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कोंकण की तर्ज पर होगा रेल विस्तार

हिमाचल की वित्तीय हालत ऐसी नहीं है कि रेल परियोजनाओं के लिए हिस्सेदारी कर सके।

By Edited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 05:31 PM (IST)Updated: Fri, 02 Nov 2018 03:01 AM (IST)
कोंकण की तर्ज पर होगा रेल विस्तार

राज्य ब्यूरो, शिमला। हिमाचल में रेल विस्तार के लिए किए जा रहे प्रयास में केंद्र को आर्थिक आधार भी सामने रखने पड़ रहे हैं। ऐसे में हिमाचल में रेल विस्तार के लिए कोंकण रेल निगम जैसा विकल्प शेष रह गया है। सरकार का योजना विभाग कई तरह के विकल्प दे सकता है। बद्दी-चंडीगढ़ और भानुपल्ली- बिलासपुर रेलवे लाइन के लिए प्रदेश सरकार को 1400 करोड़ रुपये जुटाने होंगे। यह राशि जुटाने के बाद ही केंद्र सरकार रेल नेटवर्क मजबूत करने के लिए कदम उठाएगी।

राज्य की वित्तीय हालत ऐसी नहीं है कि रेल परियोजनाओं के लिए हिस्सेदारी कर सके। केंद्र सरकार वर्ष 2008 में साफ तौर पर केंद्र-राज्य अनुपात का विकल्प दे चुकी है। हाला ऐसे हैं कि भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी में भूमि अधिग्रहण करने के तहत राज्य सरकार अब तक 70 करोड़ खर्च कर चुकी है। भानुपल्ली- बिलासपुर रेलवे लाइन की लंबाई करीब 63 किलोमीटर है। ढ़ाई दशक से यह रेल परियोजना फाइलों में ही आगे बढ़ रही है। 58 गांवों में भूमि का अधिग्रहण होना है। इसके साथ ही इस रेल परियेाजना की प्रस्तावित लागत 2600 करोड़ रुपये आंकी गई है।

केंद्र के साथ हुए समझौते के अनुसार कुल लागत का 25 फीसद राज्य सरकार को वहन करना है। ऐसे में सरकार को 600 करोड़ रुपये चाहिए। इस रेलवे परियोजना के लिए बीस किलोमीटर क्षेत्र भूमि का अधिग्रहण हो चुका है। बद्दी-चंडीगढ़ रेले लाइन की लागत 1600 करोड़ रुपये है। प्रदेश सरकार को 50 फीसद हिस्सेदारी के तहत 800 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। राज्य के औद्योगिक क्षेत्र को जोड़ने के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के लिए चंडीगढ़ आना-जाना आसान हो जाएगा।

कोंकण रेल निगम का प्रारूप कोंकण रेलवे निगम 1990 में अस्तित्व में आया था। कर्नाटक राज्य के मंगलौर को रेल नेटवर्क सुविधा से जोड़ने के लिए निगम स्थापित किया गया था। सरकार ने आर्थिक संकट को देखते हुए बांड जारी कर खुले बाजार से पैसा जुटाया था और रेल नेटवर्क स्थापित किया। निगम ने वर्ष 1998 में इस रेल टै्रक पर गाड़ियों का पूर्ण परिचालन शुरू कर दिया था। अब हिमाचल में भी इसी तर्ज पर धन जुटाया जा सकता है।

वैसे भी दो दर्जन से अधिक प्रदेश सरकार के दो दर्जन से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं। जिनमें राज्य विद्युत परिषद सहित परिवहन निगम, पर्यटन विकास निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अहम निगम एवं बोर्ड हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों में आधारभूत ढ़ाचा विकसित करने के लिए सरकार समय-समय पर प्रतिभूतियां बेचती है। ठीक उसी तर्ज पर रेलवे निगम स्थापित किया जा सकता है।


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