जागरण संपादकीय: शिमला का दुख…; मत ही मंतव्य और सत्ता गंतव्य, नहीं थम रहा संजौली मस्जिद का विवाद
जागरण संपादकीय कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के मंत्रियों ने भी वित्तपोषण किया। भाजपा का आरोप है कि यह कांग्रेस ने किया। जिस वामदल के लोग इस सारी बात को इस्लामोफोबिया बता रहे हैं वे भी दोषी हैं। वस्तुस्थिति को देखते हुए कोई दल इस अवस्था में नहीं कि स्वयं को शुद्ध बता सके। यह विषय इतना संवेदनशील न बनता यदि हर राजनीतिक दल ने दायित्व समझा होता।
नवलीत शर्मा, शिमला। हिमाचल प्रदेश जैसे शांत राज्य में कुछ समय से अतिक्रमित भूमि पर मस्जिद बनाने के मामलों का विरोध मुखर हो रहा है। शिमला के संजौली उपनगर में बनी मस्जिद पर शोर अधिक हुआ और जब विषय नगर निगम आयुक्त के न्यायालय में सुना गया तो वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि पांच मंजिला मस्जिद में तीन मंजिलों का निर्माण कौन कर गया।
मामले मंडी, बिलासपुर और कुल्लू तक से उठे। किसी भी समस्या को देखने के कई कोण हो सकते हैं। संजौली में भी यही हो रहा है। हर व्यक्ति इसे अपने-अपने कोण से देख रहा है। सुक्खू सरकार ने स्ट्रीट वेंडर एक्ट लाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष से समिति बनाने को कहा है, आशा करनी चाहिए कि बाजारों का परिदृश्य सुव्यवस्थित होगा। लेकिन यह विषय इतना संवेदनशील न बनता यदि हर राजनीतिक दल ने दायित्व समझा होता।
14 वर्ष से यह विषय जारी
यहां मतों की फसल बीजने का विचार न बनाया होता। 14 वर्ष से यह विषय जारी है, लेकिन नगर निगम की सर्द दीवारों में कैद फाइलें हिल न सकीं। प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा की सरकारें रहीं। इसी दौरान नगर निगम पर कांग्रेस, भाजपा और सीपीएम का प्रभुत्व रहा।आयुक्त के रूप में यहां पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं से एएन शर्मा, एमपी सूद, जीसी नेगी, पंकज राय, रोहित जंबाल, आशीष कोहली रहे।
नोटिस के बावजूद निर्माण चलता रहा
वास्तुकार के रूप में आरसी ठाकुर, एनएस गुलेरिया, राजीव शर्मा, केएस चौहान, डीके नाग, देवेंद्र मिस्टा और महबूब अली जैसे लोग रहे जिन पर नगर को नियोजित कर सुंदर बनाने का जिम्मा था। लेकिन इस विषय को यहां तक पहुंचना था। शायद इसीलिए 14 वर्ष की 44 सुनवाइयों और सात नोटिस के बावजूद निर्माण चलता रहा।कोई पार्टी शुद्ध नहीं
कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के मंत्रियों ने भी वित्तपोषण किया। भाजपा का आरोप है कि यह कांग्रेस ने किया। जिस वामदल के लोग इस सारी बात को इस्लामोफोबिया बता रहे हैं, वे भी दोषी हैं। वस्तुस्थिति को देखते हुए कोई दल इस अवस्था में नहीं कि स्वयं को शुद्ध बता सके।
संयुक्त पंजाब की एक कहावत है। रब नेड़े या घसुन्न यानी ईश्वर नजदीक हैं या अभी पड़ने वाला मुक्का? जैसी व्यवस्था बन गई है, अधिकारियों के लिए नियम या आत्मा की आवाज सुदूर होती है जबकि राजनीतिक निर्देशकों के निर्देश उससे नजदीक।
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