Hockey Olympics: 18 साल, 335 मैच 2 ओलंपिक मेडल, भारतीय हॉकी टीम की 'दीवार' श्रीजेश ने लिया संन्यास; उपलब्धियों पर एक नजर
PR Sreejesh Retirement भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने पेरिस ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय हॉकी करियर को अलविदा कह दिया। 2006 से भारतीय हॉकी टीम की गोलकीपर की जिम्मेदारी संभालने वाले श्रीजेश ने अपने पूरे करियर में 335 इंटरनेशनल मैच खेले और लगातार 2 ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल अपनी टीम को जिताने में अहम भूमिका निभाई।
स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय मेंस हॉकी टीम ने 52 साल बाद लगातार दो ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल जीतने का कारनाम दोहराया। पेरिस ओलंपिक 2024 में स्पेन को 2-1 से हराकर ब्रॉन्ज मेडल जीता। इससे पहले 1968 और 1972 ओलंपिक में ऐसा हुआ था। भारत की इस जीत में भारतीय टीम गोलकीपर पीआर श्रीजेश का अहम रोल रहा। अपना आखिरी टूर्नामेंट खेल रहे अनुभवी गोलकीपर पी आर श्रीजेश पूरे टूर्नामेंट में चट्टान की तरह गोलपोस्ट पर खड़े रहे।
बीते 18 साल में भारतीय टीम जब-जब मुश्किल में पड़ी श्रीजेश एक दीवार की तरह खड़े मिले। श्रीजेश ने भारत के लिए 335 मैच खेलें। इन 335 मैच में उन्होंने अपनी शरीर पर बुलेट की रफ्तार से आती गेंदे खाईं, कभी दाएं गिरे तो कभी मुंह के बल। इसके बावजूद विपक्षी टीम इस दीवार को तोड़ नहीं पाई। टीम को हमेशा भरोसा रहता था कि श्रीजेश के होते हुए गेंद का गोलपोस्ट के पार जाना आसान नहीं है।
स्पेन के खिलाफ बचाए 5 गोल
श्रीजेश ने भारतीय हॉकी टीम की अनगिनत सेव कीं। अनगिनत मौकों पर टीम को मुश्किल से निकाला। वह कभी वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए, लेकिन अब दो-दो ओलंपिक मेडल साथ अपने शानदार करियर को अलविदा कह दिया। स्पेन के खिलाफ ब्रॉन्ज मेडल में श्रीजेश ने 6 में से 5 गोल बचाए। श्रीजेश गोल्ड मेडल नहीं जीत सके, इसका दुख उन्हें हमेशा रहेगा।
1988 में हुआ जन्म
श्रीजेश का जन्म 8 मई 1988 को केरल के एर्नाकुलम जिले के किझाक्कमबलम गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पीवी रविंद्रन और मां का नाम उषा है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा किझाक्कमबलम के सेंट एंटनी लोअर प्राइमरी स्कूल में पूरी की। उन्होंने किझाक्कमबलम के सेंट जोसेफ हाई स्कूल में छठी कक्षा तक पढ़ाई की।
गोलकीपिंग का ऐसे मिला सुझाव
बचपन में उन्होंने फर्राटा धावक के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने लंबी कूद और वॉलीबॉल में अपने हाथ आजमाने शुरू कर दिए। 12 साल की उम्र में जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिला लिया। यहां पर उनके कोच ने उन्हें गोलकीपिंग करने का सुझाव दिया। हॉकी कोच जयकुमार ने उन्हें स्कूल टीम में चुना। इसके बाद पीआर श्रीजेश पेशेवर गोलकीपर बन गए।
As I stand between the posts for the final time, my heart swells with gratitude and pride. This journey, from a young boy with a dream to the man defending India's honour, has been nothing short of extraordinary.
Today, I play my last match for India. Every save, every dive,… pic.twitter.com/pMPtLRVfS0— sreejesh p r (@16Sreejesh) August 8, 2024
2006 में किया डेब्यू
पेशेवर करियर में श्रीजेश ने 2004 में पर्थ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में जूनियर राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई। उन्होंने 2006 में कोलंबो में दक्षिण एशियाई खेलों में सीनियर राष्ट्रीय टीम में पदार्पण किया। 2008 के जूनियर एशिया कप में भारत की जीत के बाद, उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर से सम्मानित किया गया। दक्षिण कोरिया के इंचियोन में 2014 के एशियाई खेलों में उन्होंने भारत की स्वर्ण पदक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2017 में मिला पद्म श्री
13 जुलाई 2016 को, श्रीजेश को सरदार सिंह की जगह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान की जिम्मेदारी सौंपी गई। रियो ओलंपिक 2016 में श्रीजेश ने भारतीय हॉकी टीम को टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचाया था। पीआर श्रीजेश को साल 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 36 साल के गोलकीपर ने नेशनल टीम को ग्लासगो 2014 और बर्मिंघम 2022 में दो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने में भी सहायता की।
जीत चुके हैं FIH गोलकीपर ऑफ द ईयर पुरस्कार
उन्होंने FIH हॉकी प्रो लीग 2021-22 में भारत के तीसरे स्थान पर जगह बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। पीआर श्रीजेश को 2021 में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह 2021 में वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर का पुरस्कार जीतने वाले भारत के सिर्फ दूसरे खिलाड़ी हैं। उन्होंने लगातार FIH गोलकीपर ऑफ द ईयर पुरस्कार क्रमशः 2021 और 2022 में भी जीते हैं।
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