Shimla: भांग की खेती के लिए विधानसभा की कमेटी गठित, 20 मई से करेगी प्रदेश का दौरा
खेती को वैध बनाने के उद्देश्य से कानून बनाने से पहले विधानसभा की कमेटी उत्तराखंड व मध्य प्रदेश का दौरा करेगी। 20 से 23 मई तक 3 दिवसीय प्रवास के दौरान कमेटी भाजपा शासित दोनों ही राज्यों में भांग की खेती के माडल का अध्ययन करेगी।
By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Thu, 18 May 2023 05:56 AM (IST)
शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल में भांग की खेती को वैधता प्रदान करने की कवायद तेज हो गई है। भांग (बाटनिकल नाम कैनबिस इंडिका) की खेती को वैध बनाने के उद्देश्य से कानून बनाने से पहले विधानसभा की कमेटी उत्तराखंड व मध्य प्रदेश का दौरा करेगी। 20 से 23 मई तक 3 दिवसीय प्रवास के दौरान कमेटी भाजपा शासित दोनों ही राज्यों में भांग की खेती के माडल का अध्ययन करेगी। प्रदेश में भांग की खेती को वैध बनाने के मकसद से गठित विधानसभा की कमेटी के अध्यक्ष एवं राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने अनौपचारिक बातचीत में यह जानकारी दी।
गौरतलब है कि प्रदेश विधान सभा में भाजपा के सदस्य पूरण सिंह ठाकुर ने राज्य में भांग की खेती को वैध बनाने के मकसद से नियम 101 के तहत बजट सत्र में प्रस्ताव पर रखा। प्रस्ताव पर चर्चा के बाद विधान सभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने भांग की खेती को कानूनी दर्जा देने से पहले विधान सभा की कमेटी का गठन किया। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में गठित कमेटी में विधायक पूरण ठाकुर, सीपीएस सुंदर ठाकुर, विधायक हंस राज तथा डॉ जनकराज को शामिल किया गया है।
राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने बताया कि उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में भांग की खेती वैध है। प्रदेश में जंगलों में भांग उगती है। इसके अलावा दवाइयों के लिए भी भांग की खेती की जाती है। उन्होंने कहा कि भांग से कपड़ों, रस्सी के अलावा करीब 200 उत्पाद बनते हैं। दवाइयों में भी इसका उपयोग होता है। लिहाजा कमेटी दोनों ही राज्यों का दौरा कर इनके भांग की खेती के मॉडल का अध्ययन करेगी। इसके बाद कमेटी देखेगी कि प्रदेश के हित में कौन सा मॉडल बेहतर है। अध्ययन व चर्चा के बाद ही कमेटी इस मुद्दे पर सरकार को रिपोर्ट देगी।
उत्तराखंड में भांग की नशा मुक्त खेतीउत्तराखंड में भांग की नशा मुक्त खेती होती है। यहां सरकार के नियंत्रण में भांग की खेती होती है। किसानों को भांग के खेती के बीज मुहैया करवाए जाते हैं। उत्तराखंड में सरकार की देखरेख में खेतों में उगाई जा रही भांग में टेट्रा हाइड्रो केनबिनोल (टीसीएच ) 0.3 फीसद है। जाहिर है कि टीसीएच की मात्रा कम होने से इसमें नशा नहीं होता। भांग की खेती के लिए आबकारी विभाग लाइसेंस जारी करता है। किसानों को भांग के खेती के भूमि के प्रस्ताव का तैयार करना होता। हिमाचल के जंगलों अथवा मलाणा जैसे गांवों में उगाई जाने वाली भांग में टीसीएच की मात्रा 30 से 50 है। जाहिर है कि इसमें नशा है।
कपड़े और दवाइयां होंगी तैयारभांग से बनने वाले सीबीडी असयल का प्रयोग साबून, शैंपू व दवाईयां बनाने में किया जाएगा। हेम्प से निकलने वाले सेलूलोज से कागज बनाने में होगा। हेम्प प्लास्टिक तैयार होगी। जो बायोडिग्रेबल होगी। वह समय के साथ मिट्टी में घुल जाएगी। हेम्प फाइबर से कपड़े बनाए जाएंगे। हेम्प प्रोटीन बेबी फूड बाडी बिल्डिंग में प्रयोग होगा तो हेम्प ब्रिक वातावरण को शुद्ध करेगा। यह कार्बन को खींचता है। जिससे वातावरण में कार्बन की मात्रा कम होगी। यह समय के साथ कार्बन खींचकर ब्रिक को और सख्त करेगी।
भांग का पहाड़ में उपयोगभांग के रेशे का प्रयोग कई देशों में सजावटी सामान बनाने के लिए किया जा रहा है। पहाड़ में भांग के रेशों से अभी भी रसिस्यां बनाई जाती हैं। भांग के बीज का प्रयोग चटनी बनाने के साथ ही सब्जी और मसाले में किया जाता है।
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