Kashmir : अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज का सामना कर चुके 50 विदेशी आतंकी उत्तरी कश्मीर में सक्रिय
Militancy In Kashmir उत्तरी कश्मीर के बारामुला कुपवाड़ा और बांडीपोरा में भी इस दौरान कई आतंकी मारे गए लेकिन बचे खुचे आतंकियो ने अपनी गतिविधियां पूरी तरह सीमित करते हुए अपने ठिकानों से बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया।
By Vikas AbrolEdited By: Updated: Mon, 06 Sep 2021 06:46 PM (IST)
श्रीनगर, नवीन नवाज। दक्षिण कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़ने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने अब अपना ध्यान उत्तरी कश्मीर में सक्रिय विदेशी आतंकियों पर केंद्रित कर दिया है।दक्षिण कश्मीर की तुलना में उत्तरी कश्मीर में विदेशी आतंकियों की संख्या स्थानीय आतंकियों की तुलना में ज्यादा है और उनमें से अधिकांश अफगानिस्तान में स्थित लश्कर, जैश और अल-बदर के ट्रेनिंग कैंपों से लौटे हैं या फिर अमरीकी फौज के खिलाफ लड़ चुके हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, करीब 50 विदेशी आतंकियों की उत्तरी कश्मीर में मौजूदगी की पुष्टि हाे चुकी है और यह सभी सूचीबद्ध हैं। अलबत्ता, स्थानीय सूत्र बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोर में सक्रिय विदेशी आतंकियों की तादाद पुलिस के आंकड़ों से दुगनी बताते हैं।
वर्ष 2015 के बाद से उत्तरी कश्मीर में आतंकी गतिविधियां लगातार घटी हैं
जम्मू कश्मीरी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2015 के बाद से उत्तरी कश्मीर में आतंकी गतिविधियां लगातार घटी हैं। स्थानीय आतंकियों की भर्ती में भी दक्षिण कश्मीर की तुलना में कमी देखी गई है। इसका मुख्य कारण लश्कर, जैश, हिजबुल मुजाहिदीन और अल-बदर ने अपना ध्यान पूरी तरह दक्षिण कश्मीर में अपने नेटवर्क पर केंद्रित रखा था। अबु कासिम, अबु दुजाना और अबु इस्माइल जैसे पाकिस्तानी कमांडरों का नेटवर्क दक्षिण में ही ज्यादा मजबूत था और उत्तरी कश्मीर में वह सिर्फ गुलाम कश्मीर से आने वाले नए आतंकियों को लेने के लिए ही जाते थे।
जैश-ए-मोहम्मद ने भी नूरा त्राली और उस जैसे अपने पुराने ओवरग्राउंड नेटवर्क का फायदा दक्षिण कश्मीर में ही लिया। इसके अलावा बुरहान वानी के पोस्टर ब्वॉय बनने से जिस तरह से स्थानीय लड़कों की भर्ती में तेेजी देखी गई थी, उसे देखते हुए आतंकी संगठनों ने दक्षिण कश्मीर में अपने विदेशीी कैडर की संख्या को घटाते हुए उनकी गतिविधियों को सीमित किया था। विदेशी आतंकियाें को सिर्फ आत्मघाती हमलों की साजिश रचने और उसे अंजाम देने या फिर स्थानीय लड़कों के ब्रेनवाश व ट्रेनिंग का जिम्मा दिया गया था।
उन्हाेंने बताया कि 2016 में आतंकी बुरहान की माैत के बाद वादी मे हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौर से सबक लेते हुए सुरक्षाबलों ने आतंकियों के सफाए के लिए आपरेशन ऑलआउट शुरु किया। हालांकि यह आपरेशन पूरी वादी में चला, लेकिन ज्यादा ध्यान दक्षिण कश्मीर में दिया गया, क्योंकि वह अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा समेत दक्षिण कश्मीर चारों जिले आतंकियों का एक मजबूत गढ़ बनते जा रहे थे। उत्तरी कश्मीर के बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोरा में भी इस दौरान कई आतंकी मारे गए, लेकिन बचे खुचे आतंकियो ने अपनी गतिविधियां पूरी तरह सीमित करते हुए अपने ठिकानों से बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया। इस दौरान दक्षिण कश्मीर में वहीं विदेशी आतंकी गया, जिसे पार बैठे उसके आकाओं ने किसी विशेष वारदात की जिम्मेदारी सौंपी थी।