Himachal News: राज्य मुकदमा नीति 2011 पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, जानें हिमाचल सरकार को न्यायालय ने क्या दिया आदेश
हिमाचल हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सलाह दी थी कि वह कोर्ट के निर्णयों पर आधारित राज्य मुकदमा नीति 2011 का अक्षरश पालन सुनिश्चित करें ताकि सरकार की ओर से दायर आधारहीन मामलों का विस्फोट न हो। इसको लेकर अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मुकदमा नीति को अक्षरश लागू करने के हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से पारित निर्णय पर मुहर लगा दी है।
जागरण संवाददाता, शिमला। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मुकदमा नीति को अक्षरश: लागू करने के हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से पारित निर्णय पर मुहर लगा दी है।
हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सलाह दी थी कि वह कोर्ट के निर्णयों पर आधारित राज्य मुकदमा नीति 2011 का अक्षरश: पालन सुनिश्चित करें ताकि सरकार की ओर से दायर आधारहीन मामलों का विस्फोट न हो।
खंडपीठ ने ये कहा
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार की अपील को खारिज करते हुए निर्णय की प्रतिलिपि प्रदेश के मुख्य सचिव को भी भेजने का आदेश जारी किया था, ताकि सरकार की ओर से गुणवत्ताहीन अपीलें दायर कर कर्मचारियों को बेवजह तंग न किया जाए और सरकारी धन का दुरुपयोग न हो।
कोर्ट ने कहा है कि जिन मामलों में कानून पहले ही सेटल हो चुका है, उनमें सरकार अपील दाखिल करने के बजाय बराबर तरीके से उन सभी कर्मचारियों के लिए लागू करे, जिनके मामले इसके दायरे में आते हैं। प्रदेश सरकार की ओर से इस तरह की अपील दाखिल करने से कोर्ट का ही समय बर्बाद नहीं होता, बल्कि कर्मचारी, जिनको कानून के तहत लाभ मिलना होता है, उन्हें लाभ मिलने में काफी देर हो जाती है।
प्रतिवादी याचिकाकर्ता को वर्ष 1993 में दैनिक वेतनभोगी बेलदार के रूप में नियुक्त किया गया था। एकल पीठ की ओर से पारित निर्णय के संदर्भ में आठ वर्ष का कार्यकाल पूरा करने पर पहली जनवरी, 2001 से नियमितीकरण का लाभ देने का निर्णय पारित किया था।
सरकार ने एकमात्र आधार पर अपील दायर की थी कि मूलराज उपाध्याय मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार वह वर्ष 2000 तक 10 वर्ष की निरंतर सेवा पूरी नहीं करता था।
हाई कोर्ट ने ये कहा था
अपील में पारित निर्णय में हाई कोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि मूलराज उपाध्याय का निर्णय प्रदेश सरकार की नीति पर आधारित था, जिसने नियमितीकरण के अधिकार के लिए 10 वर्ष की सेवा निर्धारित की थी और बाद में सरकार ने ही वर्ष 2000 में एक और नीति जारी कर सेवा की अवधि घटाकर आठ वर्ष कर दी थी।
हाई कोर्ट अनेक मामलों में सरकार को इस नीति के मुताबिक सैकड़ों कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने के निर्णय पारित कर चुका है। एक दशक पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी मुहरसुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के दशक पहले राकेश कुमार, ज्ञान सिंह व माठू राम जैसे अनेक मामलों में पारित निर्णयों पर मुहर लगा चुका है।
ये भी पढ़ें- राममय हुआ संसार, कांगड़ा के राजेश्वरी मंदिर में चलेगा सफाई अभियान; प्राण प्रतिष्ठा समारोह का होगा लाइव प्रसारण
हाई कोर्ट का ये था फैसला
हाल ही में सूरजमणी मामले में हाई कोर्ट ने सैकड़ों मामलों में कानूनी प्रविधानों की बारीकी से जांच कर दिहाड़ीदारों को आठ वर्ष के कार्यकाल पर पक्का करने का फैसला सुनाया है।
मुकदमा नीति को दरकिनार करते हुए फिर से कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने का प्रयास हो रहा है। इन हालात में राज्य मुकदमा नीति 2011 लागू न करना सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न लगाता है।
ये भी पढ़ें- Una: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में लगी BJP, वॉल राइटिंग कार्यक्रम का किया शुभारंभ; अनुराग ठाकुर सहित ये रहे मौजूद