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Janmashtami 2019: जन्माष्टमी व्रत से दूर होंगी ये बाधाएं, इस समय करेंगे पूजा तो मिलेगा मनचाहा फल

Janmashtami 2019 जन्माष्टमी का पर्व इस बार 23 और 24 दोनों दिन ही मनाया जा रहा है ऐसी मान्‍यता है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से मनुष्‍य के जीवन की बहुत सी बाधाएं दूर होत

By Babita kashyapEdited By: Updated: Fri, 23 Aug 2019 03:25 PM (IST)
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Janmashtami 2019: जन्माष्टमी व्रत से दूर होंगी ये बाधाएं, इस समय करेंगे पूजा तो मिलेगा मनचाहा फल

शिमला, जेएनएन। Janmashtami 2019 राजधानी शिमला में शुक्रवार 23 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। गंज बाजार स्थित राधाकृष्ण मंदिर सहित शहर के राम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर अन्य सभी मंदिरों में जन्माष्टमी को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। राधाकृष्ण मंदिर में सुबह से लेकर अर्धरात्रि तक भजन-कीर्तन होंगे। मंदिर को सुगंधित फूलों और लाइटों से सजाया गया है। 

शुक्रवार को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पड़ रही है। जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर वीरवार को मंदिर में यमुनानगर, आर्ट ऑफ ल‍िविंग, महिला संकीर्तन मंडल शिमला और होशियारपुर से आई भजन मंडली ने पूरे दिन कीर्तन और भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया। भजनानंदी रसिक अंकुश खेत्रपाल, कथावाचक चरणानुरागी दीदी स्वरूप शर्मा, आचार्य पुष्पिंदर ने भजन-कीर्तन और कृष्ण कथा से भक्तों को आनंदित कर दिया।

 

सरकारी अवकाश में असमंजस की स्थिति

राधाकृष्ण मंदिर के पंडित उमेश नौटियाल ने बताया कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर वर्ष जन्माष्टमी के व्रत और सरकारी अवकाश में असमंजस की स्थिति बनी रहती है। शास्त्रानुसार 23 अगस्त शुक्रवार के दिन ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत, चंद्रमा को अघ्र्य, दान तथा कृष्ण जन्म से संबंधित अन्य पूजन कार्य करने चाहिए। 24 अगस्त यानी शनिवार को व्रत का पारण करना चाहिए। पंचांग के  अनुसार अष्टमी तिथि 23 अगस्त को ही सुबह 8.09 बजे से शुरू हो रही है और यह 24 अगस्त को सुबह 8.32 बजे खत्म होगी। वहीं, रोहिणी नक्षत्र 24 अगस्त को सुबह 8.32 बजे से शुरू होगा और ये 25 अगस्त को सुबह 9.32 बजे तक रहेगा। 

जन्‍माष्‍टमी व्रत से पूर्ण होती है ये इच्छा 

मत है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस लिहाज से यह दोनों संयोग 23 अगस्त को बन रहे हैं। ऐसे में 23 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना शुभ होगा। संतान प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत उपयोगी धर्म शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है। इसके अलावा सांसारिक जीवन से जुड़े दोष व बाधाएं दूर होती हैं। जन्माष्टमी में अर्धरात्रि के समय भगवान राधा कृष्ण का अभिषेक कर उनकी पूजा-अर्चना करना बहुत फलदायी माना जाता है। साथ ही जिन युवाओं की शादी के योग में किसी प्रकार के विघ्न आ रहे हो या वैवाहिक जीवन में परेशानी हो तो इस दिन लड्डू गोपाल की सेवा करके वह विघ्न दूर होते हैं।


इसलिए 24 अगस्त को भी मनाई जाएगी जन्माष्टमी

वृंदावन की तर्ज पर ही वैष्णव संप्रदाय व ब्रजवासी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे। वैष्णव संप्रदाय में सूर्य उदय की तिथि को माना गया है इसलिए 24 अगस्त को इस बार रोहिणी नक्षत्र है इस दिन अष्टमी तिथि भी है। इस वजह से कुछ लोग 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे।

राम मंदिर में भी होगा गुणगान

विश्व जागृति मिशन शिमला मंडल की ओर से शुक्रवार को राम मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। शाम साढ़े चार से लेकर साढ़े पांच बजे तक सत्संग औैर कृष्ण कथा का गुणगान होगा। कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज लीला, मथुरा लीला और द्वारिका लीला पर विशेष कथा की जाएगी। मंडल के प्रधान हरिचंद गुप्ता ने स्थानीय लोगों से कार्यक्रम में हिस्सा लेने की अपील की है।

किन्‍नौर में इस दिन पशुओं को खिलाया जाता है नमक 

किन्नौर की जनजातीय परंपराओं में कृष्ण जन्माष्टमी का अपना ही महत्व है। मुंबई की दही-हांडी और गोकुल-मथुरा की परंपराओं से कोसों दूर जिला किन्नौर के जनजातीय लोग युला गांव के ऊंचे पहाड़ पर इकट्ठे होते हैं। यहां श्रद्धालु 21 हजार फुट से भी ज्यादा उंचाई पर बने भगवान देन मंदिर में पहुंचकर सब से पहले पशुओं को नमक खिला कर भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। पूरी, हलवा और तरह-तरह के भोग बनाए जाते हैं और पहाड़ों पर निवास करने वाले किन्नर, गंधर्व और अपसराओं की पूजा की जाती है। यहां हिंदू और बौद्ध के अतिरिक्त भिन्न-भिन्न समुदायों के लोग संयुक्त रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। लोगों की श्रद्धा को देखते हुए अब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के इस पर्व को जिला स्तरीय पर्व के रूप में मनाया जाता है, इसमें जिले के अधिकारी विशेष रूप से भाग लेते हैं। इस अवसर पर सखियां अथवा धर्म बहन बनाने की भी प्रथा है, वहां पहुंचे सभी लोग भाई-बहन के पवित्र बंधन में बंधते हैं, इसे स्थानीय बोली में छोडोक्स कहते हैं। श्रद्धालु ब्रह्मा कमल और अन्य कई प्रकार के फूल इकट्ठा करते हैं और जमकर मेला लगाते हैं। 

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