हिमाचल में क्यों बनाए जाते थे CPS, क्या होता था इनका काम और क्या मिलती थी सुविधाएं?
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। यह पहली बार नहीं है जब सीपीएस की नियुक्तियाँ रद्द हुई हैं। ये नियुक्तियाँ अक्सर राजनीतिक समायोजन और कैबिनेट मंत्रियों के काम पर निगरानी के लिए की जाती हैं। सीपीएस को मिलने वाली सुविधाओं और उनके कामकाज में हस्तक्षेप की शिकायतों के कारण यह कदम उठाया गया है।
राज्य ब्यूरो, शिमला। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। यह पहला मौका नहीं है, जब मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किए गए थे।
सीपीएस की ये नियुक्तियां राजनीतिक समायोजन के लिए होती रही है। जबकि राजनीतिक नजरिए से देखे तो इन नियुक्तियों को कैबिनेट मंत्रियों के कामकाज में निगरानी के रूप में भी देखा जाता रहा है।एक निश्चित संख्या से अधिक मंत्री नहीं बनाए जा सकते इसलिए सरकारें सीपीएस की नियुक्तियां नाराज नेताओं को एडजस्ट करने के लिए की जाती हैं। इन्हें मंत्रियों के विभाग साथ अटैच किया जाता है, लेकिन ये फाइलों पर किसी भी प्रकार की नोटिंग नहीं कर सकते हैं।
पूर्व में जब वीरभद्र सिंह सरकार थी तब भी नियुक्तियां रद्द हुई थी। अगली सरकार में फिर से नियुक्तियां करने का सिलसिला चलता रहा है। सरकार ने ये नियुक्तियां क्षेत्रीय व जातीय संतुलन बनाने के लिए की थी, मगर इसका पार्टी में ही विरोध भी हो रहा था। सीपीएस के कामकाज में हस्तक्षेप की शिकायतें हो रही थी तो कहीं पर मंत्री इस बात से नाराज थे कि उनके पास विभाग कम हैं और सीपीएस के बाद ज्यादा।
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सीपीएस को मिलती थीं ये सुविधाएं
हिमाचल प्रदेश में सीपीएस का मूल वेतन 65 हजार रुपए है। भत्ते मिलाकर ये वेतन 2.20 लाख रुपए प्रति महीना पहुंच जाता है। इसके अलावा सीपीएस को सरकारी कोठी, गाड़ी, स्टाफ अलग से मुहैया करवाया जाता है। हालांकि, कोर्ट के आदेशों के बाद इनसे गाड़ी की सुविधा वापस ले ली थी।
बाकि सुविधा ये ले रहे थे जो अब छिन जाएगी। विधायकों और सीपीएस के वेतन में दस हजार रुपए का अंतर है। विधायकों का वेतन और भत्ते प्रतिमाह 2.10 लाख रुपये है।
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