सांसदों के सुझावों पर अमल हुआ तो खत्म हो जाएंगे देश में छावनी क्षेत्र
दिल्ली में पांच जनवरी को छावनियों की समस्याओं के समाधान के लिए रक्षा मंत्रालय की ओर से गठित विशेष समिति की बैठक हुई थी।
By BabitaEdited By: Updated: Tue, 08 Jan 2019 02:06 PM (IST)
सोलन, मनमोहन वशिष्ठ। सांसदों के सुझावों पर अमल हुआ तो जल्द छावनी क्षेत्र के लोगों को राहत मिल सकती है। रक्षा मंत्रालय की ओर से छावनियों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित विशेष समिति की बैठक दिल्ली में पांच जनवरी को हुई थी। इसमें देश के 62 छावनी क्षेत्रों से संबंधित सांसदों ने भी भाग लिया। सांसदों ने छावनी जनप्रतिनिधियों के सुझाव व लोगों की समस्याओं को रखा। हिमाचल में कसौली, डगशाई, सुबाथू, जतोग, डलहौजी, बकलोह व योल सात छावनी क्षेत्र हैं। रक्षा मंत्रालय कमेटी व सांसदों के सुझावों पर कदम उठाएगा।
शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप ने छावनी एक्ट 2006 को रद करने, सभी छावनियों को खत्म करने की मांग की है। कहा कि उनके लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक चार कैंट आते हैं। संसद में इस एक्ट को खत्म कर नए एक्ट का निर्माण करना चाहिए, जिसमें लोकतांत्रिक परंपराओं को ध्यान में रखकर छावनी में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शक्तियां दी जाएं। मौजूदा समय में सैन्य प्रशासन के नीचे ही छावनी के निर्वाचित नुमाइंदों को कार्य करना पड़ता है, जिससे टकराव रहता है। निर्वाचित लोग अपने वार्डों की समस्याओं को बखूबी जानते हैं।
इसके अलावा छावनियों में हाउस टैक्स, वाटर टैक्स आदि नगर निकायों की तरह होने चाहिए। कैंट क्षेत्र में भी राज्य व केंद्र सरकार की कल्याणकारी व विकासात्मक योजनाएं लागू होनी चाहिए, जिससे लोग अभी तक वंचित हैं। स्मार्ट शहरों की तर्ज पर छावनी बोर्ड क्षेत्रों के विकास के लिए मास्टर प्लान तैयार किया जाए। छावनी बोर्डों के लोगों को आधुनिक सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान करना चाहिए। देश के सभी 62 छावनी क्षेत्रों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की वार्षिक बैठक बुलाई जाए। सांसद ने कहा कि छावनी क्षेत्रों में भवन निर्माण नियम नगर परिषदों व नगर पंचायतों की तर्ज पर होने चाहिए। लीज रेट भी अन्य सिविल क्षेत्रों की तर्ज पर लागू किया जाना चाहिए। सिविल क्षेत्र को स्थानीय प्रशासन को हस्तांतरित किया जाना चाहिए और उसके बदले उतनी ही भूमि सैन्य अधिकरियों को दी जानी चाहिए।
ये हैं मुख्य समस्याएं
कैंटोनमेंट एक्ट 2006 से पहले 1924 एक्ट था, जिसमें बदलाव किया गया था। हालांकि अब भी लोगों को अंग्रेजों के समय बने नियमों के तहत जीना पड़ रहा है। छावनी क्षेत्र के लोगों को घरों व दुकानों को नए सिरे से बनाना हो तो नक्शा पास करवाना पड़ता है। बिना अनुमति घरों की मरम्मत भी नहीं कर सकते। कैंटोनमेंट एक्ट 2006 में छावनी जनप्रतिनिधियों की शक्तियों को छीनकर प्रशासन ने अपने पास रख लिया है। छावनी क्षेत्रों में परिवार रजिस्टर की सुविधा नहीं है। वहीं, सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता।
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