अंतरराष्ट्रीय करियर से संन्यास ले चुके श्रीजेश ने कहा कि पेरिस में उनका प्रदर्शन देखकर अब कई युवा गोलकीपिंग को अपनाएंगे। श्रीजेश से अभिषेक त्रिपाठी ने विशेष बाचतीचत की। पेश हैं प्रमुख अंश।
पिछले दो दशक से ज्यादा समय से आप भारतीय गोलपोस्ट के सामने एक दीवार की तरह खड़े रहे हैं। आपने अब संन्यास ले लिया है। आपके जाने से पैदा हुए शून्य को भरना क्या आसान होगा?
मेरी जगह जल्द ही कोई न कोई ले लेगा। जैसे सचिन तेंदुलकर ने जब संन्यास लिया तो विराट कोहली आ गए। उसी तरह मेरे जाने के बाद अब बात हो रही है अगला कौन। लोग आते रहेंगे, स्टार आते रहेंगे और कुछ समय के लिए लोग श्रीजेश को मिस करेंगे। शुभम काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। मोहित एक युवा लड़का है, वह भी काफी अच्छा है। सूरज है और जब इन्हें भी खेलने का अनुभव मिलेगा तो यह भी अच्छा प्रदर्शन करेंगे।
जैसा आपने कहा कि पहले गोलकीपर बहुत ज्यादा दिखते नहीं थे और बहुत से खिलाड़ी गोलकीपर बनना नहीं चाहते थे। क्या अब आपको लगता है कि आपके कारण कई खिलाड़ी गोलकीपर बनेंगे?
यही चीज तो हमने बदली है। पिछले तीन से चार मैचों में गोलकीपिंग की काफी प्रशंसा हुई है। इससे कई खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी कि गोलकीपिंग भी अच्छी पोजीशन है, जिस पर खेलकर भारतीय टीम में जगह बनाई जा सकती है। दूसरी बड़ी बात है कि मेरी नजर में गोलकीपिंग काफी ग्लैमरस पोजीशन है। आपको करीब से देखा जाता है, सभी की नजरें आपके ऊपर होती हैं इसलिए मुझे लगता है कि अब खिलाड़ी गोलकीपर बनने से नहीं हिचकिचाएंगे।
टोक्यो में जब हम जीते तो आप गोल पोस्ट के ऊपर बैठे थे और अब पेरिस में भी आपने वही किया। इस पर क्या कहेंगे?
जब हम टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीते तो बस दिमाग आया तो गोल पोस्ट पर चढ़ गया था लेकिन इस बार पेरिस में मैंने पहले ही सोचा था कि यहां भी गोल पोस्ट पर बैठकर करियर से अलविदा लेता हूं।
हॉकी में पिछले कुछ सालों में हमने काफी प्रगति की है लेकिन अभी भी हम जर्मनी और बेल्जियम जैसे देशों को नहीं हरा पा रहे हैं। आपकी नजर में और क्या-क्या सुधार होने चाहिए?
लेकिन बेल्जियम ने सेमीफाइनल तक के लिए क्वालीफाई नहीं किया इसलिए उससे हार का कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऑस्ट्रेलिया भी क्वालीफाई नहीं किया, लेकिन हम लोगों ने किया। ये दिखाता है कि हम कहीं न कहीं बेहतर कर रहे हैं। यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि हम किसे हरा रहे हैं या किससे हार रहे हैं बल्कि यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप कहां पर फिनिश कर रहे हो। मेरा तो मानना है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। सभी खिलाड़ियों को आत्मविश्वास मिला है और अगले ओलंपिक में आप देखोगे कि जो टीम वहां खेलेगी उसमें 11 से ज्यादा खिलाड़ियों के पास दो-दो ओलंपिक खेलने का अनुभव होगा। उस टीम के लिए आगे जाकर बड़ी टीमों का हराना मुश्किल नहीं होगा।
लेकिन कहीं न कहीं मन में स्वर्ण न जीतने की टीस है?
बिल्कुल, हम लोग स्वर्ण पदक जीतने के हकदार थे, लेकिन दुर्भाग्य से हम नहीं जीत पाए। इसकी टीस तो हमेशा ही दिल में रहेगी, लेकिन खाली हाथ होने से बेहतर है कांस्य पदक जीतना। अच्छी बात यह है कि हमने लगातार दो स्वर्ण जीते।
अब आप खेलने की जगह कोचिंग की तरफ बढ़ेंगे। इस भूमिका को कैसे देखते हैं?
अभी तो फिलहाल मैं ज्यादा कुछ नहीं सोच रहा हूं। कोचिंग मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव होगा। मैंने ट्रेनिंग की है, लेकिन पेशेवर कोचिंग कभी नहीं की है। मेरे लिए भी यह नई चुनौती होगी। मैं छोटे-छोटे कदम बढ़ाऊंगा और उसके बाद उस दिशा में बढूंगा।
भारतीय हॉकी टीम को उसके स्वर्णिम दौर में लौटाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
भाई ये तो आपके ऊपर है। अब हमारे पास दो-दो कांस्य पदक हैं, आप उसकी कहानी सुनाओ न युवा पीढ़ी को। हमें पुराने दौर में जाने की क्या जरूरत है। हम तो अपने बच्चों को यही कांस्य पदक दिखा रहे हैं कि हमारे पास ओलंपिक पदक है। आप भी खेलो और आप भी जीतो इसलिए हमें इतने पुराने समय में जाने की जरूरत नहीं क्योंकि हम में से किसी ने भी वो मुकाबले देखे ही नहीं हैं। आप ने भी वह मैच नहीं देखे होंगे। हमने जो मैच देखे हैं उसी में खुश रहना चाहिए।
क्या आपको लगता है कि भारतीय हॉकी अब सही दिशा में जा रही है। इसके पीछे की वजह आप क्या मानते हैं क्योंकि आपने दोनों दौर देखे हैं, जब पदक नहीं आते थे और अब दो-दो पदक आए हैं?
