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Ramotsav 2024: 12 घंटे में विवादित ढांचे को कर दिया था मलबे में तब्दील, मुहूर्त का समय आते ही टूट पड़े थे कारसेवक

Ram Mandir हिमाचल प्रदेश विवि के पूर्व उप कुलपति प्रो ज्योति प्रकाश (Professor Jyoti Prakash) ने कहा कि वे भी अयोध्या गए थे। कारसेवा कर उन्हें भी राम भक्त होने का एक गौरव हासिल हुआ हैं। उन्होंने बताया कि वे दो बार कारसेवा के लिए अयोध्या (Ayodhya) गए थे। उन्होंने कहा कि मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे 1990 तथा 1992 की अयोध्या कारसेवा में भाग लेने का अवसर मिला।

By rohit nagpal Edited By: Nidhi Vinodiya Updated: Wed, 10 Jan 2024 08:02 PM (IST)
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Ram Mandir कारसेवकों का जत्था कालका ट्रेन से आया था अयोध्या, फोटो जागरण

जागरण संवाददाता, शिमला। Ramotsav 2024: हिमाचल प्रदेश विवि के पूर्व उप कुलपति प्रो ज्योति प्रकाश (Professor Jyoti Prakash) ने कहा कि वे भी अयोध्या गए थे। कारसेवा कर उन्हें भी राम भक्त होने का एक गौरव हासिल हुआ हैं। उन्होंने बताया कि वे दो बार कारसेवा के लिए अयोध्या (Ayodhya) गए थे। उन्होंने कहा कि मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे 1990 तथा 1992 की अयोध्या कारसेवा में भाग लेने का अवसर मिला। उस समय मैं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का गणित विभाग का पीएचडी का छात्र था। 

नवंबर 1990 में सूचना मिली कि अयोध्या में कारसेवा के लिए शिमला से भी जत्था जाना है, इसमें विश्वविद्यालय से विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता भी जाएंगे। 

मुलायम सरकार ने रोका था अयोध्या जाने से 

नवंबर के अंतिम सप्ताह में हमारे जत्थे में कुल 56 कारसेवकों ने बस में शिमला से कालका के लिए प्रस्थान किया। कालका से अयोध्या के लिए रेल द्वारा यात्रा प्रारंभ हुई परंतु उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की तुष्टिकरण की नीति के कारण कारसेवकों को अयोध्या जाने से रोका जा रहा था। इसके लिए स्थान-स्थान पर अर्धसैनिक बल तैनात थे। 

हमें भी दिल्ली से आगे खुर्जा जंक्शन पर रोक दिया गया। वहां की सारी जेलें और शिक्षण संस्थान कारसेवकों से भर गए थे। हमें बस में ले जाकर बुलंदशहर, मेरठ होते हुए सहारनपुर में एक इंटर कॉलेज में बंद कर दिया गया। वहां हमें लगभग 15 दिन कैद में रखा गया और तब तक नहीं छोड़ा, जब तक अयोध्या में कारसेवा का मुहूर्त निकल न गया। कारसेवा के मुहूर्त के दिन अयोध्या में मुलायम सरकार द्वारा कारसेवकों के साथ बहुत अत्याचार हुए।

भजन-कीर्तन करते हुए कारसेवकों पर चलाई गोलियां 

निहत्थे भजन-कीर्तन करते हुए संतों व कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई। इसमें कई संत मारे गए, सैकड़ों घायल हुए। घायल हुए संतो को घसीट-घसीट कर ले जाया गया। कोठारी बंधुओं के बलिदान को कौन भूला सकता है भला। भारत के इतिहास में यह सचमुच एक काला दिवस था। इस घटना ने पूरे भारत को हिलाकर  रख दिया था, क्योंकि यह एक अप्रत्याशित घटना थी, जिसके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। 

1992 में भी मिला था कारसेवा का मौका 

सन 1992 में फिर से कारसेवा का अवसर मिला। उस समय कल्याण सिंह की सरकार होने के कारण परिस्थितियां थोड़ी अनुकूल थीं। 5 दिसंबर को ही हम फैजाबाद पहुंच गए थे, जहां हमें एक स्कूल में ठहराया गया। फिर निर्देशानुसार 6 दिसंबर सुबह ही सरयू नदी के किनारे-किनारे अरहर के खेतों और गांवों से होते हुए अयोध्या पहुंचे। सारे सड़क मार्ग अर्ध सैनिक बलों द्वारा बंद कर दिए गए थे। 

11 बजे सुबह से शुरू की थी तोड़ने की कार्रवाई 

अयोध्या में पूर्ण रूप से श्री राममय वातावरण था। सभी लोग राम भजन कर रहे थे। संतो के प्रवचन हो रहे थे, जिसमें अशोक सिंघल, साध्वी उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, महंत वैद्यनाथ आदि प्रमुख थे। उस दिन सभी लोग बेसब्री से कारसेवा के शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। बाबरी ढांचे टूट जाएंगे ऐसा किसी के मन में नहीं था। सुबह 11 बजे के आसपास जब शुभ मुहूर्त का समय आया तो एक अति उत्साहित युवा सुरक्षाबलों के घेरे को तोड़ता हुआ देखते-देखते ढांचे के ऊपर चढ़ गया और भगवा ध्वज लहरा दिया।

फिर लग गया कर्फ्यू

फिर क्या था ढांचे के चारों ओर एकत्रित हुए हजारों कारसेवक ढांचे को तोड़ने के लिए टूट पड़े और शाम होते- होते सारे ढांचे टूट गए। उसके पश्चात वहां पर कर्फ्यू लग गया और हम वहीं परिसर में ही रुक गए । 

वहां बने हुए एक तंबू में पराली पर अभी सोए ही थे कि सूचना मिली कि हिमाचल के कारसेवकों को  कारसेवा के लिए बुलावा आया है। रात्रि लगभग 11 बजे हमने ढांचे के मलबे को बिछाने का काम आरंभ किया और सुबह होते-होते सारा मलबा वहीं पर बिछा दिया गया। 

रातोंरात एक छोटे-से मंदिर में स्थापित की थी मूर्ति 

रातोंरात एक छोटे-से मंदिर में रामलला की मूर्ति को स्थापित किया गया, जिसमें हम लोग कई वर्षों से भगवान के दर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन में उत्तर प्रदेश की स्थानीय जनता का आत्मीय सहयोग रहा। चाहे वह रहने की व्यवस्था हो या भोजन-पानी की व्यवस्था हो, सबने आगे बढ़कर सहयोग किया।