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अब बढ़िया लाल रंग का मिलेगा हिमाचल का सेब, वैज्ञानियों ने बनाया नया स्वदेशी किस्म का पौधा; हो रहा ट्रायल

हिमाचल के जिन क्षेत्रों में सेब में बेहतर रंग न आने की समस्या रहती है। वहां के लिए जल्द ही नए स्वदेशी किस्म के पौधे मिलेंगे। इससे नई स्वदेशी किस्म प्रदेश के पर्यावरण के अनुकूल होने से बागवानों को लाभ होगा। अन्य किस्मों के मुकाबले पौधे के सेब का रंग गहरा लाल है जो बागवानों व खरीदारों को आकर्षित करेगा।

By manmohan vashishtEdited By: Shoyeb AhmedPublished: Wed, 20 Sep 2023 05:39 PM (IST)Updated: Wed, 20 Sep 2023 05:39 PM (IST)
अब सेब मिलेगा बेहतर लाल रंग में, वैज्ञानियों ने बनाया नया स्वदेशी किस्म का पौधा

सोलन, मनमोहन वशिष्ठ। Apple in Better Red Color हिमाचल के जिन क्षेत्रों में सेब में बेहतर रंग (Apple Red Color) न आने की समस्या रहती है। वहां के लिए जल्द ही नए स्वदेशी किस्म के पौधे मिलेंगे। नई स्वदेशी किस्म प्रदेश के पर्यावरण के अनुकूल होने से बागवानों को लाभ होगा। अन्य किस्मों के मुकाबले इस सेब का रंग गहरा लाल है, जो बागवानों व खरीदारों को आकर्षित करेगा। प्रदेश के कई ऐसे क्षेत्र है। जहां धुंध पड़ने के कारण सेब में रंग न आने की समस्या रहती है। ऐसे में सोलन के नौणी में स्थित डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि के वैज्ञानिकों का शोध राहत देगा।

यहां हो रहा नई किस्म पर ट्रायल

नौणी विवि के तहत शिमला के मशोबरा में स्थित क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद के वैज्ञानियों ने सेब की विदेशी किस्म से ही नई स्वदेशी किस्म तैयार की है। विज्ञानियों ने एक पुराने पेड़ में एक स्थाई अर्ली कलरिंग स्ट्रेन को विकसित किया है। शिमला में नई किस्म तैयार करने के बाद कुल्लू, किनौर व नौणी विवि में ट्रायल किया जा रहा है। शुरूआती परिणाम उत्साहजनक रहे हैं।

नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ संजीव चौहान ने बताया कि इस किस्म के व्यावसायिक बागवानी में सफल होने की उम्मीद है। क्योंकि इस किस्म का चयन पहले से शीतोष्ण जलवायु में अनुकूलित किस्म से किया गया है। इसलिए विकसित की जा रही इस नई किस्म में वातावरण बदलाव को सहन करने की भी क्षमता होगी।

मशोबरा में 2017 से चल रहा शोध

नौणी विवि के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि तीन वर्ष तक कली में इस लक्षण की पुनरावृत्ति को देखने के बाद उस कली को अलग कर दिया गया। 2020 के दौरान पहले से ही स्थापित एम 9 रूटस्टॉक पर टॉप ग्राफ्ट किया गया और 2021-22 के दौरान इसमें गहरे लाल रंग के फल लगे। परीक्षण करने के लिए वैरायटी मूल्यांकन ट्रायल शुरू कर दिया है।

गौरतलब है कि क्षेत्रीय मशोबरा केंद्र में 60 के दशक में सेब की किस्मों में प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसके फलस्वरूप अम्बरिच, अम्बरेड, अम्बरॉयल व अम्बस्टारकिंग किस्मों को विकसित किया गया था। उसके बाद वर्ष 2017 से दोबारा सेब की स्वदेशी किस्में विकसित करने के लिए शोध कार्यक्रम चल रहा है।

गहरे लाल रंग में विकसित होगा फल

मशोबरा केंद्र के सह-निदेशक व शोध परियोजना के टीम लीडर डॉ. दिनेश ठाकुर ने बताया कि केंद्र द्वारा डिलीशियस किस्मों में होने वाले कली उत्परिवर्तन (बड म्यूटेशन) पर शोध कार्य किया जा रहा है। वहीं किस्म की फल गुणवत्ता में होने वाली विविधता पर भी गहन अध्ययन किया जा रहा है। इस चयनित स्ट्रेन की विशेषता यह है, कि इसे 35 वर्ष की आयु वाले वांस डिलीशियस नामक सेब की मशहूर किस्म से चयनित किया गया है, जो की समुद्रतल से 1800 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगाई जाती है।

अपनी मदर वैरायटी वांस डिलीशियस किस्म की तुलना में इस नई किस्म की विशेषता यह है की इसके फल लगभग दो माह पहले ही पूर्ण रूप से एक समान गहरे लाल रंग में विकसित हो जाते है, जबकि उसकी मदर किस्म की सतह पर धारदार रंग विकसित होता है।

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