अब हमें ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने को मिल रहे हैं। लड़कों को ज्यादा एक्सपोजर मिल रहा है। हम लोग प्रो लीग में 16 मैच खेलते हैं। ऑस्ट्रेलिया जाकर 10 मैच खेलते हैं। इसी तरह यूरोप में ज्यादा मैच खेल रहे हैं। मेरा मानना है कि आधुनिक हॉकी में यह सबसे बड़ा बदलाव है। पुराने समय में हमें शीर्ष टीमों के विरुद्ध इतने मैच खेलने को नहीं मिलते थे।
जब भी देश में हॉकी के महान प्लेयर का नाम लिया जाएगा आपका नाम भी इसमें शामिल होगा। आपने कैसे हॉकी को चुना और अब जब आप अपने इस ऐतिहासिक सफर को देखते हैं?
जब मैंने जीवराज स्पोर्ट्स में खेलने गया तो मैंने हॉकी को देखा था। मैंने हॉकी चुना और खेलने लगा, लेकिन मुझे ज्यादा भागना नहीं था तो मैं गोलकीपर बन गया। वहां मेरे दो कोच थे जयकुमार और रमेश कोलप्पा। दोनों ने मेरी काफी मदद की। मेरे माता-पिता ने मुझे काफी सहयोग दिया। वहां से मैं नेशनल कैंप में आया और हरेंद्र सर ने मुझे सीधा जूनियर टीम में चुन लिया। मैं अंडर-16 कैंप में गया था, जहां से मेरा सफर शुरू हुआ।
अब यहां तक पहुंचा तो इसमें कई लोगों का साथ रहा है। 2008 में हम ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर पाए, वहीं 2012 ओलंपिक में हम एक भी मैच नहीं जीत पाए। 2016 में हम आठवें स्थान पर रहे और अब लगातार दो ओलंपिक में पदक जीते। ये मेरे लिए स्वप्निल सफर रहा है। जहां से मैंने हाकी शुरू की वहां से यहां तक पहुंचना बहुत बड़ी बात है।
आपका हंसमुख स्वभाव सबको पसंद है लेकिन क्या आप सीनियर होने के नाते अच्छा नहीं खेलने पर साथी खिलाड़ियों को डांटते भी हैं?
(हंसते हुए) मैं बिलकुल भी हसंमुख स्वभाव का नहीं हूं। मैदान पर काफी गंभीर हूं। मैं सबको बोलता हूं कि अपना काम करो और मैदान पर मजाक नहीं करो।
ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध मैच के दौरान जब अमित को रेड कार्ड मिला और टीम 10 खिलाड़ियों से खेली तो क्या यह भरोसा था कि आप कि आप सारे आक्रमण रोक लेंगे?
उस समय तो बस दिमाग में केवल यही बात चल रही थी कि मैच को किसी भी कीमत पर जीतना है। अंतिम समय में हम लोगों को गोल मिला, लेकिन ब्रिटेन ने भी गोल कर दिया, लेकिन हमें बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना था। उसके बाद शूटआउट हुआ और मैंने वह कर दिखाया। मुझे खुद पर भरोसा था कि अगर मैं फोकस रहा तो कुछ शॉट जरूर रोक लूंगा और उससे सामने वाली टीम पर दबाव हो जाएगा। ऐसा ही हुआ और हमारे खिलाड़ियों ने शूटआउट में सही निशाने पर गेंद मारी।
आपने सर्वाधिक गोल बचाए, लेकिन जब पेनाल्टी शूटआउट हुआ तो कहीं न कहीं डर लगा था?
जब आप अपना चौथा ओलंपिक खेल रहे होते हैं तो आपको डर नहीं लगता है। आपके ऊपर एक जिम्मेदारी होती है, जिसे आपको अच्छे ढंग से निभाना होता है।
वर्तमान टीम के किस युवा खिलाड़ी को आप भविष्य का सुपरस्टार मानते हैं और क्यों?
हमारी टीम में सभी सुपर स्टार हैं। मैं किसी एक खिलाड़ी का नाम नहीं लूंगा। डिफेंस में संजय कुमार नया लड़का है। फारवर्ड में अभिषेक और सुखजीत है। ये लोग अच्छा खेल रहे हैं और ये सभी स्टार बनने वाले हैं।
भारत ने छह पदक जीते। हम यहां टोक्यो के प्रदर्शन से पीछ रहे। कहा जा रहा है कि सरकार की ओर से खिलाडि़यों के हर तरह की मदद मिल रही है। ऐसा क्या किया जाए कि भारत खेल शक्ति बने?
मुझे ये तो नहीं पता कि खेल शक्ति बनाने के लिए क्या करना चाहिए क्योंकि मुझे ही ओलंपिक पदक जीतने में 20 वर्ष लग गए। मेरी टीम में एक लड़का है, जिसने दो साल में ही ओलंपिक पदक जीत लिया। तो सबके लिए ये सफर अलग-अलग होता है।
क्या आपको लगता है कि हॉकी लीग दोबारा शुरू करनी चाहिए?
मेरे हिसाब से बिल्कुल करनी चाहिए।
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