जाखू में हनुमान संग विराजेंगे श्रीराम, धनुष बाण के साथ 108 फीट ऊंची बनेगी मूर्ति; CM सुक्खू को पंसद आया प्रतिमा काल्पनिक चित्र
हिमाचल प्रदेश के जाखू मंदिर में हनुमान संग अब श्रीराम भी विराजमान होंगे। सूदसभा के नेतृत्व में शहर की सभी सभाओं ने जाखू मंदिर में भगवान श्रीराम की प्रतिमा बनाने का संकल्प लिया है। इसी संकल्प के तहत सभाओं ने जाखू मंदिर में भगवान श्रीराम की प्रतिमा बनाने के लिए एक काल्पनिक चित्र भी तैयार किया है। काल्पनिक चित्र को मुख्यमंत्री ने मंजूरी भी प्रदान कर दी है।
जागरण संवाददाता, शिमला। राजधानी शिमला के जाखू मंदिर में हनुमान संग अब श्रीराम भी विराजमान होंगे। सूदसभा के नेतृत्व में शहर की सभी सभाओं ने जाखू मंदिर में भगवान श्रीराम की प्रतिमा बनाने का संकल्प लिया है।
इसी संकल्प के तहत सभाओं ने जाखू मंदिर में भगवान श्रीराम की प्रतिमा बनाने के लिए एक काल्पनिक चित्र भी तैयार किया है। सूदसभा के अध्यक्ष राजीव सूद ने बताया कि मुख्यमंत्री सुक्खविंदर सिंह सुक्खू को भी यह चित्र दिखाया गया है। काल्पनिक चित्र को मुख्यमंत्री ने मंजूरी भी प्रदान कर दी है।
मुख्यमंत्री ने कुछ प्रशासनिक चीजों को ध्यान में रखने की दी हिदायत
हालांकि मुख्यमंत्री ने कुछ प्रशासनिक चीजों को ध्यान में रखने की हिदायत भी दी है। उन्होंने यह भी कहा है कि प्रतिमा स्थापित करने के दौरान जाखू रोपवे प्रभावित न हो इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। अयोध्या में श्री रामलाला की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर शहर की सभी सभाएं सूद सभा के नेतृत्व में एकत्रित हुई है। ऐसे में सभी सभाओं ने संकल्प लिया है कि जाखू मे हनुमान की प्रतिमा के साथ 108 फुट ऊंची भगवान श्रीराम की प्रतिमा भी बनाई जाएगी।
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रिज मैदान से जाखू की तरफ देखने पर हनुमान के बांई तरह धनुष बाण के साथ भगवान श्रीराम भी नजर आएंगे। शहर की सभी सभाएं अपने संकल्प को पूरा करने में जुट गई है। जाखू मंदिर कमेटी और सरकार से सभी अनुमतियां मिलने के बाद जाखू में भगवान श्रीराम की प्रतिमा के निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा।
क्या है जाखू मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि संजीवनी बूटी के बारे में जानने के लिए हनुमान यहां पर उतर गए। उनके वेग से जाखू पर्वत जोकि पहले काफी ऊंचा था, आधा पृथ्वी के गर्भ में समा गया। संजीवनी बूटी के बारे में जानने के बाद हनुमान अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए हिमालय में द्रोण पर्वत की तरफ चले गए, जिस स्थल पर हनुमान उतरे थे। वहां पर आज भी जाखू में उनके चरणचिह्न को मंदिर में अलग से एक कुटिया बनाकर संगमरमर से निर्मित कर सुरक्षित रखा गया है।
मान्यता है कि यक्ष ऋषि को वापिसी में इसी स्थान पर लौटने का वचन देकर हनुमान मार्ग में कालनेमी के कुचक्र में ज्यादा समय नष्ट होने के कारण छोटे मार्ग से होते हुए लंका लौट गए। उधर वे हनुमान के लौटने का व्याकुलता से इंतजार करते रहे। उसी समय हनुमान ने ऋषि को दर्षन दिए और लौटकर वापिस न आने कारण बताया। माना जाता है कि हनुमान जी के ओझल होने के तुरंत बाद जाखू पर्वत पर एक स्वयंभू मूर्ति के रूप में प्रकट हुए।