Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Himachal News: बलिदानी बेटे को नहीं सम्मान तो कारगिल पहुंचे परिजन, पिता ने कहा- यहां आते ही पुरानी यादें हो जाती हैं ताजा

बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया के परिजन कारगिल युद्ध के तीन दिवसीय रजत जयंती समारोह में शामिल होने के लिए कारगिल पहुंच गए हैं। अमोल कालिया के पिता सतपाल कालिया ने कहा कि ऊना जिला प्रशासन उनके बेटे के बलिदान को याद रखने के लिए कोई कार्यक्रम तक आयोजित नहीं करता और ना ही उन्हें किसी कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता है।

By satish chandan Edited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 24 Jul 2024 06:03 PM (IST)
Hero Image
बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया (जागरण फाइल फोटो)

सतीश चंदन, ऊना। कैप्टन अमोल कालिया कारगिल युद्ध के वह हीरो रहे हैं, जो खुद तो बलिदान हो गए लेकिन अपनी शहादत के निशान सदा के लिए छोड़ गए। ऐसे बलिदानियों पर हर किसी को नाज होना चाहिए जिन्होंने महज 25 वर्ष की आयु में देश के लिए हंसते-हंसते बलिदान दिया।

मरणोपरांत वीर च्रक्र पाने वाले कैप्टन आमोल कालिया अविवाहित थे। हालांकि परिवार ने आमोल की पुरानी यादों को घर में संजो कर रखी हुई है। भारत के प्रति अमर प्रेम व पाकिस्तान के प्रति गुस्सा आज भी उनके घर की छत पर रखी गई तोप के मॉडल के मुंह को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है।

कैप्टन अमोल कालिया ऊना जिले के चिंतपूर्णी के थे और उनका परिवार नया नंगल पंजाब में रहता है। कालिया की यादों को ताजा रखने के लिए परिवार ने उनकी हर चीज को सहेजकर रखा है। इसमें एक मारुति कार भी है।

अगली पीढ़ी भी सेना में जाने की कर रही तैयारी

अमोल कालिया और अमन कालिया के भारतीय सेना में सेवा देने के बाद इनकी अगली पीढ़ी भी सेना में जाने की तैयारी में है। अमन कालिया के बेटे नमन कालिया भी भारतीय सेना में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। वह एनडीए परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।

क्या बोले कैप्टन अमोल कालिया के पिता?

बलिदानी अमोल कालिया के पिता सतपाल कालिया ने कहा कि उनके बेटे ने दुश्मनों से डटकर मुकाबला कर देश की आन-बान-शान के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। कालिया ने कहा कि उन्हें बेटा खोने का गम तो है लेकिन साथ ही अपने पुत्र के बलिदान पर आज भी नाज है।

उन्हें इस बात का बड़ा दुख है कि ऊना जिला प्रशासन उनके बेटे के बलिदान को याद रखने के लिए कोई कार्यक्रम तक आयोजित नहीं करता और ना ही उन्हें किसी कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता है। जिसके चलते वह कार्यक्रम के दो दिन पहले कारगिल के लिए परिवार समेत रवाना हो गए है। क्योंकि कारगिल दिवस के समारोह में उन्हें पहले की तरह ही आज भी सम्मान मिलता है।

उन्होंने कहा कि जब कारगिल दिवस आता है तो उस दिन पुरानी सारी यादें ताजा हो जाती है। उस दिन ऐसा लगता है कि जैसे आज ही सब घटित हुआ है। उनका बड़ा बेटा भी एयरफोर्स में अधिकारी के पद पर कार्यरत है और देश की सेवा में लगातार डटा हुआ है।

यह भी पढ़ें: Kargil Vijay Diwas 2024: विजय दिवस का जश्न शुरू, लाइट शो के जरिए कारगिल युद्ध का मंजर दोहराएगी सेना

कब सेना में गए कैप्टन अमोल कालिया?

26 फरवरी 1974 को नंगल में जन्मे अमोल कालिया का जमा दो तक शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत 1991 में एनडीए के लिए चयन हुआ। 1995 में आईएमई कमीशन प्राप्त करने के उपरांत सेना की 12 जाकली में प्रभार संभाला। उन्होंने करीब साढ़े तीन साल भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी।

बलिदान के बाद सरकार ने की थी ये घोषणाएं

कैप्टन आमोल कालिया के बलिदान देने के बाद पंजाब व हिमाचल सरकार की तरफ से काफी सम्मान देने की घोषणाएं की गई थी। जिनमें लगभग सभी पूरी कर दी गई है। जिसमें हिमाचल प्रदेश के प्रवेश द्वार मैहतपुर का नाम अमर बहिदानी कैप्टन आमोल कालिया के नाम पर है।

उनके पैृतक गांव चिंतपूर्णी के स्कूल का नामकरण कैप्टन आमोल कालिया मैमोरियल सीनियर सैकेंडरी स्कूल, ऊना में पेट्रोल पंप, पंजाब के नया नंगल में आमोल कालिया के घर के पास पार्क का नामकरण कैप्टन आमोल कालिया रखा गया। आमोल कालिया ने नया नंगल में जिस स्कूल में शिक्षा प्राप्त की थी। उसका नामकरण भी कैप्टन आमोल कालिया मॉडल स्कूल किया गया। इसके अलावा अन्य जो घोषनाएं हुई थी। उसे पूरा किया गया है।

सबसे खतरनाक मिशन पर गए थे अमोल कालिया

जून 1999 में भारत-पाक में कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था। विडंबना यह थी कि पाकिस्तान के सैनिक और आतंकियों ने कारगिल की ऊंची चोटियों पर पहले ही कब्जा कर लिया था और इस खतरनाक मिशन पर भारतीय सैनिकों के लिए यह बड़ी चुनौती थी।

ऐसे में कैप्टन अमोल कालिया को कारगिल का सबसे बड़ा एवं खतरनाक मिशन पर अन्य सैनिक साथियों के साथ भेजने की भारतीय सेना ने रणनीति बनाई। कारगिल की 5203 नंबर चोटी, जो 17,000 फीट की ऊंचाई पर थी, पर अमोल कालिया अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़ना शुरू हुए।

अंतिम सांस तक दुश्मनों से किया था मुकाबला

यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि अगर इस चोटी पर जिसका भी कब्जा हो जाता, तो यह लाजिमी था कि बटालिक सेक्टर पर भी उस देश का प्रभुत्व हो जाता। ऐसे में 8 जून से इस चोटी पर दोनों तरफ से गोलाबारी शुरू हो गई। 9 जून को भी यह दोनों तरफ से हमले होते रहे, लेकिन दुर्भाग्य से कैप्टन अमोल कालिया गंभीर रूप से जख्मी हो गए।

बावजूद इसके उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी एलएमजी (लाइट मशीन गन) पर पूरा नियंत्रण रखा और तीन दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और तीन को गंभीर रूप से घायल कर दिया। वह अंतिम सांस तक दुश्मन पर हमला करते रहे। कारगिल युद्ध का सबसे बहादुर सैनिक देश के लिए प्यारा हो चुका था।

यह भी पढ़ें: Kargil Vijay Diwas 2024: सेना के जांबाजों के साथ विजय दिवस का जश्न मनाएंगे PM मोदी, लद्दाख में कई विकास परियोजनाओं का कर सकते हैं उद्घाटन