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जागरण संपादकीय: शिमला का दुख…; मत ही मंतव्य और सत्ता गंतव्य, नहीं थम रहा संजौली मस्जिद का विवाद

जागरण संपादकीय कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के मंत्रियों ने भी वित्तपोषण किया। भाजपा का आरोप है कि यह कांग्रेस ने किया। जिस वामदल के लोग इस सारी बात को इस्लामोफोबिया बता रहे हैं वे भी दोषी हैं। वस्तुस्थिति को देखते हुए कोई दल इस अवस्था में नहीं कि स्वयं को शुद्ध बता सके। यह विषय इतना संवेदनशील न बनता यदि हर राजनीतिक दल ने दायित्व समझा होता।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Wed, 18 Sep 2024 11:38 PM (IST)
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शिमला के संजौली में मस्जिद के अवैध निर्माण के विरोध में एकत्र हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता। फाइल फोटो
नवलीत शर्मा, शिमला। हिमाचल प्रदेश जैसे शांत राज्य में कुछ समय से अतिक्रमित भूमि पर मस्जिद बनाने के मामलों का विरोध मुखर हो रहा है। शिमला के संजौली उपनगर में बनी मस्जिद पर शोर अधिक हुआ और जब विषय नगर निगम आयुक्त के न्यायालय में सुना गया तो वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि पांच मंजिला मस्जिद में तीन मंजिलों का निर्माण कौन कर गया।

मामले मंडी, बिलासपुर और कुल्लू तक से उठे। किसी भी समस्या को देखने के कई कोण हो सकते हैं। संजौली में भी यही हो रहा है। हर व्यक्ति इसे अपने-अपने कोण से देख रहा है। सुक्खू सरकार ने स्ट्रीट वेंडर एक्ट लाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष से समिति बनाने को कहा है, आशा करनी चाहिए कि बाजारों का परिदृश्य सुव्यवस्थित होगा। लेकिन यह विषय इतना संवेदनशील न बनता यदि हर राजनीतिक दल ने दायित्व समझा होता।

14 वर्ष से यह विषय जारी

यहां मतों की फसल बीजने का विचार न बनाया होता। 14 वर्ष से यह विषय जारी है, लेकिन नगर निगम की सर्द दीवारों में कैद फाइलें हिल न सकीं। प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा की सरकारें रहीं। इसी दौरान नगर निगम पर कांग्रेस, भाजपा और सीपीएम का प्रभुत्व रहा।

आयुक्त के रूप में यहां पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं से एएन शर्मा, एमपी सूद, जीसी नेगी, पंकज राय, रोहित जंबाल, आशीष कोहली रहे।

नोटिस के बावजूद निर्माण चलता रहा

वास्तुकार के रूप में आरसी ठाकुर, एनएस गुलेरिया, राजीव शर्मा, केएस चौहान, डीके नाग, देवेंद्र मिस्टा और महबूब अली जैसे लोग रहे जिन पर नगर को नियोजित कर सुंदर बनाने का जिम्मा था। लेकिन इस विषय को यहां तक पहुंचना था। शायद इसीलिए 14 वर्ष की 44 सुनवाइयों और सात नोटिस के बावजूद निर्माण चलता रहा।

कोई पार्टी शुद्ध नहीं

कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के मंत्रियों ने भी वित्तपोषण किया। भाजपा का आरोप है कि यह कांग्रेस ने किया। जिस वामदल के लोग इस सारी बात को इस्लामोफोबिया बता रहे हैं, वे भी दोषी हैं। वस्तुस्थिति को देखते हुए कोई दल इस अवस्था में नहीं कि स्वयं को शुद्ध बता सके।

संयुक्त पंजाब की एक कहावत है। रब नेड़े या घसुन्न यानी ईश्वर नजदीक हैं या अभी पड़ने वाला मुक्का? जैसी व्यवस्था बन गई है, अधिकारियों के लिए नियम या आत्मा की आवाज सुदूर होती है जबकि राजनीतिक निर्देशकों के निर्देश उससे नजदीक।