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि उत्तरी कश्मीर में विदेशी आतंकी अब फिर सक्रिय होने लगे हैं। इसका एक कारण दक्षिण कश्मीर में सुरक्षाबलों का आतंकियों पर बढ़ता दबाव है। दूसरा कारण, उत्तरी कश्मीर में विदेशी आतंकियों की बढ़ती संख्या के साथ स्थानीय कैडर में भर्ती।उन्होंने बताया कि इस वर्ष सोपोर में म्यूनिस्पिल कमेटी के सदस्यों पर हुए हमले और उसके बाद पुलिस दल पर हुए आतंकी हमलों में स्थानीय आतंकियों के साथ विदेशी आतंकी भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि इस वर्ष वादी में करीब नौ विदेशी आतंकी मारे गए हैं । वे करीब तीन साल पहले कश्मीर में दाखिल हुए थे। बीते साल घाटी में 32 विदेशी आतंकी मारे गए थे। इस वर्ष पहला विदेशी आतंकी अबु हमास उर्फ सरिया भाई उत्तरी कश्मीर के साेपोर में ही मारा गया था। बीते माह शराकवारा, बारामुला में एक महिला सरपंच नरेंद्र कौर के घर पर हुए ग्रेनेड हमले में भी पाकिस्तानी आतंकी अली भाई और उस्मान का नाम सामने आया है।
कश्मीर में सक्रिय विदेशी आतंकियों ने बीते कुछ सालों के दौरान खुद को पूरी तरह लो-प्रोफाइल में रखा हैकश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी ने कहा कि उत्तरी कश्मीर में सक्रिय विदेशी आतंकियों ने बीते कुछ सालों के दौरान खुद को पूरी तरह लो-प्रोफाइल में रखा है। उन्होंने दक्षिण कश्मीर के हालात का पूरा लाभ उठाया है। उत्तरी कश्मीर के तीनों जिले एलओसी के साथ सटे हुए हैं। इसके अलावा उत्तरी कश्मीर का जिला बारामुला भी जम्मू प्रांत के पुंछ से सटा हुआ है। अगर राजौरी-पुंछ के घुसपैठ में कामयाब रहने वाले आतंकी अगर मुगल रोड तक पहुंच जाते हैं तो वे आसानी से उत्तरी कश्मीर में भी बड़गाम, गुलमर्ग के जंगलाे से होते हुए उत्तरी कशमीर में अपने ठिकानाें तक जा सकते हैं। उत्तरी कश्मीर में जंगल, पहाड़ और नाले भी बहुत ज्यादा हैं। सिर्फ यहीं नहीं टीआरएफ और पीएएफएफ जैसे संगठनों ने जिन्हें हम लश्कर व जैश का हिट स्क्वाड कहते हैं, ने भी उत्तरी कश्मीर में विदेशी आतंकियों के नेटवर्क को मजबूत किया है।
जम्मू कश्मीर पुलिस में आइजी रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि उत्तरी कश्मीर में विदेशी आतंकियों की मौजूदगी को आप बीते दो माह के दौरान अफगानिस्तान के हालात से नहीं जोड़ सकते हैं। बेशक! जुलाई के बाद से एलओसी पर घुसपैठ के प्रयास बढ़े हैं, लेकिन किसी तालिबानी या किसी नए आतंकी के उत्तरी कश्मीर मे निशान नहीं मिले हैं। उत्तरी कश्मीर में जो आतंकी हैं, वे पहले से ही यहां मौजूद थे। उन्होंने कहा कि सेना व अन्य सुरक्षा एजेंसियां हालात की लगातार समीक्षा कर रही हैं। घुसपैठ रोधी तंत्र को मजबूत बनाया गया है। आने वाले दिनों में एलओसी पर सरहद पार से घुसपैठ की कोशिशों में बढ़ोतरी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
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