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Himachal: अक्टूबर में Water Cess देने के लिए तैयार रहें बिजली कंपनियां, सरकार को हर साल मिलेंगे 1800 करोड़

प्रदेश सरकार के वाटर सेस लगाने के निर्णय के बाद पंजाब व हरियाणा की सरकारों ने आपत्ति जताई थी। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विधानसभा में बजट सत्र के दौरान इसके विरोध में प्रस्ताव भी ला चुके हैं। हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ। अक्टूबर के महीने में बिजली कंपनियों को वाटर सेस चुकाना होगा। सरकार को हर साल 1800 करोड़ रुपये मिलेंगे।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Wed, 27 Sep 2023 09:11 PM (IST)
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अक्टूबर में Water Cess देने के लिए तैयार रहें बिजली कंपनियां, सरकार को हर साल मिलेंगे 1800 करोड़
शिमला, राज्य ब्यूरो। Water Cess In Himachal हिमाचल प्रदेश में विद्युत उत्पादन कर रही कंपनियों से जल उपयोग का डेटा मांगा गया है। यह डेटा राज्य जल उपकर आयोग के बजाय जल शक्ति विभाग ने पत्र लिखकर मांगा है। पत्र में पूछा गया है कि कंपनियों ने विद्युत उत्पादन के लिए कितना पानी उपयोग किया। उसके बाद कंपनियों को बिल थमाए जाएंगे। माना जा रहा कि अक्टूबर में कंपनियों को वाटर सेस का बिल दिया जाएगा।

प्रदेश सरकार द्वारा दरें संशोधित करने के बाद विद्युत कंपनियों को सालाना 1800 करोड़ रुपये का वाटर सेस चुकाना होगा। यदि मासिक वाटर सेस का आकलन किया जाए तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये चुकाने होंगे। प्रदेश में इस समय 172 छोटी-बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं कार्य कर रही हैं।

न्यायालय गए हैं परियोजना प्रबंधन

वाटर सेस के विरुद्ध सभी जल विद्युत परियोजना प्रबंधन न्यायालय गए हैं। सुक्ष्म एवं लघु विद्युत परियोजनाओं की ओर से वाटर सेस देने से साफ इन्कार किया गया है। वाटर सेस को लेकर जिस तरह की परिस्थितियां नजर आ रही हैं, उसे देखते हुए उपयोग किए जल का डेटा निकालने के लिए राज्य ऊर्जा निदेशालय सक्रिय भूमिका में नजर आएगा।

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हाल ही में उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर पर पांच विद्युत परियोजनाओं को वाटर सेस के विरोध में भड़काने का आरोप भी लगाया था। इस पर जयराम को कहना था कि परियोजनाएं अपने हक के लिए न्यायालय गई हैं।

15 दिन से भेजे जा रहे हैं पत्र

अभी राज्य जल उपकर आयोग का कार्यालय स्थापित हो रहा है। ऐसे में जल शक्ति विभाग आयोग के माध्यम से 15 दिन से जल विद्युत परियोजनाओं को पत्र भेज रहा है। परियोजना स्थल में पानी का उपयोग मापने के लिए फ्लो मीटर लगाने का भी निर्देश है। यदि किसी परियोजना की ओर से डाटा नहीं दिया जाता है तो राज्य ऊर्जा निदेशालय की ओर से उत्पादन की गणना कर डाटा निकाला जाएगा। प्रत्येक परियोजना का जल संबंधी डाटा संकलित करके परियोजना प्रबंधकों को बिल दिया जाएगा। उस बिल के आधार पर परियोजना प्रबंधकों को वाटर सेस का भुगतान करना होगा।

पंजाब-हरियाणा ने जताया था विरोध, केंद्र ने किया था मना

प्रदेश सरकार के वाटर सेस लगाने के निर्णय के बाद पंजाब व हरियाणा की सरकारों ने आपत्ति जताई थी। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विधानसभा में बजट सत्र के दौरान इसके विरोध में प्रस्ताव भी ला चुके हैं। उनका कहना था कि यह केंद्रीय अधिनियम यानी अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 का भी उल्लंघन है। केंद्र सरकार ने भी वाटर सेस लगाने से मना किया था। केंद्र ने पत्र लिखकर कहा था कि यदि हिमाचल प्रदेश ऐसा करता है तो केंद्र की ओर से दी जाने वाली सभी ग्रांट पर रोक लगा दी जाएगी।

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