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मां वैष्णो देवी व मनसा देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर मिलेगा शूलिनी माता का सिक्का

अब शूलिनी माता मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ शूलिनी माता की फोटोयुक्त सिक्का मिलेगा।

By Sachin MishraEdited By: Updated: Thu, 14 Jun 2018 08:57 AM (IST)
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मां वैष्णो देवी व मनसा देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर मिलेगा शूलिनी माता का सिक्का

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन। मां वैष्णो देवी व मनसा देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर अब सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ शूलिनी माता की फोटोयुक्त सिक्का मिलेगा। शूलिनी माता के प्रति लोगों की अगाध निष्ठा व आस्था है। हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में माता के दर्शनार्थ पहुंचते है। इसी को मद्देनजर रखते हुए मां शूलिनी सेवा समिति इस बार राज्य स्तरीय शूलिनी मेले से प्रसाद के साथ सिक्के देगी। इसके लिए अभी करीबन 50 हजार सिक्कों को बनवाने के लिए गाजियाबाद की कंपनी को ऑर्डर दिए गए है। शूलिनी माता के देश विदेश में लाखों श्रद्धालु हैं, जो सोलन मंदिर आकर माता के दर्शन करते हैं।

इस बार चांदी की बजाए एल्यूमिनियम के सिक्के

मां शूलिनी सेवा समिति के प्रधान मंजुल अग्रवाल ने बताया कि पिछले कई वर्षों से माता शूलिनी की शोभा यात्रा के दौरान डोला उठाने का कार्य करती है। इसके अलावा शोभायात्रा के दौरान भगवानों की विभिन्न झांकियां भी यह समिति ही तैयार करवाती है। उन्होंने बताया कि समिति मां शूलिनी के एल्यूमिनियम के सिक्के छपवा रही है। सिक्के पर माता शूलिनी का नाम सहित उनकी फोटो प्रिंट होगी। इन सिक्कों को 22 से 24 जून तक चलने वाले राज्य स्तरीय शूलिनी मेले के शुभारंभ पर शोभा यात्रा के दौरान प्रसाद के साथ बांटने का कार्य शुरू होगा। इसके बाद मेले के अगले दो दिन सिक्के शनिवार व रविवार को गंज बाजार स्थिति दुर्गा माता मंदिर में प्रसाद के साथ दिए जाएंगे। उन्होने बताया कि पहले चांदी के सिक्के बनाने की योजना थी लेकिन उसको बनने में तीन महीने का समय लगना था इसलिए अब एल्यूमिनियम के सिक्के ही बनवाए जा रहे हैं।

शूलिनी माता का इतिहास

शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है। माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है। शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही इसका नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था और यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा कि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था। माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया। बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, तब से लेकर आज तक यहां की अधिष्ठात्री देवी के नाम से ही हर वर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह में शूलिनी मेले का आयोजन किया जाता है।