पैदल चलने वाला आतंकित क्यों न हो

इस विवाद के दौरान ही वास्तुकार महबूब शेख स्थानांतरित हो गए हैं। अधिकारी जब कुछ नहीं करते तो शहरों या कस्बों के फुटपाथ रेहड़ी फड़ी वालों को मिल जाते हैं। पैदल चलने वाला आतंकित क्यों न हो। वास्तविकता यह है कि राजनीतिक दलों के लिए मत ही मंतव्य है और सत्ता गंतव्य है।

इसलिए यदि कहीं नियम-कानून घायल होते हों, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। होना तो यह चाहिए कि जैसा और जिसका भी अवैध निर्माण है, मस्जिद है या मंदिर है, उसे इस स्थिति तक आने ही न दिया जाए कि तोड़ने या टूटने की पीड़ा हंगामे में बदल जाए।

...प्रशासन को नाम नहीं बताऊंगा?

दूसरा विषय है जनसांख्यिकी के बदलने का भय। इसमें कहां संदेह है कि जनसांख्यिकी बदलने से किस प्रकार के घातक असंतुलन उत्पन्न होते हैं। इसके साथ ही नत्थी है यह प्रवृत्ति कि जिस भूमि पर पैर रख दिया, वही स्वामित्व हो गया।

संलग्न खतरे ये हैं कि किसी विशेष दिन किसी विशेष स्थान पर धार्मिक कारणों से यातायात या अन्य गतिविधि ठप क्यों हो जाएं। जैसा मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा था, महिलाओं-बेटियों का बाजार से निकलना दूभर क्यों हो जाए।

इतने वर्षों से जो लोग यहां रह रहे हैं, उनके साथ किसी को समस्या नहीं आई तो अब ऐसा क्यों हो रहा है कि मान न मान मैं तेरा मेहमान …मैं उत्तर प्रदेश के एक विशेष क्षेत्र से आऊंगा, यहां अपना कौशल भी दिखाऊंगा… पर मैं पंजीकरण नहीं करवाऊंगा, प्रशासन को नाम नहीं बताऊंगा?

पीड़ा के अनुभव से संतप्त लोगों की पुकार

शिमला ही नहीं पूरे हिमाचल प्रदेश में जो आक्रोश ध्वनित हुआ है, उसके पीछे मतों के पीछे हांफते किसी दल का नेता नहीं है। कोई भेदभाव करने वाला कोण नहीं है, पीड़ा के अनुभव से संतप्त लोगों की पुकार है। इसलिए महत्वपूर्ण यह है कि शासन किसी भी दल का हो, प्रशासन का कोई दल नहीं होना चाहिए।

ऐसा होगा तो राजमार्ग पर दुकानें नहीं पसर सकेंगी…, मार्गों के वे स्थल भी खुली सांस लेंगे जहां अच्छा भला राजमार्ग व्यापारिक प्रतिष्ठानों के वाहनों की पार्किंग बन जाता है और रोगी वाहन का सायरन कातर स्वर में रास्ते का अधिकार मांगता रहता है।

पर ठेकेदार कौन है

राजनीतिक दल बाहर से बेशक परस्पर वैचारिक विरोध का प्रदर्शन करें किंतु आपसी समझ बहुत पक्की होती है। संजौली में मस्जिद के अवैध निर्माण पर वास्तुकार, नगर निगम आयुक्त, इस दौरान के महापौर और सरकार चलाने वाले दल …सब सार्वजनिक हैं किंतु जिसने यह मस्जिद बनाई, उसका, यानी ठेकेदार का नाम कोई नहीं ले रहा। पूछें तो सब चुप हो जाते हैं।

अंदर तक गए तो पता चला कि कोई बड़े राजनीतिक दल का पदाधिकारी है जिसका इतना प्रभाव है कि वह अन्य मस्जिद भी बना रहा है। यानी… पक्ष-विपक्ष सब अपने हैं।

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