फार्मा MSME पर संकट, 5 हजार इकाइयां बंद होने के कगार पर, केंद्रीय मंत्री नड्डा से हस्तक्षेप की अपील
छोटी और मझोली दवा निर्माण इकाइयां संकट में हैं। सीडीएससीओ की सख्त नीतियों के कारण 4-5 हजार इकाइयां बंद होने की कगार पर हैं। फोरम ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है अन्यथा उत्पादन बंद करने की चेतावनी दी है। 50 करोड़ से कम टर्नओवर वाली इकाइयों को छूट देने की मांग की गई है। रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन और बायो-इक्विवेलेंस अध्ययन जैसे प्रावधानों का विरोध किया गया है।

जागरण संवाददाता, बीबीएन। देश में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने वाली छोटी और मझोली दवा निर्माण इकाइयां (फार्मा एमएसएमई) अभूतपूर्व संकट से जूझ रही हैं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की सख्त नीतियों और हालिया कार्रवाइयों ने लगभग चार से पांच हजार इकाइयों को बंद होने की स्थिति में ला खड़ा किया है।
इस पर संयुक्त फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल एमएसएमई ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं रसायन-उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा को ज्ञापन भेजकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
फोरम ने चेतावनी दी है कि यदि राहत नहीं दी गई तो देशभर में दो दिन का उत्पादन बंद करना पड़ेगा। प्रतिनिधियों का कहना है कि 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले संशोधित शेड्यूल-एम मानकों का अनुपालन भारी निवेश के बिना संभव नहीं है।
छोटे उद्योग पहले ही कर्ज बोझ तले दबे हैं, इसलिए मांग की गई है कि 50 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली इकाइयों को अप्रैल 2027 तक छूट दी जाए।
संगठन का आरोप है कि रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन और बायो-इक्विवेलेंस अध्ययन जैसे प्रावधान छोटे उद्योगों को चुनिंदा तरीके से निशाना बना रहे हैं। प्रत्येक दवा पर 25 से 50 लाख रुपये का अध्ययन खर्च छोटे निर्माताओं के लिए असंभव है।
वहीं, एनडीसीटी नियम 2019 के तहत पुरानी स्वीकृत दवाओं को न्यू ड्रग मानकर लाइसेंस वापस लेना भी उद्योग को अस्थिर कर रहा है।
फोरम ने कहा कि निर्यात अनुमोदन केवल नशीली दवाओं तक सीमित किया जाए, अन्य सामान्य दवाओं पर रोक से विदेशी बाज़ार चीन, बांग्लादेश व वियतनाम जैसे देशों को मिल रहा है। साथ ही, गैर-मानक दवाओं की सूची के साथ मानक गुणवत्ता वाली दवाओं की सूची भी जारी करने की मांग की गई है।
इस मुद्दे पर देशभर की 21 से अधिक एसोसिएशनों ने साझा मंच बनाकर आवाज बुलंद की है। हिमाचल दवा निर्माता संघ के प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि यदि समय रहते केंद्र ने कदम नहीं उठाए तो देश का स्वास्थ्य तंत्र और आने वाली पीढ़ियां गंभीर संकट का सामना करेंगी।
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