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Shimla: राज्‍यसभा चुनाव के नियम क्रॉस वोटिंग की राह में रोड़ा, पार्टी के एजेंट को दिखाकर ही डाल सकते हैं वोट; नहीं तो होगा अमान्‍य

हिमाचल प्रदेश में राज्‍यसभा चुनाव के नियम क्रॉस वोटिंग की राह में रोड़ा बने हुए हैं। कानून के मुताबिक राज्यसभा चुनाव के लिए जो भी विधानसभा सदस्य मत डालते हैं वे अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को मतपत्र दिखाकर ही पेटी में डालते हैं। ऐसा नहीं करने पर मत अमान्य हो जाता है। इससे प्रदेश कांग्रेस सरकार के लिए तो राहत है लेकिन भाजपा को रणनीति बदलनी पड़ सकती है।

By Jagran News Edited By: Himani Sharma Updated: Fri, 16 Feb 2024 09:14 PM (IST)
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राज्‍यसभा चुनाव के नियम क्रॉस वोटिंग की राह में रोड़ा (फाइल फोटो)
रोहित नागपाल, शिमला। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के पूर्ण बहुमत में होने के बावजूद भाजपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए हर्ष महाजन को प्रत्याशी बनाया है। उनकी जीत कांग्रेस के उन विधायकों पर निर्भर करती है, जिन्हें सरकार से नाराज बताया जा रहा है।

कभी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के रणनीतिकार रहे हर्ष महाजन ने नामांकन के बाद कहा था कि कई विधायक उनके संपर्क में हैं। हालांकि नियम इस क्रॉस वोटिंग को कठिन बनाते हैं।

2002 में हुआ था बदलाव

1998 में महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के प्रत्याशी की हार के बाद मंथन आरंभ हुआ था कि राज्यसभा चुनाव में मतदान गोपनीय नहीं होना चाहिए। एथिक्स कमेटी ने इनमें धन और शक्ति के प्रयोग की बात की थी। इसके बाद 2002 में तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली इस आशय का विधेयक लाए और अधिनियम बन गया।

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अधिनियम के अनुसार विधायकों को पेटी में मतपत्र डालने से पहले पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है। इस व्यवस्था को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई किंतु न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका अस्वीकार कर दी थी कि गोपनीयता बेशक मतदान के लिए आवश्यक है, किंतु इससे बड़ा सरोकार चुनाव का निष्पक्ष होना है। ऐसे में कौन विधायक दूसरे दल के प्रत्याशी को वोट डालने की हिम्मत जुटाता है, इस पर नजर रहेगी।

पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाने पर ही मान्य होगा मत

कानून के मुताबिक, राज्यसभा चुनाव के लिए जो भी विधानसभा सदस्य मत डालते हैं, वे अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को मतपत्र दिखाकर ही पेटी में डालते हैं। ऐसा नहीं करने पर मत अमान्य हो जाता है। हालांकि, दूसरी पार्टी के प्रत्याशी को मत डाल भी दें तो विधायक की सदस्यता पर संकट पैदा हो जाता है। इससे प्रदेश कांग्रेस सरकार के लिए तो राहत है, लेकिन भाजपा को रणनीति बदलनी पड़ सकती है।

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उलटफेर के हैं दो रास्ते

सीधे तौर पर अपनी पार्टी के विरुद्ध मत डालने की हिम्मत जुटाना मुश्किल होगा। हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के 40 और 25 सदस्य भाजपा के हैं। तीन निर्दलीय विधायक हैं। अगर क्रास वोटिंग को देखा भी जाए तो भाजपा को तीन निर्दलीय विधायकों के साथ कांग्रेस के सात विधायकों का मत भी चाहिए। वहीं, दूसरा रास्तस है कि कांग्रेस के 12 विधायक मतदान ही न करें तो भी उलटफेर संभव है।

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