व अन्य की तुलना आपकी नजर में ?

-मेरी राजनीति आरंभ ही केंद्र से हुई थी। कई बड़ी जिम्मेदारियां बतौर उप मंत्री, राज्य मंत्री और फिर कैबिनेट मंत्री के तौर निभाईं। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एनडी तिवारी मेरे लिए पितातुल्य थे। (भावुक होते हुए...) उन्होंने मुझे संसद और मंत्रालय का काम सिखाया। गुजरात जाना हुआ तो मोदी को जानने का मौका भी मिला। लेकिन यह दूसरा रूप डराने वाला, मैंने नहीं देखा था। मेरे दिल में मोदी के लिए आदर रहा है, लेकिन मेरी उन्हें सलाह है कि वह अभिमान न करें।

वर्तमान राजनीतिक राष्ट्रीय परिदृश्य को किस नजरिए से देखते हैं?

-महात्मा गांधी ने कांग्रेस की स्थापना की। नैतिकता के आधार पर काम हो, इस दिशा में कदम भी उठाए। इसके बाद पंडित नेहरू ने देश को साइंटिफिक टेंपर दिया। आज देश अनाज के मामले में  आत्मनिर्भर बना है। पुराने समय में मंत्री  शान में नहीं बल्कि लोगों से जुड़ाव मेंरहते थे। लेकिन अब बदले राजनीतिक परिवेश में बदलाव भी हुआ है। हां, इंदिरा गांधी देश की सशक्त प्रधानमंत्री रही थीं, जिन्होंने देश के विकास को एक नई दिशा दी।

जाहिर है, परिवार के ये गुण राहुल गांधी में आए ही होंगे...आप क्या कहते हैं?

-पिता के नाना, दादी, और पिता राजनीतिज्ञ रहे हैं। ऐसे में राजनीति के गुण तो उनमें पहले से ही हैं। राहुल पहले पूरी तरह से परिपक्व नहीं थे। इधर देख रहा हूं कि वह अच्छे वक्ता बन रहे हैं। पहले उन्हें सलाहकार चलाते थे लेकिन अब उनका सब पर नियंत्रण है। वह पुराने राहुल नहीं हैं, वह एक होनहार युवा राजनीतिज्ञ बन चुके हैं।

आप पहाड़ी संस्कृति से नए-नए शब्द निकालते हैं और जनसभाओं में प्रयोग करते हैं। ऐसा ही एक शब्द है मकरझंडू..। जिनके लिए प्रयोग करते हैं, उनके बारे में न भी बताए, इस शब्द के बारे में अवश्य बताएं।

-(ठहाका लगाते हुए...) देखिए। पहाड़ में यह एक शब्द होता है। पहाड़ी शैली में जब मकान बनते हैं, तो छत के दोनों हिस्से जहां जुड़ते हैं, वहां एक लंबा सा फट्टा जैसा रखा जाता है। उसके दो मुंह होते हैं। दोनों ओर 

मगरमच्छ की आकृति होती है। वह फट्टा आजीवन पसरा रहता है राजनीति में इसका अर्थ ऐसे लोगों के लिए है जो किसी काम के नहीं। 

सख्त प्रशासक थी इंदिरा सो नहीं पाते थे मंत्री 

मंत्रियों की हालत यह थी कि वे  सो नहीं पाते थे। संसद में इंदिरा जी ने मौजूद रहना था। प्रश्नकाल था। एनडी तिवारी जी ने पहले ही कह दिया था कि तैयारी कर लेना, जवाब आपको देने हैं। अगले दिन जैसे ही संसद में खड़ा हुआ, भरी हुई लोकसभा को देखकर टांगें कांप गईं। फिर पूरे संयम के साथ जवाब दिया। फिर तिवारी जी ने मेरी ही ड्यूटी लगा दी। तालियां भी खूब पड़ती थीं। एक दिन अचानक शाम को इंदिरा जी ने बुलाया और कहा, हिमाचल जाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालो। मैंने बेहद संकोच के साथ कहा, ‘क्या मुझसे कोई गलती हो गई है मैडम?’ उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, ‘नहीं, जाओ। पर्यावरण को संभालो। हमसे वहां वन माफिया नहीं संभल रहा।’

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