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Jammu Kashmir : 75 साल और पाकिस्तान की अनवरत साजिशें : देश आज मनाएगा काला दिवस

रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि यह काला दिवस हमें पाकिस्तान की साजिशों को बेनकाब करने का अवसर तो है ही यह हमें बारंबार याद दिलाता है कि हमारे गुलाम जम्मू कश्मीर के भाई आज तक आजादी की हवा में सांस नहीं ले पाए हैं।

By naveen sharmaEdited By: Rahul SharmaUpdated: Sat, 22 Oct 2022 09:54 AM (IST)
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भारतीय सेना कश्मीर के भारत में विलय के बाद ही श्रीनगर की रक्षा के लिए उतरी।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : पाकिस्तान अपने अस्तित्व के साथ ही कश्मीर पर साजिशें लगातार रचता रहा है। अपनी हर कुचेष्टा और षड्ंयत्र में मुंह की खाने के बावजूद आज भी कश्मीर की शांति को भंग करने की साजिश बुन रहा है। पाकिस्तान ने हमारे देश पर चार युद्ध थोंपे, आम कश्मीरियों को हिंसा की आग में झोंका पर उसके मंसूबे हमेशा ही तरह ध्वस्त हो रहे है। इन्हीं साजिश को दुनिया के समक्ष लाने के लिए ही कश्मीर ही नहीं पूरा देश 22 अक्टूबर शनिवार को काला दिवस मना रहा है। इसी दिन 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों की आड़ लेकर कश्मीर में खून-खराबे की शुरुआत की थी और आज भी बड़े हिस्से पर कब्जा जमाए हुए है।

पाकिस्तानी सेना 22 अक्टूबर 1947 को कबाइलियों की आड़ कश्मीर में घुस आई और गुलाम जम्मू कश्मीर के शहरों में खुन-खराबा किया। हिंदुओं, मुस्लिमों और सिखों का नरसंहार किया गया। मुजफ्फराबाद, मीरपुर और अन्य शहरों में जमकर खून बहाया गया और यह कबाइली बारामुला तक पहुंच गए थे और श्रीनगर की ओर कूच रहे थे तब भारतीय सेना ने समय पर अपने जवान उतारकर कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचा लिया।

इतिहासकार दावा करते हैं कि अपने मंसूबे में सफल ने होते देख पाकिस्तान सेना और कबाइलियों ने 35 हजार से अधिक कश्मरीरियों का कत्ल कर दिया। हालांकि कुछ लोग हत्याओं की संख्या इससे कई गुना अधिक बताते हैं। शहर के शहर तबाह हो गए पर कश्मीरियों ने हर कदम पर पाकिस्तानी की इस साजिश का विरोध किया और आज भी लगातार कर रहे हैं। राजौरी-पुंछ और बारामुला से भले ही पाकिस्तानी सेना के कब्जे से छुड़ा लिया गया पर आज भी एक बड़ा हिस्सा गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है और वहां के नागरिक आज भी भारत की ओर उम्मीद भरी निगाह लगाए हुए हैं।

रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि यह काला दिवस हमें पाकिस्तान की साजिशों को बेनकाब करने का अवसर तो है ही, यह हमें बारंबार याद दिलाता है कि हमारे गुलाम जम्मू कश्मीर के भाई आज तक आजादी की हवा में सांस नहीं ले पाए हैं। पाकिस्तान भले ही हमलावरों को कबाइली बताए लेकिन पाकिस्तानी सेना ने इसे आपरेशन गुलमर्ग का नाम दिया था और पाकिस्तानी जनरल की किताब से यह साबित भी हो जाता है कि कश्मीर में पाकिस्तानी सेना ही सीधी लड़ाई लड़ रही थी।

यह दिन दुनिया को यह भी बताता है कि भारतीय सेना कश्मीर के भारत में विलय के बाद ही श्रीनगर की रक्षा के लिए उतरी। महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत से विलयपत्र पर हस्ताक्षर किया था और उसके बाद भारतीय सेना श्रीनगर में उतारी गई।

एक तरफ बातचीत और दूसरी तरफ पाकिस्तान ने घुसा दी सेना : पाकिस्तानी एक तरफ महाराजा हरि सिंह से लगातार बातचीत कर रहे थे और कश्मीर में विलय या हक कश्मीर को ही देने की बात कर रहे थे, इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने बड़ी साजिश रच डाली और पूरे कश्मीर को खून से लाल कर दिया। महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया और लोगों की नृशंसता से हत्या कर दी गई।

पाकिस्तान को रोकने के लिए भारतीय सेना के साथ आ खड़े हुए थे कश्मीरी : भारतीय सेना कश्मीर पहुंचे तो वहां के लोग उसके समर्थन में सड़कों पर बाहर आ गए। भय और आशंका का माहौल कुछ खत्म हुआ। कश्मीरी हर कदम पर भारतीय सेना के साथ पाकिस्तान के खिलाफ डटकर खड़े हो गए और उनकी मदद से भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों को पीछे धकेलना आरंभ कर दिया।

मकबूल शेरवानी के हौसले ने बचा लिया श्रीनगर : पाकिस्तानी सेना बारामुला में खून-खराबे के बाद श्रीनगर की ओर आगे बढ़ने लगी थी पर बारामुला के सपूत मकबूल शेरवानी ने जान दांव पर लगाकर श्रीनगर को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचा लिया। मकबूल ने पाकिस्तानी सेना को गलत रास्ते पर भेज दिया और दो दिन तक उन्हें ऐसा ही घुमाता रहा। बाद में पाकिस्तानियों को समझ आई और उसकी हत्या कर दी गई। तब तक भारतीय सेना कश्मीर की सुरक्षा के लिए पहुंच चुकी थी। इस तरह मकबूल ने जान देकर कश्मीर की हिफाजत की। 

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