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जागरण विशेष: शिमला में पहाड़ से मैदान तक प्लास्टिक के खतरे से बचाएगा जैविक पैकिंग मैटेरियल

हिमाचल को प्लास्टिक के खतरे से बचाने के लिए एक उत्तम पहल की गई है। प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को देखते हुए हिमाचल के शिमला जिले की युवा विज्ञानी शिवानी चौहान ने स्टार्टअप के अंतर्गत इसका विकल्प तैयार किया गया है। शिवानी ने बायो पैकिंग मैटेरियल तैयार किया है। यह मैटेरियल प्लास्टिक के रूप में काम करेगा। यह चीड़ की पत्तियों व सेब आदि फलों के अवशेषों से बना है।

By Jagran News Edited By: Prince Sharma Published: Tue, 02 Jul 2024 06:50 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2024 06:50 PM (IST)
पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले पैकिंग मटिरियल के साथ शिवानी चौहान

यादवेन्द्र शर्मा, शिमला। भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बेशक प्रतिबंध है, लेकिन इसका प्रयोग थम नहीं रहा है। चिप्स व कुरकुरे से लेकर अन्य पदार्थ सिंगल यूज प्लास्टिक की पैकिंग में ही आ रहे हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए हिमाचल के शिमला जिले की युवा विज्ञानी शिवानी चौहान ने स्टार्टअप के तहत इसका विकल्प तैयार किया है।

उन्होंने इसके लिए बायो पैकिंग मटैरियल तैयार किया है। इसमें चीड़ की पत्तियों, सेब व अन्य फलदार पौधों और फसलों के अवशेषों का उपयोग किया जाता है। यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएगा और प्लास्टिक मुक्त वातावरण को तैयार करने में सहायता करता है।

प्लास्टिक का विकल्प बायोपॉलिमर फिल्म 

शिवानी की ग्रीन वाएबल्स कंपनी ने पैकिंग के लिए उपयोग होने वाली प्लास्टिक फिल्म का विकल्प बायोपॉलिमर फिल्म तैयार की है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के बायो टेक्नोलाजी इनक्यूबेशन सेंटर के डॉ. अरविंद कुमार भट्ट और डॉ. रविकांत भाटिया के मार्गदर्शन में शिवानी चौहान ने निर्धारित मापदंडों को पूरा करने वाली यह बायोपालिमर फिल्म तैयार की है।

शुरू में कपड़े, किराने, बेकरी और कृषि जैसे क्षेत्रों में इसकी आपूर्ति होगी। व्यवसाय प्रबंधन और उद्यमिता में समकालीन रुझानों पर राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली, 2023 में कंपनी की संस्थापक शिवानी को सर्वश्रेष्ठ पेपर-2023 पुरस्कार प्रदान किया गया है।

बायोपॉलिमर फिल्म की विशेषताएं

  • यह पौधों और फसलों के अवशेष की रासायनिक प्रक्रिया से तैयार होती है।
  • दूध व दही जैसे तरल पदार्थों के लिए भी पैकिंग मटैरियल तैयार हो सकता है।
  • इससे सेब और अन्य फलों की पैकिंग की पेटियां भी बनती हैं।
  • इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक का बिल्कुल प्रयोग नहीं होता।
  • यह उपयोग के बाद जमीन में मिल जाएगी और पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा।

प्लास्टिक पैकेजिंग की अपेक्षा 20 प्रतिशत कम दाम 

बायो पैकिंग मटैरियल पर आने वाला खर्च सिंगल यूज प्लास्टिक की अपेक्षा 20 प्रतिशत कम होगा। ऐसे में यह पैकेजिंग मैटेरियल दोहरा लाभ प्रदान करेगा। पैसों की बचत के साथ पर्यावरण के लिए भी लाभदायक साबित होगा।

सिंगल यूज प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान 

हिमाचल में प्लास्टिक के लिफाफे और सिंगल यूज प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक से राज्य में प्रतिदिन 200 टन कचरा उत्पन होता है।

इससे नदियां, जल स्रोत और जमीन बंजर हो रही है। प्लास्टिक अब हवा, पानी और भोजन के जरिए हमारे खून में प्रवेश कर रहा है। जो कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण बन रहा है।

सिंगल यूज प्लास्टिक का कचरा नालियों और नालों में फंसकर आपदा का भी कारण बन रहा है। विज्ञानी और पर्यावरण प्रेमी इससे निजात के लिए जागरूकता के साथ इस पर रोक लगाने की लगातार मांग कर रहे हैं।

पर्यावरण की देखभाल करना हमारा कर्तव्य है। ग्रीन वाएबल्स कंपनी की शुरुआत वर्ष 2020 में कोविड महामारी के बीच हुई थी। अब इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा।

माइक्रो बायोलॉजी ऑनर्स में स्नातक होने के नाते यह विचार शैक्षिक पृष्ठभूमि के अस्तित्व के साथ आया। ग्रीन वाएबल्स एक बायो पैकेजिंग कंपनी है। इसका लक्ष्य पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना चीजों को बेहतर बनाना है।

-शिवानी चौहान, कंपनी की संस्थापक


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