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Himachal News: सोलन का कार्डिसेप्स मशरूम औषधीय गुणों के लिए है सबसे उत्तम, जानिए इसे खाने के क्या हैं फायदे

हिमाचल में मशरूम की खेती से रोजगार में इजाफा हुआ है। हिमाचल प्रदेश मशरूम उत्पादन को लेकर पूरे देश में टॉप-9 में हैं। सोलन में मशरूम की कई तरह की किस्मों का उत्पादन किया जाता है। वहीं सोलन की ओर से विकसित कीड़ा जड़ी के नाम से प्रसिद्ध कार्डिसेप्स मशरूम अपनी कीमत के साथ औषधीय गुणों के लिए भी पहचान बना चुकी है। चलिए जानते हैं क्या है इसकी खासियत।

By Jagran NewsEdited By: Gurpreet CheemaUpdated: Mon, 11 Sep 2023 10:04 AM (IST)
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सोलन का सबसे प्रसिद्ध कार्डिसेप्स मशरूम पूरे देश में हैं इसकी डिमांड
सोलन, मनमोहन वशिष्ठ। Mashroom production in Himachal: मशरूम की विभिन्न किस्मों (Types of Mashroom) को विकसित करने में सोलन के चंबाघाट स्थित देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां से मशरूम उत्पादन के गुर सीख कर विभिन्न राज्यों के किसान आर्थिकी सुदृढ़ कर दूसरों को रोजगार भी दे रहे हैं। रविवार को चंबाघाट में मशरूम मेले में पहुंचे देशभर के मशरूम उत्पादकों ने बताया कि इससे उनकी जिंदगी खुशहाल हुई है।

मशरूम उत्पादन में देशभर में ओडिशा, बिहार व महाराष्ट्र अग्रणी राज्य हैं, जबकि हिमाचल नौवें स्थान पर है। वर्ष 2016 से 2022 के दौरान देशभर में मशरूम का उत्पादन 1.29 लाख टन से 3.08 लाख टन हो गया, जिसके लिए 7.7 लाख टन कृषि अवशेष का उपयोग हुआ और 15.4 लाख टन खाद भी तैयार हुई।

मशरूम अनुसंधान निदेशालय में रविवार को मशरूम मेले (Mashroom Mela) का आयोजन किया गया। इस दौरान बांका (बिहार) की बिनिता कुमारी, पुणे महाराष्ट्र के अनिल भोकरे, जम्मू-कश्मीर के गौहर अली लोन व जोरहट (असम) के बसंत चिरिंग फुकन को सम्मानित किया गया।

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एक से डेढ़ लाख रुपये-प्रतिकिलो बिकती है कीड़ा जड़ी

डीएमआर सोलन की ओर से विकसित कीड़ा जड़ी के नाम से प्रसिद्ध कार्डिसेप्स मशरूम (Solan Cordyceps Mushroom) अपनी कीमत के साथ औषधीय गुणों के लिए भी पहचान बना चुकी है। इसका सबसे बेहतरीन गुण यह है कि इसको खाने से शरीर में थकावट नहीं रहती है।

अब एथलीट भी इसका प्रयोग करते हैं। इसके अलावा यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है। इसका उत्पादन 22-25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर होता है। इसकी फसल वर्ष में छह बार ली जा सकती है। डीएमआर हर तीन माह में देशभर के करीब 12 उत्पादकों को इसके उत्पादन का प्रशिक्षण देता है। अभी तक 100 से अधिक किसान प्रशिक्षण ले चुके हैं। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत एक से डेढ़ लाख रुपये प्रतिकिलो है।

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